पढ़ते सब हैं लेकिन कमेंट बहादुर करते हैं |
तस्लीम-परिकल्पना समारोह-२०११ बीते २७ अगस्त को लखनऊ में कुशलतापूर्वक निपट गया.इस कार्यक्रम के पहले इतनी ज़्यादा गहमागहमी नहीं थी,पर अगले दिन जैसे ही प्रदेश भर के समाचार पत्रों में इस समारोह की चर्चा हुई ,कई लोग जो इसे अब तक निस्पृह भाव से देख रहे थे,इसके आयोजकों पर टूट पड़े !
इस समारोह की आलोचना करने वाले अब दो-धड़ों में विभक्त हो गए हैं.एक वे हैं,जिन्हें शुरुआत से ही ऐसे कार्यक्रम निरर्थक और वृथा लगते रहे हैं.उनकी आलोचना कुछ हद तक इस मायने में तार्किक लगती है.स्वयं मुझे भी पुरस्कार और सम्मान की भारतीय-परंपरा में पारदर्शिता की घोर कमी दिखती है.यह सरकारी-गैर सरकारी आयोजनों में समान रूप से लागू होता है.तो क्या इसके चलते यह परंपरा खत्म कर देनी चाहिए,बिलकुल नहीं.इनके माध्यम से विचार-विमर्श और मेल-मिलाप का सुखद संयोग तो बनता ही है,सम्मान पाने वाले थोड़े समय के लिए अभिभूत हो लेते हैं,प्रेरित भी हो सकते हैं.इसमें ज़्यादा हर्ज़ नहीं है.इसके साथ ही यह बात भी बिलकुल साफ़ है कि सम्मान से बचे हुए लोग क्या अपमानित हो गए ? यही धारणा नकारात्मक रूप से इस समय ब्लॉग-जगत में फैलाई जा रही है.
दूसरे लोग वे हैं जिन्हें यह आयोजन खूब पसंद है.वे वहाँ लहक-लहक कर फोटो भी खिंचवाते हैं.आयोजन के पहले सम्मान को प्रचारित करते हैं पर यदि मंचासीन न हुए या समयाभाव के कारण बोलने का अवसर नहीं मिला तो आयोजकों के सारे किये-कराये पर पानी भी फेरने लग जाते हैं.अपने सम्मान की कुर्सी उन्हें किसी नेता जैसी या घर आए पाहुन जैसी संवेदनशील लगती है,जिसके इंचमात्र खिसकने भर से उनका अपमान हो जाता है.ऐसे लोग क्या समझ कर ब्लॉगर-मिलन में जाते हैं ? क्या इन्होंने कोई ओलिम्पिक का मैडल या साहित्य का नोबेल जीता है ?
मुझ खाकसार को भी उदीयमान-ब्लॉगर सम्मान दिया गया जिसकी सूचना लखनऊ जाने के पन्द्रह दिन पहले मेल से रवीन्द्र जी ने दी थी.मैं इस तरह के पुरस्कारों या सम्मान का व्यक्तिगत रूप से हिमायती नहीं हूँ,फ़िर भी आयोजकों के ब्लॉगर-मिलन के इस उत्साह को फीका भी नहीं करना चाहता था.मैंने बहुत पहले ही सबसे मिलने के लिए टिकट बुक करवा ली थी और गया भी इसी उद्देश्य से था.वहाँ जाकर मैं चाहता तो पाहुन की तरह बैठकर अपने को सम्मानित करवाता लेकिन दोस्तों की खुशियों को समेटने के लिए मैं लगातार चार-पाँच घंटे खड़े रहकर फोटोग्राफ़ी करता रहा.मुझे रत्ती-भर इसमें अपना अपमान नहीं लगा,तब भी जब समयाभाव के कारण एक सत्र स्थगित कर दिया गया.इसमें शास्त्री जी,सिद्धेश्वर जी ,रविकर जी ,चंडीदत्त जी सहित मैं भी वक्ताओं में शुमार था,पर शास्त्री जी को ही इतने ज़्यादा अपमान की अनुभूति हुई कि बाकी सभी बातें गौण हो गईं.मुझे सिद्धेश्वर जी के लिए ज़रूर दुःख हुआ था और उन्होंने सार्वजनिक रूप से इसे व्यक्त न करके बड़प्पन का परिचय दिया है.
