विश्व हिंदी सम्मेलन जोहानीसबर्ग से :
जोहानीसबर्ग में आयोजित नौवें विश्व हिंदी
सम्मेलन के दौरान हुए प्रौद्योगिकी सत्र में हिंदी से जुड़े अहम तकनीकी मुद्दों,
समस्याओं और लक्ष्यों पर चर्चा की गई और सुझाव दिए गए। सत्र का विषय था- सूचना
प्रौद्योगिकीः हिंदी और देवनागरी का सामर्थ्य।
सत्र का संचालन प्रभासाक्षी.कॉम के संपादक
और चर्चित तकनीकविद् बालेन्दु शर्मा दाधीच ने किया। इसमें वरिष्ठ तकनीकविद् डॉ. ओम
विकास, प्रसिद्ध कवि तथा तकनीक-प्रेमी अशोक चक्रधर, सीडैक (पुणे) के जिस्ट समूह के
सहयोगी निदेशक महेश कुलकर्णी, नागरी लिपि परिषद के महासचिव तथा नागरी के प्रसिद्ध
विद्वान डॉ. परमानंद पांचाल और डेवलपर जगदीप दांगी शामिल थे। मुख्य अतिथि सांसद
अलका बलराम क्षत्रिय और विशिष्ठ अतिथि राजद नेता रघुवंश प्रसाद सिंह थे।
बालेन्दु दाधीच ने कहा कि न्यूयॉर्क में
हुए आठवें विश्व हिंदी सम्मेलन और मौजूदा सम्मेलन के दौरान पाँच साल की अवधि में
हिंदी में उत्साहजनक तकनीकी प्रगति हुई है। तकनीकी दुनिया में हिंदी की बुनियादी
समस्या, मानकीकृत सार्वत्रिक टेक्स्ट एनकोडिंग प्रणाली का अभाव, यूनिकोड की आशातीत
सफलता के साथ लगभग हल हो चुकी है। इसने मानकीकरण की अहमियत को सिद्ध करने के
साथ-साथ यह संदेश दिया है कि तकनीक के दूसरे क्षेत्रों में भी मानकों के विकास,
क्रियान्वयन तथा जागरूकता-प्रसार की आवश्यकता है। अब टेक्स्ट इनपुट, फॉन्ट
निर्माण, उच्चारण व ध्वनि संबंधी फ़ोनीकोड मानकीकरण आदि पर फोकस किए जाने की जरूरत
है ताकि तकनीकी क्षेत्र में हिंदी की जड़ें जमाने के लिहाज़ से सुस्पष्ट तथा
मानकीकृत जेनेरिक पृष्ठभूमि तैयार हो सके। इससे नए सॉफ्टवेयरों, अनुप्रयोगों तथा
कन्टेन्ट प्लेटफॉर्मों का विकास गति पकड़ेगा और अंग्रेजी की ही तरह विभिन्न डिजिटल
डिवाइसेज, ऑपरेटिंग सिस्टमों, वेब-तंत्रों, संचार माध्यमों आदि में हिंदी की प्रोसेसिंग
में एकरूपता आ सकेगी।
श्री दाधीच ने कहा कि पिछले पाँच साल में
हिंदी से जुड़ी तकनीकी चिंताओं, मुद्दों, चुनौतियाँ, फौरी लक्ष्यों तथा दूरगामी
योजनाओं का चेहरा बदल गया है। पहले यूनिकोड को आम लोगों तक पहुँचाना, फॉन्ट
कनवर्जन की समस्याओं को दूर करना, आम जरूरत के अनुप्रयोगों का विकास, ब्लॉगिंग की
लोकप्रियता तथा इंटरनेट पर हिंदी कन्टेन्ट की मौजूदगी सुदृढ़ बनाना अहम लक्ष्य था।
लेकिन आज इनमें से अधिकांश उद्देश्यों को थोड़ी या अधिक सफलता प्राप्त हो चुकी है।
सरकारी, गैर-सरकारी संस्थानों तथा विश्व भर में फैले उत्साही हिंदी सेवी डेवलपर्स
ने हिंदी का तकनीकी माहौल बदलने में अहम भूमिका निभाई है। लेकिन साथ ही साथ वह
अपने आसपास हो रहे बदलावों से भी प्रभावित हो रही है। सोशल नेटवर्किंग की बढ़ती
लोकप्रियता, टैबलेट व स्मार्टफोन जैसी शक्तिशाली हैंडहेल्ड डिवाइसेज का धमाकेदार
आगमन, ई-बुक जैसे नए कन्टेन्ट माध्यमों का उभार, दूरसंचार माध्यमों का सशक्त होना,
आम लोगों तक मोबाइल फोन के रूप में एक तकनीकी युक्ति का पहुँचना और इंटरनेट का
इस्तेमाल अपेक्षाकृत सुलभ होना ऐसे अहम कारक हैं जो हिंदी के तकनीकी विकास की दिशा
