यूनिकोड ने सिद्ध किया, मानकीकरण का कोई विकल्प नहीं- बालेन्दु शर्मा दाधीच

विश्‍व हिंदी सम्‍मेलन जोहानीसबर्ग से : जोहानीसबर्ग में आयोजित नौवें विश्व हिंदी सम्मेलन के दौरान हुए प्रौद्योगिकी सत्र में हिंदी से जुड़े अहम तकनीकी मुद्दों, समस्याओं और लक्ष्यों पर चर्चा की गई और सुझाव दिए गए। सत्र का विषय था- सूचना प्रौद्योगिकीः हिंदी और देवनागरी का सामर्थ्य। सत्र का संचालन प्रभासाक्षी.कॉम के संपादक और चर्चित तकनीकविद् बालेन्दु शर्मा दाधीच ने किया। इसमें वरिष्ठ तकनीकविद् डॉ. ओम विकास, प्रसिद्ध कवि तथा तकनीक-प्रेमी अशोक चक्रधर, सीडैक (पुणे) के जिस्ट समूह के सहयोगी निदेशक महेश कुलकर्णी, नागरी लिपि परिषद के महासचिव तथा नागरी के प्रसिद्ध विद्वान डॉ. परमानंद पांचाल और डेवलपर जगदीप दांगी शामिल थे। मुख्य अतिथि सांसद अलका बलराम क्षत्रिय और विशिष्ठ अतिथि राजद नेता रघुवंश...
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हिंदी के बिना देश का विकास संभव नहीं: त्रिवेदी

नई दिल्ली। हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध कवि रामधारी सिंह दिनकर की जयंती पर उन्हें याद किया गया और इस मौके पर कुछ रचनाकारों को सम्मानित किया गया। मशहूर पर्यावरणविद और ग्लोबल युनिवर्सिटी (नगालैंड) के कुलपति प्रियरंजन त्रिवेदी ने कहा कि हिंदी के विकास के बिना देश का विकास नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि हिंदी की वजह से ही देश के पहचान है और वह हमें एक सूत्र में बंधती है। त्रिवेदी इंद्रप्रस्थ इंडिया इंटरनेशल के तत्वधान में आयोजित राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर जयंती समारोह में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि हमारी शिक्षा पद्धिति ठीक नहीं है जिसकी वजह से बेरोजगारी बढ़ी है। उन्होंने कहा कि पर्यावरण को बचाने की जिम्मेदारी भी हमारी है और इसे हर स्तर पर ठीक करना होगा, तभी हम राष्ट्रकवि दिनकर के उन सपनों को...
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पेड़ पर नहीं उगते पैसे क्‍या ? उगते हैं, उगते हैं, उगते हैं

पी एम ने कहा कि ‘पेड़ पर नहीं उगते पैसे’, उनके बयान में से इस एक हिस्‍से पर सबने ध्‍यान केन्द्रित किया गया और बवंडर मचाया गया जबकि वे वाक्‍य के अंत में ‘क्‍या’ जोड़ना भूल गए थे। अ‍ब इतनी छोटी चूक होनी स्‍वाभाविक थी क्‍योंकि एक लंबे अरसे के बाद उन्‍होंने अपनी जबान को तकलीफ दी थी, उस छोटी चूक को मोटी बनाने में क्‍या पब्लिक, क्‍या नेता, क्‍या पक्ष और क्‍या विपक्ष मतलब पूरा संसार ही उमड़-घुमड़ पड़ा है। जिस काम को करने में सब जुट जाएं तो वे सफल हो ही जाते हैं और सब पीएम की फजीहत करने में बुरी तरह सफल हो गए। सभी को सोचना चाहिए था कि वे अपने भारतदेश के पीएम हैं न कि विदेश के, कि सब उनकी लानत- मलामत करने लगे। माना कि नेता लोग बेशर्म हो गए हैं और आंखों के पानी, चुल्‍लू भर पानी के मिलने पर भी वे...
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फ़जल इमाम को दिनकर साहित्य रत्न सम्मान