इस समय शास्त्री जी के अपमान की चर्चा ज़ोरों पर है.स्वयं वे वहाँ खूब घूम-घूमकर फोटो खिंचवाने में तल्लीन थे और यहाँ तक कि अपने परिचय-पत्र को मंच तक बांटने से भी परहेज नहीं किया जबकि सत्र चल रहा था.मुझे लगता है कि नेताओं की संगति से ही उनका सम्मान इतना संवेदनशील हो गया है.वे वरिष्ठ हैं और उनको भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए.हँसी आती है जब उनकी वक़ालत ऐसे लोग कर रहे हैं जिनके यहाँ उन्हें पिता बनाकर अपमानित किया गया था .शास्त्री जी से बेहद विनम्रता से यह निवेदन है कि वे सम्मानित करने वालों और अपमानित करने वालों की पहचान कर लें.मुझसे यदि धृष्टता हुई हो तो भी माफ करेंगे,पर अनर्गल बातों को रोकना भी ज़रूरी है.
आयोजन को लेकर सबसे ज़्यादा वे लोग सवाल उठा रहे हैं,जिनको इस तरह का कोई अनुभव नहीं है और न वे ऐसे समारोहों के प्रोटोकॉल समझते हैं.भई ,रवीन्द्र भाई ने अकेले ऐसे कार्यों का ठेका तो नहीं ले रखा है,जिसको लगता है कि वे इस बहाने अपना एजेंडा पूरा कर रहे हैं तो वे भी कुछ करके अपना एजेंडा पूरा कर लें.केवल एक-आध पोस्ट लिख देने भर से कोई ब्लॉगर-हितैषी नहीं बन जाता .आधा सच वाले सज्जन को पूरा झूठ लिखना ज़्यादा भाता है.उनके ब्लॉग में कई आलोचनात्मक और शालीन टीपों को तो रोक दिया गया ,पर 'शेख चिल्ली का बाप' जैसे झूठी प्रोफाइल वाले लोग उन्हें तार्किक और अर्थपूर्ण लगते हैं.परिकल्पना -समारोह में शामिल होने वाले कितने आनंदित होकर लौटे हैं पर उन्हें यह मेल-मिलाप 'ब्लैक-डे' दिखता है.हर समारोह में छोटी-मोटी दिक्कतें या चूकें हो जाती हैं तो क्या इस वज़ह से पूरा कार्यक्रम व्यर्थ हो गया ? अगर समयाभाव के कारण सत्र नहीं हो पाया या किसी को उपयुक्त कुर्सी नहीं मिलि तो सारा विमर्श बेकार गया ? यह आधा सच नहीं पूरा झूठ है !
अल्पना वर्मा जी ने एक जगह आयोजन से सम्बंधित सुनी-सुनाई बातों के आधार पर बड़ा खेद व्यक्त किया है.वे इतनी भावुक हो गई कि उन्हें पूर्व में मिले हुए सम्मान को वापस करने की बात भी कह दी है.आयोजकों को इस बात को नोटिस में लिया जाना चाहिए कि जो लोग उनके द्वारा दिए सम्मान का मोल नहीं समझते उसे निरस्त क्यों न कर दिया जाए ?अल्पना जी ,एक सुलझी हुई ब्लॉगर हैं और उनसे ऐसे हल्के बयान की उम्मीद नहीं थी.अल्पना जी को इन आलोचनाओं के पीछे हो रही दुरभिसंधियों पर गौर करना होगा.कुछ लोग निहित उद्देश्य लेकर एक सार्थक पहल को पलीता लगाने में जुटे हैं जिसमें वे सफल नहीं होंगे !