बदल रहे हैं। आज हमारी चिंताएँ आधुनिक हिंदी अनुप्रयोगों के विकास के साथ-साथ
हिंदी इंटरनेट डोमेन नेम, हैंडहेल्ड डिवाइसों के अऩुकूल तकनीकी विकास, सोशल
नेटवर्किंग जैसे मंचों का हिंदी के हित में उपयोग, ई-बुक्स तथा दूसरे रूपों में
हिंदी कन्टेन्ट को सुलभ कराना तथा दैनिक जन-जीवन में प्रयुक्त तकनीकी सेवाओं के
हिंदीकरण की दिशा में बढ़ी हैं जो इस बात का प्रमाण है कि तकनीकी क्षेत्र में
हिंदी एक सीढ़ी ऊपर चढ़ चुकी है।
बालेन्दु दाधीच ने कहा कि यूनिकोडोत्तर
हिंदी के तकनीकी विकास का यह दूसरा चरण उचित परिणति तक पहुँचे इसके लिए विभिन्न माध्यमों
में गंभीर प्रयास किए जाने की जरूरत है। हमारी ज़रूरतों का कैनवस बहुत विस्तृत है
जिसमें आम प्रयोक्ता को सशक्त बनाने से लेकर दिग्गज तकनीकी कंपनियों को साथ लेने,
सेवाओं के हिंदीकरण और इंटरनेट पर हिंदी कन्टेन्ट को अंग्रेजी की तर्ज पर ही
विस्तार देने की जरूरत है।
सत्र के बीज वक्ता प्रो. ओम विकास ने
विभिन्न ऑपरेटिंग सिस्टमों, युक्तियों तथा वेब-माध्यमों में हिंदी से जुड़ी तकनीकी
समस्याओं का विस्तृत विवरण देते हुए उनके समाधान के बिंदु भी सुझाए। उन्होंने
सुझाव दिया कि यूनिकोड की तर्ज पर फोनीकोड मानक पर तुरंत काम शुरू किया जाना चाहिए
तथा भारत सरकार द्वारा विकसित करवाए गए यूनिकोड समर्थित हिंदी फॉन्ट्स को आम लोगों
के साथ-साथ वाणिज्यिक सॉफ्टवेयरों में भी इस्तेमाल के लिए खोल दिया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि जल्दी ही हिंदी डोमेन नेम (आईडीएन) का प्रयोग सफल होने के बाद
इंटरनेट पर हिंदी सेवाओं तथा अनुप्रयोगों को नई ऊर्जा तथा सक्षमता मिलेगी। उन्होंने
हिंदी की भाषायी मजबूती की तरफ इशारा करते हुए कहा कि देवनागरी लिपि पाणिनी की
सारिणी पर आधारित है जो न सिर्फ बेहद वैज्ञानिक ढंग से तैयार की गई थी बल्कि उसमें
ध्वनियों को विशेष महत्व दिया गया था।
अशोक चक्रधर ने कहा कि तकनीकी क्षेत्र में
हिंदी में कामकाज को बढ़ावा देने के लिए कीबोर्ड के मुद्दों पर काम किया जाना बहुत
जरूरी है। जिन लोगों के पास पर्याप्त तकनीकी साधन नहीं हैं यदि वे हिंदी में काम
करने के लिए रोमन (ट्रांसलिटरेशन) कीबोर्ड का प्रयोग करते हैं तो इसमें हर्ज नहीं
है, लेकिन मानकीकरण की अहमियत को देखते हुए मानक कीबोर्ड (इनस्क्रिप्ट) के बारे
में जागरूकता पैदा करने और सभी डिजिटल युक्तियों के लिए इनस्क्रिप्ट टेक्स्ट इनपुट
के साधन तैयार करने की जरूरत है। महेश कुलकर्णी ने सीडेक की तरफ से किए गए तकनीकी
विकास का खाका पेश किया।
सांसद अलका बलराम क्षत्रिय ने भी कहा कि
जब भारत में हिंदी टेक्स्ट इनपुट के लिए मानक कीबोर्ड लेआउट मौजूद है और उसे सरकार
का समर्थन भी प्राप्त है तो उसे अपनाने में देरी नहीं की जानी चाहिए। राजद नेता
रघुवंश प्रसाद सिंह ने कहा कि जिस तरह बेहतर सम्प्रेषण के लिए भाषा का जनता से
तालमेल ज़रूरी है, उसी तरह तकनीक को भी आम भाषा तथा आम लोगों के प्रति सरोकार
दिखाना चाहिए। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में विश्व भर से आए हिंदी प्रेमी और
दक्षिण अफ्रीका के उत्साही लोग मौजूद थे।