नई दिल्ली। साहित्यकार और पत्रकार फ़ज़ल इमाम मल्लिक को दिनकर साहित्य रत्न सम्मान से नवाजा गया। सम्मान रविवार की शाम उन्हें दिल्ली स्थित कांस्टयुटीशन क्लब के स्पीकर हाल में आयोजित दिनकर जयंती समारोह में दिया गया। समारोह का आयोजन इंद्रप्रस्थ इंडिया इंटरनेशनल ने किया था। पर्यावरणविद् और राजीवगांधी ग्लोबल युनिवर्सिटी के कुलपति प्रियरंतन त्रिवेदी, सांसद प्रदीप सिंह और इंद्रप्रस्थन इंडिया इंटरनेशनल के अध्यक्ष डॉ जी पी एस कौशिक ने फ़ज़ल इमाम मल्लिक को सम्मानित किया। सम्मान के तहत उन्हें प्रशस्तिपत्र, स्मृति चिन्ह और अंगवस्त्र भेंट किया गया। बिहार के शेख़पुरा ज़िला के चेवारा के रहने वाले फ़ज़ल इमाम मल्लिक जनसत्ता अख़बार में बतौर वरिष्ठ उपसंपादक कार्यरत हैं। वे कई समाचार चैनलों से जिनमें चैनल वन,...
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ढंग के इस बेढ़गे ढंग को बंद करो जी

‘आज मोहब्‍बत बंद है’ गीत फिजा में गूंज रहा है जबकि ‘कल भारत बंद था’। भारत बंद होने पर मोहब्‍बत पर तो अपने आप ही लॉक लग जाएगा। गीत का सकारात्‍मक संदेश है कि मोहब्‍बत बंद हो सकती है लेकिन हिंसा, रक्‍तपात, खून खराबा, मारपीटी शुरू होने के बजाय महंगाई बंद होनी चाहिए। इसके विपरीत भारत बंद हुआ क्‍योंकि महंगाई ने नंगपना मचा रखा है, जिसमें नाच देखने वालों और नाचने वालों में नेताओं के शागिर्द होते हैं। इन्‍हें आप भाईजी, गुंडे, बाउंसर, सक्रिय कार्यकर्ता इत्‍यादि नामों से पहचानते हैं। बहरहाल, सच्‍चाई यह है कि धरती का आधार प्रेम है। प्रेम से ताकतवर कुछ नहीं है। प्रेम के बिना झगड़े भी नहीं है। किसी से प्रेम होगा तो किसी से उसी प्रेम के लिए झगड़ा भी होगा। यही...
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न्यू मीडिया बिगड़ गया हिंदी-साहित्यकार के लिए

हँसना गुनाह हो गया हँसाना गुनाह हो गया गुनहगार हो गए  हम मित्रों के। भाते नहीं हमारे चित्र उन्हें सुंदर पहले भी नहीं था बीमारी ने चेहरा बिगाड़ दिया भाषा ब्लॉगरों वाली हो गई। ब्लॉगर खराब, भाषा खराब अब विचार भी विकृत हुए न्यू मीडिया बिगड़ गया हिंदी-साहित्यकार के लिए । विशेष : हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग, व्‍यंग्‍य लेखन और फेसबुक, ट्विटर रूपी सोशल मीडिया में सक्रियता से ही मुझे हैपिटाइटिस सी से उबरने का हौसला मिला। चार महीने का मेरा एकांत वास इसी न्‍यू मीडिया ने महसूस नहीं होने दिया। मेरा जीवन इसी की वजह से है, वरना मैं आज जीवित ही नहीं होता।  खैर ... मेरी टिप्‍पणी से जिन्‍हें संताप हुआ। वे अपने ताप से मुक्ति पाएं और अपने प्रताप को बुलंदियों पर पहुंचाएं। इसी कामना के साथ। शिकायत...
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हिंदी ब्‍लॉगरों और फेसबुकधारियों के लिए उपयोगी है यह पाठ्यक्रम : गूगल में रजिस्‍ट्रेशन करें और करें पढ़ाई, मत शर्माएं, प्रमाण पत्र भी पाएं - पहले रजिस्‍ट्रेशन कर लें