रवीन्द्र जी से यदि कोई चूक हुई है तो महज़ इतनी कि कम समय में उन्होंने कई सत्र जोड़ दिए.यह कार्यक्रम वास्तव में एक दिन में सिमटने लायक नहीं रहा.ब्लॉगर्स अनौपचारिक रूप से तो मिल लिए पर एक औपचारिक सत्र की नितांत आवश्यकता थी.सकारात्मक आलोचनाओं से हौसला टूटता नहीं,बढ़ता है,जबकि कुछ लोग निजी सम्मान को बड़ा मुद्दा बनाकर सम्मान हथियाना चाहते हैं.यहाँ यह बिलकुल साफ़ है कि जो सम्मानित हुए हैं उनसे रत्ती-भर भी कम उनका सम्मान नहीं है जो इस सूची से रह गए.कोई भी सम्मान या पुरस्कार मिलने वाले को गौरवान्वित करता है, न कि न मिलने वाले को अपमानित !
ब्लॉगिंग में ऐसे मौकों पर हम राजनीति ही क्यों देखते हैं ?अपने पूर्वाग्रहों को त्यागकर हम सम्मान की बजाय सार्थक लेखन में ध्यान लगाएं तो बेहतर होगा !
''हैप्पी एंडिंग,हैप्पी ब्लॉगिंग "
behad sahi aur santulit baat ke liye badhai....
जवाब देंहटाएंआभार गिरीश जी....
हटाएंसहमत ..आयोजन हुआ यही बहुत बड़ी बात है ..कमियाँ निकालना ..आलोचना करना बहुत बहुत आसान है ..किसी ने इस तरह के प्रोग्राम को करने का बीड़ा लिया है तो वही बहुत बहुत बड़ी बात है ..अच्छा सही लिखा है आपने
जवाब देंहटाएंशुक्रिया रंजू जी...।
हटाएंओपन परामर्श अच्छा है.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया जनाब !
हटाएंहैप्पी ब्लॉगिंग
जवाब देंहटाएंएवमस्तु ।
हटाएंनुक्कड़ पर हो भर्त्सना, सही संतुलित शब्द |
जवाब देंहटाएंअच्छाई सह खामियाँ, देखें लिखे दशाब्द |
देखें लिखे दशाब्द, चूक को माफ़ कीजिये |
अनियमतायें व्याप्त, सभी दायित्व लीजिये |
कह रविकर करजोर, बनों न मित्रों थुक्कड़ |
लो कमियों से सीख, करो जगमग फिर नुक्कड़ ||
आत्ममंथन की ज़रूरत सभी को है ।
हटाएंसम्मान रूपी शहद में अपनी खाई हुई मूंगफलियों के छिलके डुबोकर स्वाद लेने वाले यह जान लें कि वक्त उन्हें उनके कृत्य के लिए कभी माफ नहीं करेगा। अब भी संभल जाएं तो बेहतर है।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंपरिकल्पना की कल्पना,बढ़ती जाये और
हटाएंनही घटेगा शोर से,लगा ले जितना जोर,,,,,
RECENT POST,तुम जो मुस्करा दो,
कोई व्यक्ति कला, संगीत और साहित्य की उत्कृष्ठ कृतियों में भी दोष निकाल लेता है,पर उनकी मनोहरता और महिमा का आनंद नहीं ले पाता । किसी ने ठीक ही कहा है कि "उजाला और अंधेरा जीवन के दो पहलू हैं, क्योंकि सापेक्षता का यह संसार प्रकाश और छाया की रचना है । यदि तुम अपने विचारों को बुराई पर जाने दोगे तो तुम स्वयं कुरूप हो जाओगे । प्रत्येक वस्तु में केवल अच्छाई को ही देखो ताकि तुम सौन्दर्य के गुण को आत्मसात कर सको ।"
जवाब देंहटाएंआलोचना यदि स्वस्थ हो तो उसका अपना एक अलग आनंद है । करने वाले को भी मजा आता है और पढ़ने-सुनने वाले को भी । यदि आप दूसरे से कुछ अपेक्षा नहीं रखते तो दूसरों के कार्य आपकी इच्छा के विपरीत हो ही नहीं सकते ।
