साझी विरासत के अलमबरदार

Posted on
  • by
  • http://sanadpatrika.blogspot.com/
  • in
  • फ़ज़ल इमाम मल्लिक
    हिंदी-उर्दू के सवाल भारत में अक्सर तलवारें खिंची रहती हैं और इसे लेकर सियासत भी कम नहीं होती है। कई बार भाषा को लेकर यह विवाद आपसी रिश्तों में भी कड़वाहट घोल देता है। लेकिन हिंदी-उर्दू के सवालों को परे रख कर आस्ट्रेलिया में बसे भारत-पाकिस्तान के शायरों और कवियों ने एक बड़ी लकीर खींच कर हमें यह बताने की कोशिश की है कि साहित्य की कोई भाषा नहीं होती और अदब एक बेहतर और रोशन दुनिया बसाने का ज़रिया है। इसे क़बीलों, धर्म और मज़हब के साथ जोड़ कर नहीं देखा जा सकता।
    कुछ दिन पहले कवि-मित्र हरिहर झा का मेल मिला था। उन्होंने अपने मेल में इस बात का ज़िक्र किया था कि आस्ट्रेलिया में रह रहे कवियों-शायरों का एक साझा संग्रह ‘गुलदस्ता’ का प्रकाशन भारतीय विद्या भवन ने किया है। संग्रह में उर्दू और हिंदी दोनों ही रस्मुलख़त में रचनाएं प्रकाशित की गर्इं है। मैं चाहता हूं आप इसे पढ़ें। अपने मेल में उन्होंने संग्रह की समीक्षा की बात भी कही थी। मुझे क्या उज्रÞ हो सकता था। जवाबी मेल भेज कर मैंने उन्हें संग्रह की प्रति भेजने को कहा।
    हरिहर झा से क़रीब दो साल पहले मेरा परिचय हुआ था। मेरी लिखी कुछ समीक्षाएं, आलेख और कुछ दूसरी चीजें उन्होंने नेट पर पढ़ी थीं। फिर मेल के ज़रिए एक-दूसरे से परिचय हुआ था। उन्होंने मुझे अस्ट्रेलिया में रह रहे कवियों का संग्रह ‘बूमरैंग’ भेजा था। आस्ट्रेलिया में बस गए हिंदी भाषी कवियों के उस संग्रह की रचनाओं में देश की मिट्टी की महक को महसूस किया जा सकता था। साथ ही अपनी भाषा को लेकर एक अलग तरह का अनुराग उनमें था, जो अच्छा लगा था। इस बार हिंदी-उर्दू ही नहीं भारत और पाकिस्तान के लोगों ने इस काम को विस्तार दिया है। ‘गुलदस्ता’ (संपादक: गंभीर वत्स, अब्बास रज़ा अलवी और ज़फ़र सिद्दीक़ी) इसकी तसदीक़ इन पंक्तियों के साथ करता है- ‘बस्ती बस्ती जंगल जंगल / हिंदी उर्दू को साथ लिए / गुज़रे पथरीली राहों से / ऐ तेज़ हवाओं के झोंको / मत रौंदो नन्ही कलियों को / हिंदी उर्दू की बगिया में / जो खिलती है अरमानों से (अब्बास रज़ा अलवी)’।