http://www.powersearchingwithgoogle.com/course आइए पढ़ें पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती मतलब उम्र तो होती है पर पढ़ाई कभी भी कर सकते हैं आप भी कीजिए खुद ही दाखिला करिए इस लिंक पर करके क्लिक ऊपर इमेज पर करके क्लिक पढ़ लीजिए पहले ले लीजिए पूरी जानकारी फिर करिए अपना पंजीकरण कहां से मालूम हुआ पर नुक्‍कड़ की इसी पोस्‍ट का यूआरएल दीजिएगा , मतलब जो सच है वही लिखिएगा यह कोर्स फ्री है बाद में आपका टाइम बचाइएगा कोर्स कर लेंगे फिर एक प्रमाणपत्र भी मिलेगा मैंने कर दिया है पंजीकरण आप भी कर लीजिए रजिस्‍ट्रेशन फिर इंटरनेट का बनेगा मनमाफिक स्‍टेशन जिसके स्‍टेशन मास्‍टर आप स्‍वयं होंगे। मौका मत गंवाइएगा चूकने वाले चौहान मत बनिएगा कक्षाएं 24 सितम्‍बर 12 से शुरू हो रही हैं इसलिए पंजीकरण...
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साझी विरासत के अलमबरदार

फ़ज़ल इमाम मल्लिकहिंदी-उर्दू के सवाल भारत में अक्सर तलवारें खिंची रहती हैं और इसे लेकर सियासत भी कम नहीं होती है। कई बार भाषा को लेकर यह विवाद आपसी रिश्तों में भी कड़वाहट घोल देता है। लेकिन हिंदी-उर्दू के सवालों को परे रख कर आस्ट्रेलिया में बसे भारत-पाकिस्तान के शायरों और कवियों ने एक बड़ी लकीर खींच कर हमें यह बताने की कोशिश की है कि साहित्य की कोई भाषा नहीं होती और अदब एक बेहतर और रोशन दुनिया बसाने का ज़रिया है। इसे क़बीलों, धर्म और मज़हब के साथ जोड़ कर नहीं देखा जा सकता। कुछ दिन पहले कवि-मित्र हरिहर झा का मेल मिला था। उन्होंने अपने मेल में इस बात का ज़िक्र किया था कि आस्ट्रेलिया में रह रहे कवियों-शायरों का एक साझा संग्रह ‘गुलदस्ता’ का प्रकाशन भारतीय विद्या भवन ने किया है। संग्रह में उर्दू और हिंदी...
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समकालीन सरोकार का प्रवेशांक पाठकों के हाथ में

प्रधान संपादक --सुभाष राय संपादक --हरे प्रकाश उपाध्याय फोन संपर्क--9455081894, 87562199...
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‘सॉरी’ हिंदी दिवस पर अंग्रेजी बोली

हिंदी का सौभाग्‍य माने या दुर्भाग्‍य कि सितम्‍बर माह में प्रत्‍येक बरस हिंदी बतौर सेलीब्रेटी पहचानी जाती है। इस महीने में सिर्फ हिंदी की जय जयकार ही होती है। जो अंग्रेजी में ‘लोंग लिव हिंदी’ के नारे लगाते हैं, वे फिर ‘सॉरी’ कहकर अपनी गलती भी मान लेते हैं। हिंदी का जन्‍मदिन हिंदी दिवस है, ऐसा सोचने वाले अपने मुगालते को दुरुस्‍त कर लें क्‍योंकि यह वह दिन है जिस दिन हिंदी को राष्‍ट्रभाषा का दर्जा देकर तुरंत दराज में बंद कर दिया गया और दराज क्‍योंकि मेज में होती है इसलिए वह आफिस में कैद होकर रह गई। हिंदी आज तक उस कैद से छूट नहीं सकी है। सिर्फ इसलिए कि जिससे उसका दिल ऑफिस में लगा रहे, उसके नाम पूरा माह आंबटित कर दिया गया है। हिंदी प्रेमी इस हरकत से भड़क न उठें इसलिए उनसे इस माह में खूब भाषण,...
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पापा, भैया लोग मुझे ऐसी अजीब सी नज़रों से क्यों घूर रहे थे?