आपने काफी अच्छी और संतुलित समीक्षा प्रस्तुत की है और इसके लिए आप बधाई के पात्र हैं ।
मुझे लगता है कि ब्लॉग जगत में अनूप शुक्ल के बाद महेंद्र श्रीवास्तव के रूप में एक नए आलोचक पैदा हुये हैं , जिन्हें कभी भी पूरा सच कहने की हिम्मत नहीं रही, हमेशा आधा सच से काम चला लेते हैं । जिन्हें अपनी आलोचना में इस बात का भी भान नहीं होता कि महिलाओं के बारे में कैसी टिप्पणी की जाये ? एक तरफ तो रश्मि जी को रश्मि दीदी कहते हैं और दूसरी तरफ उन्हे प्राप्त सम्मान पर उंगली उठाते हैं । महेंद्र जी को मैंने हमेशा बहुत सुलझा हुआ पाया है .... पर इस बार परिकल्पना सम्मान समारोह के बारे में इनहोने जो कुछ लिखा उसमें कोई भी बात बिलकुल भी मनाने योग्य नहीं हैं ....! समारोह की उपलब्धिया और अपल्ब्धियाँ के बारे में चर्चा तो ठीक है, लेकिन जहां तक मेरी जानकारी में है कि रश्मि जी ने यह कभी नहीं कहा होगा कि जिसको सम्मान मिला वो ही काबिल थे ... ? फिर बात का बतंगड़ क्यों बनाया जा रहा है । शिखा जी के मंच पर विराजने को भी मुद्दा बनाया जा रहा है, कितनी शर्म की बात है । हमें अफसोस है कि हम उन ब्लॉगरों के बीच हैं जिनके मन में महिलाओं के प्रति तनिक भी सम्मान नहीं । महेंद्र मिश्रा के इस कृत्य की मैं घोर निंदा करता हूँ । शास्त्री जी की पीड़ा के बारे मे आपके वक्तव्य से मैं पूरी तरह सहमत हूँ । जहां तक पवन मिश्रा का प्रश्न है तो उसके कोई भी प्रश्न तथ्यात्मक हैं ही नहीं, बच्चों वाला प्रश्न है बे मतलब के ।
अविनाश जी और रवीद्र जी ने पिछले वर्ष भी कार्यक्रम किया था और इसीपरकर घटिया और थोठी दलीलों से कई पोस्ट ब्लैक हो गए थे । अविनाश जी और रवीन्द्र जी का क्या उन्होने तो यह कार्यक्रम पहली बार किया नहीं और उन्हें आधा सच कहने वालों से कभी पाला नहीं पड़ा होगा । खूब पड़ा होगा । वे तो अपने धुन के धनी हैं । आगे भी उनका यह अभियान चलेगा, ऐसा उन्होने आपने पोस्ट पर घोषणा भी कर रखी है ।
हे महिला ब्लागरो के पक्ष में आवाज़ उठाने वाले - आपका बुजुर्गों के प्रति सठियाया सम्मान अनुकरणीय हो -
हटाएंरंजना जी बात से सहमत हूँ, बिल्कुल सही कहा है उन्होंने ... आभार
जवाब देंहटाएंसंतोष आपने काफी अच्छे से और संतुलित तरीके से अपनी बात रखी, अच्छा लगा... जहाँ तक बात आलोचना और समर्थन की है... तो आलोचना अगर किसी कार्यक्रम को और बेहतर बनाने की नियत से की जाए तो उसमें कोई हर्ज भी नहीं है... यूँ भी गलतियाँ तो रह ही जाती हैं, चाहें कितनी ही कोशिश कर ली जाए. और जिन्हें पुरुस्कार मिला हैं उन्हें भी उत्साहित होकर उसे अपने मित्र-बंधुओं के साथ शेयर करने में कहीं से भी कोई बुराई नहीं है...
