ऊल्लूक का
निठल्ला चिंतन
कभी आपको
यहाँ अब अगर
दिख जायेगा
मत घबराइयेगा
रात को भी
देखता हो
आँख जो
थोड़ा बहुत
दिन में दिख
भी गया
उड़ता हुआ कहीं
कुछ नहीं
कर पायेगा
कोशिश फिर
भी करेगा
कुछ तो सावधान
कर ही जायेगा
कहने में चाहे
शाख का
उल्लू ही
कहलायेगा
पर आदमी
सीख लिया है
अब वो सब
इसलिये शाख
को उजाड़ने
में साथ
नहीं दे पायेगा !
निठल्ला चिंतन
कभी आपको
यहाँ अब अगर
दिख जायेगा
मत घबराइयेगा
रात को भी
देखता हो
आँख जो
थोड़ा बहुत
दिन में दिख
भी गया
उड़ता हुआ कहीं
कुछ नहीं
कर पायेगा
कोशिश फिर
भी करेगा
कुछ तो सावधान
कर ही जायेगा
कहने में चाहे
शाख का
उल्लू ही
कहलायेगा
पर आदमी
सीख लिया है
अब वो सब
इसलिये शाख
को उजाड़ने
में साथ
नहीं दे पायेगा !
वाह...!
जवाब देंहटाएंअच्छी विवेचना है!
आपने 'ऊल्लूक का निठल्ला' लिखा, मैंने ग़लती से 'उल्लू का पट्ठा' पढ़ मारा :(
जवाब देंहटाएंकाजल लगाने से ऎसा हो जाता है
हटाएंआँखे सुंदर तो हो जाती हैं पर
कुछ का कुछ पढ़ दिया जाता है !
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंइस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (08-09-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!