ग्यारह बसंत पूरे कर चुकी मेरी बिटिया के एक सवाल ने मुझे न केवल चौंका दिया बल्कि उससे ज्यादा डरा दिया.उसने बताया कि आज ट्यूशन जाते समय कुछ भैया लोग उसे अजीब ढंग से घूर रहे थे.यह बताते हुए हुए उसने पूछा कि-"पापा भैया लोग ऐसे क्यों घूर रहे थे? भैया लोग से उसका मतलब उससे बड़ी उम्र के और उसके भाई जैसे लड़कों से था.खैर मैंने उसकी समझ के मुताबिक उसके सवाल का जवाब तो दे दिया लेकिन एक सवाल मेरे सामने भी आकर खड़ा हो गया कि क्या अब ग्यारह साल की बच्ची भी कथित भैयाओं की नजर में घूरने लायक होने लगी है? साथ ही उसका यह कहना भी चिंतन का विषय था कि वे अजीब निगाह से घूर रहे थे.इसका मतलब यह है कि बिटिया शायद महिलाओं को मिले प्रकृति प्रदत्त 'सेन्स' के कारण यह तो समझ गयी कि वे लड़के उसे आगे पढ़े:www.jugaali.blogspot.c...
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नुक्‍कड़ को गर्व है अपने लेखक असीम त्रिवेदी के दमदार कदम से

http://www.facebook.com/groups/462090727146650/ '''जीवंतता से जीने का कारगर मंतर''' मौत को अब तू मनाना सीख ले बुलाए मौत तुरंत जाना सीख ले मैं तैयार हूं आ मौत, कर मेरा सामना मैं नहीं करूंगा तुझे मना डर कर नहीं लूंगा नाम तेरा जानता हूं, मारना ही है काम तेरा डराना भी तूने अब सीख लिया है डरना नहीं है, जान ले, काम मेरा आए लेने तो करियो मौत पहले तू सलाम कबूल करूंगा सलाम तेरा नहीं डरूंगा भय की भीत पर मैं नहीं चढूंगा कर लिया है तय डर कर मैं एक बार भी नहीं मरूंगा मारना चाहेगी तू मुझे मैं तब भी नहीं डरूंगा मरूंगा, तैयार हूं मरने को लेकिन जी हुजूरी कभी नहीं करूंगा न मौत की न बीमारी की न सुखों को काटने वाली आरी की। दुखों से करूंगा प्यार मैं, यारी करूंगा लेकिन उधार लेकर नहीं मरूंगा नियम यह...
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रस्किन बांड पर एक अच्छी किताब

फ़ज़ल इमाम मल्लिकमसूरी की शोहरत वहां की पहाड़ियों की वजह से तो है ही, लेकिन एक और बात के लिए भी मसूरी देश-विदेश में जाना जाता है। पहाड़ियों पर बसे इस छोटे से शहर को रस्किन बांड के लिए भी जाना जाता है। ब्रिटिश मूल के अंग्रेजी के इस कथाकार ने अपने सामाजिक सरोकारों की वजह से एक ऐसी दुनिया रची है जिसमें बच्चे भी हैं और बड़े भी। हिमाचल प्रदेश के कसौली में जन्मे और जामनगर, दिल्ली, देहरादून व शिमला में पले-बढ़े रस्किन बांड बच्चों के प्रिय लेखक तो हैं ही, बड़े-बूढ़े भी उनकी रचनाओं के शैदाई हैं। क़रीब चार साल तक लंदन में रहे रस्किन बांड 1955 में भारत लौटे तो फिर भारत के ही होकर रह गए। मसूरी में उन्होंने अपने परिवार का विस्तार किया। यह परिवार यों तो उनका अपना नहीं था लेकिन उन्होंने अपने परिवार को राकेश और मुकेश...
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गोलमगोल से पोलमपोल तक

गोलमगोल से पोलमपोल तक टिप्‍पणी स्‍थल अपनी टिप्‍पणियां यहां पर समर्पित कर सकते हैं। अगर आपको यह ब्‍लॉग पसंद आया हो तो फॉलोवर बन सकते हैं। ब्‍लॉग फॉलो करने से यह आशय कतई नहीं है कि आप इन विचारों का अनुसरण कर रहे हैं। अपितु इस ब्‍लॉग पर पोस्‍ट की गई पोस्‍टों को पढ़ने में रुचि रखते हैं। ...
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उल्लू बदल गया