जवाब देंहटाएंहालाँकि हर एक चीज़ को देखने के हमेशा ही दो नज़रिय होते हैं, इसलिए हर एक को हक है कि वह अपने नज़रिय को लोगो के सामने रख सके, बशर्ते की संयमित भाषा का प्रयोग हो ना कि दूसरों को नीचा दिखाने की कोशिश....
आभार शहनवाज जी...
हटाएंअच्छाई-बुराई की तो बात छोडिये... आजकल तो ब्लॉग-जगत में अपमान करने की प्रथा चल पड़ी है... इसलिए अगर किसी ने सम्मान भर किया है तो मेरे लिए तो यह भी ख़ुशी की बात है....
जवाब देंहटाएंबस अपनी तो रब से यही दुआ है कि दिलों की दुर्यान ख़त्म हो.... "दिल मिलते रहें और प्रेमरस छलकता रहे"...
अल्पना वर्मा जी ने एक जगह आयोजन से सम्बंधित सुनी-सुनाई बातों के आधार पर बड़ा खेद व्यक्त किया है.वे इतनी भावुक हो गई कि उन्हें पूर्व में मिले हुए सम्मान को वापस करने की बात भी कह दी है.आयोजकों को इस बात को नोटिस में लिया जाना चाहिए कि जो लोग उनके द्वारा दिए सम्मान का मोल नहीं समझते उसे निरस्त क्यों न कर दिया जाए ?अल्पना जी ,एक सुलझी हुई ब्लॉगर हैं और उनसे ऐसे हल्के बयान की उम्मीद नहीं थी.अल्पना जी को इन आलोचनाओं के पीछे हो रही दुरभिसंधियों पर गौर करना होगा.कुछ लोग निहित उद्देश्य लेकर एक सार्थक पहल को पलीता लगाने में जुटे हैं जिसमें वे सफल नहीं होंगे !
जवाब देंहटाएंआपकी इन बातों से पूरी तरह सहमत हूँ । लेकिन सुना है कि परिकल्पना सम्मान वर्ष-2010 से दिया जा रहा है, कोई हमें बताएगा कि अल्पना वर्मा को सम्मान घोषित होने के एक वर्ष पूर्व ही किसने थमा दिया ?
@मनोज पण्डे आप मुझ पर कटाक्ष करने से पहले आयोजक रविन्द्र प्रभात जी से पूछ तो लेते कि २००९ में उन्होंने सम्मान बांटे थे या नहीं.
हटाएंअगर यह नहीं मालूम कि परिकल्पना सम्मान देने कब से शुरू हुए हैं तो दोबारा होमवर्क करके टिप्पणी लिखने आना चाहिए.
http://loksangharsha.blogspot.com/2012/08/blog-post_31.html
जवाब देंहटाएंइस लिंक मे परिकल्पना सम्मान पाने वालों का नाम उल्लिखित है, मैंने तो कहीं भी अल्पना वर्मा का नाम नहीं देखा । क्या रवीद्र जी ने सम्मान धीरे से उनके घर भेजवा दिया था ?
पते की बात कही है ।
हटाएंबड़े अफ़सोस की बात है कि यह पोस्ट मैं आज देख रही हूँ ज्सिमें मेरे नाम का भी ज़िक्र है...अगर मनोज पांडे को यह नहीं मालूम कि परिकल्पना सम्मान देने कब से शुरू हुए हैं तो उन्हें दोबारा होमवर्क करके टिप्पणी लिखने आना चाहिए...आप परिकल्पना के ब्लॉग पर इस शीर्षक से पास ढूंढे और परिणाम वाली पोस्ट भी स्वयं ढूंढें. ब्लॉग विश्लेषण-२००९
हटाएंहिन्दी ब्लोगिंग की दृष्टि से सार्थक रहा वर्ष-२००९
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हाँ मुझे भी पारिकल्पना से २००९ में सम्मान मिला था . जिसका चित्र मैं ने एक साईट पर लगाया है सिर्फ आप लोगों को दिखाने के लिए कि यह था वह सम्मान..