    ‘गुलदस्ता’ में सैंतालीस कवि-शायरों की कविताएं, गीत, नज्Þमें और ग़ज़लें शामिल हैं। अब्बास गिलानी, अब्बास रज़ा अलवी, अनिल वर्मा, अनीता बरार, अरशद सईद, अशरफ़ शाद, चौधरी फ़ुरक़ान अली, अरशद सईद, फ़रहत इक़बाल, फ़रीदा लखानी, ग़जÞाला फ़सीह सना, हैदर रिज़वी, हरिकृष्ण जुलका, हरिहर झा, हेमंत कुमार तन्ना, कैलाश भटनागर, कमलेश चौधरी, कनीज़ फ़ातिमा किरण, किशोर नांगरानी, मोहम्मद अली, मृदुला कक्कड़, नादिया मंज़ूर शाह, नलिन कांत, ओमकृष्ण राहत, पीर तरीन, राजेंद्र चोपड़ा राजन, रज़ा किरमानी, रेहान अलवी, रेखा राजवंशी, रियाज़ शाह, सादिक़ आरिफ़, सैफ़ चोपड़ा, शाहिद तिरमज़ी, शहला वाहिद, शैलजा चतुर्वेदी, शमीम इस्हाक़, शुजा आतिफ़, सुभाष शर्मा, सैयद नज्म सिबतैन हसनी, सैयद नसीम हैदर, सैयद शब्बीर हैदर, तनवीर नासिर ख़ान, तौक़ीर हसनैन, वीणा गुप्ता, वक़ार फ़ातिमा इस्हाक़, यासमीन शाद, यासमीन ज़ैदी नकहत की रचनाओं से सजा यह गुलदस्ता गंगा-जमुनी तहज़ीब का आईना तो है ही, मुल्क की सरहदों और ज़बान की बंदिशों से रचना को निकाल कर एक बड़े और विशाल दुनिया से उसे जोड़ता है।
    संग्रह की कविताएं हमारी उंगिलयां पकड़ कर एक हमें एक ऐसे संसार में ले जाती हैं, जहां जीवन कई-कई रंगों में हमसे सरोकार बनाती है। इन कविताओं में हिज्रो-विसाल भी हैं, राज़ो-नियाज़ भी, इश्क़ो-मोहब्बत भी है, इंतज़ार और वस्ल की बातें भी हैं। देस की मिट्टी की सौंधी ख़ुशबू भी है और परदेस में रहने का दर्द भी। वतन की याद में आंखें बारहा नम होती हैं और नम आंखों से लिखी कई कविताएं संग्रह में शामिल की गई हैं। रिश्तों की एक महक भी इन कविताओं में फैली दिखाई देती हैं जो सरहदों को लांघ कर हिंदुस्तान और पाकिस्तान के घरों तक पहुंचती है। साहित्य और अदब के ज़रिए दोनों मुल्कों के बीच पनपी खाई को पाटा जा सकता है, संग्रह की कुछ कविताएं इस सच की अक्कासी करती हैं।
    आस्ट्रेलिया में रह रहे इन शायरों और कवियों ने इस संग्रह का प्रकाशन कर एक बड़ा काम किया है। हिंदुस्तान में इस तरह का प्रयोग अब तक नहीं हुआ है, लेकिन ‘गुलदस्ता’ को नज़ीर मान कर अगर ऐसी कोशिश की जाए तो भाषाओं की सियासत करने वालों को जवाब दिया जा सकता है। संग्रह की कविताओं में जीवन के जो विभिन्न शेड्स हैं उसमें हम अपना होना महसूस करते हैं। यह संग्रह मोहब्बत की एक नई इबारत लिखेगा और आस्ट्रेलिया से दूर भारत और पाकिस्तान में भी इस गुलदस्ता के फूलों की ख़ुशबू पहुंचेगी, ऐसी उम्मीद तो की ही जा सकती है।
    गुलदस्ता (काव्य संग्रह): संपादक: गंभीर वत्स, अब्बास रज़ा अलवी और ज़फ़र सिद्दीक़ी, प्रकाशक: भारतीय विद्या भवन, 100 / 515 केंट स्ट्रीट, सिडनी एनएसडब्लू 2000 (आस्ट्रेलिया), मूल्य: 550 रुपए व साढ़े सत्ताइस डालर।

    2 टिप्‍पणियां:

    आपके आने के लिए धन्यवाद
    लिखें सदा बेबाकी से है फरियाद

     
    Copyright (c) 2009-2012. नुक्कड़ All Rights Reserved | Managed by: Shah Nawaz