रस्किन बांड पर एक अच्छी किताब

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  • फ़ज़ल इमाम मल्लिक
    मसूरी की शोहरत वहां की पहाड़ियों की वजह से तो है ही, लेकिन एक और बात के लिए भी मसूरी देश-विदेश में जाना जाता है। पहाड़ियों पर बसे इस छोटे से शहर को रस्किन बांड के लिए भी जाना जाता है। ब्रिटिश मूल के अंग्रेजी के इस कथाकार ने अपने सामाजिक सरोकारों की वजह से एक ऐसी दुनिया रची है जिसमें बच्चे भी हैं और बड़े भी। हिमाचल प्रदेश के कसौली में जन्मे और जामनगर, दिल्ली, देहरादून व शिमला में पले-बढ़े रस्किन बांड बच्चों के प्रिय लेखक तो हैं ही, बड़े-बूढ़े भी उनकी रचनाओं के शैदाई हैं। क़रीब चार साल तक लंदन में रहे रस्किन बांड 1955 में भारत लौटे तो फिर भारत के ही होकर रह गए। मसूरी में उन्होंने अपने परिवार का विस्तार किया। यह परिवार यों तो उनका अपना नहीं था लेकिन उन्होंने अपने परिवार को राकेश और मुकेश में तलाशा और आज उनके बच्चों में उस परिवार को पाकर सकून महसूस कर रहे हैं। परिवार का यह विस्तार उनके मानवीय सरोकारों का दस्तावेज़ भी है। गणेश सैली की पुस्तक ‘रस्किन बांड: द मसूरी इयर्स...’ के ज़रिए ऐसी ही कुछ दिलचस्प बातें अपने समय के इस मशहूर लेखक के बारे में जानने को मिलती है।
    गणेश सैली मूलत: फोटोग्राफर हैं और हिमलियाई क्षेत्र में उन्होंने लंबा समय बिताया है। गणेश सैली ने पहाड़ों के जीवन को बेहतर ढंग से देखा है। पहाड़ों में हाल के कुछ सालों में जो बदलाव आया है, वे इसके भी गवाह रहे हैं। रस्किन बांड के साथ उनका साथ क़रीब चार दशक का है। यह किताब दरअसल चालीस साल के उन रिश्तों का दस्तावेज़ तो है ही, एक दोस्त का दूसरे दोस्त के लिए नायाब तोहफ़ा भी। गणेश सैली ने रस्किन बांड के कुछ यादगार और दुर्लभ लम्हों को अपने कैमरे में क़ैद किया है। उन तस्वीरों के साथ लेखक ने पुस्तक में उन अनुभवों को भी साझा किया है जो चालीस साल की यात्रा के दौरान उन्होंने रस्किन बांड के साथ-साथ चलते हुए देखा है, सहेजा है और महसूस किया है। एक लेखक के जीवन में जो घटित होता है, गणेश सैली ने उसे संकलित किया है, ऐतिहासिक और यादगार तस्वीरें तो हैं ही। इन तस्वीरों के अलावा रस्किन बांड को लिखे कुछ पत्रों का प्रकाशन भी किया गया है और ये पत्र पुस्तक को और भी महत्त्वपूर्ण बनाते हैं। पुस्तक की शुरुआत बहुत ही दिलचस्प ढंग से शुरू होती है। रस्किन बांड के नाम को लेकर एक महिला को संशय था। रस्किन बांड ने उन्हें यक़ीन दिलाने की कोशिश भी की। उन्हें बताया कि उनका नाम रस्किन बांड ही है। लेकिन महिला यह मानने के लिए तैयार ही नहीं थीं। तब रस्किन ने उन्हें बताया कि दक्षिण में उन्हें ‘रस्किन बांडा’ के नाम से पुकारा जाता है तो पंजाबी उन्हें ‘रेकसिन बांड’ कहते हैं। मसूरी आने, उनके स्कूल से जुड़ने का क़िस्सा भी रोचक ढंग से बताया गया है। इनके अलावा उनके जीवन से जुड़ी और भी कई बातों की जानकारी हमें मिलती है। रस्किन बांड को जानने-समझने में यह पुस्तक मदद देती है। राकेश, मुकेश, उनके बच्चों के साथ-साथ विक्टर बनर्जी वगैरह की तस्वीरें देख कर अच्छा लगता है और जीवन से जुड़े उनके सरोकारों का पता भी चलता है।

    रस्किन बांड: द मसूरी इयर्स... (संस्मरण), लेखक: गणेश सैली, प्रकाशक: नियोगी बुक्स, डी-78 ओखला इंडस्ट्रियल एरिया, फेज-1, नई दिल्ली-110020, मूल्य: 1495 रुपए।

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