मेरे सिवा रंजू जी और अन्य ब्लोगरों को भी मिला था ..यह इनका पहला आयोजन था.यह रहा मेरे २००९ में मिले 'वर्ष की शीर्ष महिला चिट्ठाकार -श्रेणी सांस्कृतिक जागरूकता - सम्मान का चित्र-http://www.divshare.com/download/24386928-862
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@मनोज पण्डे आप मुझ पर कटाक्ष करने से पहले आयोजक रविन्द्र प्रभात जी से पूछ तो लेते कि २००९ में उन्होंने सम्मान बांटे थे या नहीं.
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संतोष जी आप की पोस्ट पर मेरे नाम पर इतनी बात हुई आप मुझे खबर तो कर सकते थे.
हटाएंमैं बताती कि कब और क्या सम्मान मिला था.
आप अगले की भी हाँ में हाँ मिला रहे हैं जिसका सीधा अर्थ हुआ कि आप को भी मालूम नहीं कि कब से परिकल्पना सम्मान शुरू किये गए ?
बहुत बढ़िया तरीके से आपने अपने विचार व्यक्त किये। भाई वह कृष्ण जी वाला किस्सा याद आता है कि दुर्योधन को सभी बन्दे दुर्जन ही दिखे थे और युधिष्ठिर को सभी सज्जन ही। अगर समारोह में कुछ कमियाँ थी तो अच्छाइयाँ भी तो थी।
जवाब देंहटाएंमैं भी तो केवल सभी ब्लॉगर बंधुओं से मिलने के लिये ही गया था। आपकी फोटोग्राफर वाली बात बहुत अच्छी लगी। वहाँ शर्म की क्या बात थी, सभी एक ही बिरादरी के तो थे। ब्लॉगरों को आपस में मिलने का पर्याप्त मौका नहीं मिला, यह हमें भी खला। दो-तीन कमियाँ हमें भी लगी पर वह हमने आयोजकों तक सामान्य रूप से पहुँचा दी, हाय-तौबा नहीं मचाई। जिन भी मित्रों को कोई कमी दिखी उन्हें चाहिये कि वे सुझाव आयोजकों तक पहुँचायें ताकि अगली बार वे कमियाँ दूर की जा सकें।
आभार पंडितजी ।
हटाएंबड़े संतुलित तरीके से आपने अपनी बात कही है.. अगर सभ्य शब्दों में मुद्दों पर आधारित आलोचना की जाती है तो उसमें भी कोई बुराई नहीं होनी चाहिए... सबकों उन्हें सार्थक रूप में स्वीकार करना चाहिए और उसपर तार्किक ढंग से बहस करनी चाहिए.. पर कार्यक्रम की भूल-चूक, समय और सत्र के मैनेजमेंट में हुई छोटी-छोटी चूकों के लिए आयोजकों पर चढ़ बैठना ठीक नहीं है..
जवाब देंहटाएंआपका आभारी हूँ ।
हटाएंsantosh ji kafi achchha va santulit vichar diye hai aapne
जवाब देंहटाएंआभार भाई जी !
हटाएं"...शास्त्री जी से बेहद विनम्रता से यह निवेदन है कि वे सम्मानित करने वालों और अपमानित करने वालों की पहचान कर लें..."
जवाब देंहटाएं--
:)...:)
गलती करके भी पछतावा नहीं है तो सुधार कैसे होगा?
जवाब देंहटाएंइससे सिद्ध होता है कि गलतियाँ प्रायोजित थीं और आगे भी होंगी।
चलिए हम ही छोटे हो जाते हैं, आगे से सत्यता कहने का साहस नहीं करेंगे!