ऊल्लूक कानिठल्ला चिंतनकभी आपकोयहाँ अब अगरदिख जायेगामत घबराइयेगारात को भी देखता होआँख जो थोड़ा बहुतदिन में दिख  भी गयाउड़ता हुआ कहींकुछ नहीं कर पायेगा कोशिश फिरभी करेगा कुछ तो सावधानकर ही जायेगाकहने में चाहेशाख का उल्लू ही कहलायेगापर आदमी सीख लिया हैअब वो सब इसलिये शाखको उजाड़नेमें साथ नहीं  दे पायेगा...
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परिकल्पना-सम्मान और अपमान !

पढ़ते सब हैं लेकिन कमेंट बहादुर करते हैं तस्लीम-परिकल्पना समारोह-२०११ बीते २७ अगस्त को लखनऊ में कुशलतापूर्वक निपट गया.इस कार्यक्रम के पहले इतनी ज़्यादा गहमागहमी नहीं थी,पर अगले दिन जैसे ही प्रदेश भर के समाचार पत्रों में इस समारोह की चर्चा हुई ,कई लोग जो इसे अब तक निस्पृह भाव से देख रहे थे,इसके आयोजकों पर टूट पड़े ! इस समारोह की आलोचना करने वाले अब दो-धड़ों में विभक्त हो गए हैं.एक वे हैं,जिन्हें शुरुआत से ही ऐसे कार्यक्रम निरर्थक और वृथा लगते रहे हैं.उनकी आलोचना कुछ हद तक इस मायने में तार्किक लगती है.स्वयं मुझे भी पुरस्कार और सम्मान की भारतीय-परंपरा में पारदर्शिता की घोर कमी दिखती है.यह सरकारी-गैर सरकारी आयोजनों में समान रूप से लागू होता है.तो क्या इसके चलते यह परंपरा खत्म कर देनी चाहिए,बिलकुल...
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अगले बरस के नुक्‍कड़डॉटकॉम महाशिखर सम्‍मान की घोषणा

सच्चा हिंदी ब्लॉगर वही जो धन न कमाए बेहियाब, बे-वज़ह विवाद बढ़ाए अगले बरस नुक्कड़ॉडॉटकॉम देगा इन्हीं उपलब्‍धियों पर पुरस्कार और करेगा महाशिखर सम्मान कौन योग्य हैं इनके सब परिचित हैं सो कोई तनिक विरोध न करेगा पंडित और विद्वान में न हो मुकाबला कड़ा न हो बखेड़ा इसलिए दोनों को मंच पर खड़ा करके हाथों में थमाए जाएंगे...
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अविनाश वाचस्‍पति को ‘प्रगतिशील ब्‍लॉग लेखक संघ चिट्ठाकारिता शिखर सम्‍मान’ से नवाजा गया और 'व्‍यंग्‍य का शून्‍यकाल' का लोकार्पण

प्र गतिशील ब्‍लॉग लेखक संघ चिट्ठाकारिता शिखर सम्‍मान स्‍वीकारते हुए अविनाश वाचस्‍पति। साथ में हैं डॉ. सुभाष राय,  साहित्‍यकार उद्भ्रांत, कथाक्रम के संपादक शैलेन्‍द्र सागर और शिखा वार्ष्‍णेय 'व्‍यंग्‍य का शून्‍यकाल' का लोकार्पण करते हुए दाएं से कहानीकार शिवमूर्ति, व्‍यंग्‍यकार गिरीश पंकज,  उद्भ्रांत,  कथाक्रम के संपादक शैलेन्‍द्र सागर, डॉ. अरविन्‍द मिश्र, व्‍यंग्‍य संग्रह के लेखक अविनाश वाचस्‍पति, शिखा वार्ष्‍णेय, डॉ. सुभाष राय, रवीन्‍द्र प्रभात और डॉ. हरीश अरोड़ा  हिंदी एवं ब्‍लॉगहित में इस समाचार को आप 'नुक्‍कड़' का लिंक देकर प्रकाशित कर सकते हैं।  लखनऊ। नवाबों की नगरी और उत्‍तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में बीते सप्‍ताह चर्चित व्‍यंग्‍यकार, स्‍तंभ...
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