यही बात अगर आप व्यक्तिगत स्तर पर रवीन्द्रजी से कर लेते तो कहीं अच्छा होता.आपको दु:ख पहुँचाना हमारा उद्देश्य नहीं है ।
हटाएंजो बड़ेन को लघु कहे ,नहीं रहीम घट जाय ,
हटाएंगिरधर मुरलीधर कहे ,कछु दुःख मानत नाय |
शुक्रवार, 7 सितम्बर 2012
क्या अपपठन (डिसलेक्सिया )और आत्मविमोह (ऑटिज्म )का भी इलाज़ है काइरोप्रेक्टिक में ?
जो बड़ेन को लघु कहे ,नहीं रहीम घट जाय ,
हटाएंगिरधर मुरलीधर कहे ,कछु दुःख मानत नाय |
शुक्रवार, 7 सितम्बर 2012
क्या अपपठन (डिसलेक्सिया )और आत्मविमोह (ऑटिज्म )का भी इलाज़ है काइरोप्रेक्टिक में ?
बीच बीच में ध्यान भटक जाता है
जवाब देंहटाएंअच्छा लगता है जब कोई समझाता है
उल्लूक वापस पेड़ पर जाकर
अपनी उसी डाल पर बैठ जाता है
फिर से देखना शुरू हो जाता है
रास्ते में कौन इधर और कौन उधर जाता है !
संतोष जी : आपकी राय से सहमत हूँ.
जवाब देंहटाएंआभार
कमियां बताना अलग बात है,मुझे तो लगता है कुछ लोग उस कार्यक्रम की छीछालेदर करने पर तुल गए हैं.
जवाब देंहटाएंमुझे तो कुल मिलाकर वो कार्यक्रम अच्छा और सराहनीय लगा.
आपकी समीक्षा की खूब सूरती है शालीनता ,शब्द चयन ,आदमी गुड न दे तो गुड जैसी बात तो कह दे उसमें कंजूसी नहीं होनी चाहिए भले कई लोग शब्द कृपण होतें हैं .आलोचना न होगी तो ब्लोगिंग निस्तेज हो जायेगी अप्रासंगिक भी ,अखबारों में लम्पट ब्लोगर उछला तो अच्छा ही हुआ .अखबार कोई भाषा के विशेषज्ञ तो होते नहीं हैं कामजगत का शब्द शब्दों की दुनिया में ले आये .
जवाब देंहटाएंशुक्रवार, 7 सितम्बर 2012
क्या अपपठन (डिसलेक्सिया )और आत्मविमोह (ऑटिज्म )का भी इलाज़ है काइरोप्रेक्टिक में ?
मुझ से मत जलो - ब्लॉग बुलेटिन ब्लॉग जगत मे क्या चल रहा है उस को ब्लॉग जगत की पोस्टों के माध्यम से ही आप तक हम पहुँचते है ... आज आपकी यह पोस्ट भी इस प्रयास मे हमारा साथ दे रही है ... आपको सादर आभार !
जवाब देंहटाएंबात पते की है संतोष जी, लेकिन सही पते पर पहुँच पाए तब ही...
जवाब देंहटाएंस्वच्छ, सुन्दर,संतुलित और सार्थक पोस्ट इस विषय पर!बहुत कुछ लिखा जा इस बारे में पर सब अपनी शब्द-कलाकारी में ही लगे हुए दिख रहे है!
जवाब देंहटाएंकुँवर जी,
kami to hamare gharo me hone wale aayojano me bhi rah jati hai . ye itna bada aayojan tha . khair apna-apna najariya hai . sundar-santulit post !
जवाब देंहटाएंkya kahu mai,yakin nahi hota ki ek samman smaroh ke liye hindi bloggers is tarah se ladte nazar aayege!mujhe baht dukh hai|
जवाब देंहटाएंपढ़ा. इस विषय पर लिखने की समय सीमा तय की जानी चाहिए. समारोह के दो दिन बाद तक लिखा जा सकता है या एक सप्ताह बाद तक जैसी कुछ. और नाराज होने की भी कोइ सीमा निर्धारित होनी चाहिए की बस एक युनिट गुस्सा या दस युनिट.
जवाब देंहटाएंघुघूतीबासूती