छिपाती थी बुखारों को जो मेहमां कोई आ जाए : मातृ दिवस पर एक गीत

Posted on
  • by
  • Girish Kumar Billore
  • in
  • Labels:



  • मां सव्यसाची स्वर्गीया प्रमिला देवी


    वही क्यों कर सुलगती है वही क्यों कर झुलसती है ?
    रात-दिन काम कर खटती, फ़िर भी नित हुलसती है . 
    न खुल के रो सके न हंस सके पल --पल पे बंदिश है 
    हमारे देश की नारी, लिहाफ़ों में सुबगती है ! 

    वही तुम हो कि जिसने नाम उसको आग दे डाला
    वही हम हैं कि जिनने उसको हर इक काम दे डाला
    सदा शीतल ही रहती है भीतर से सुलगती वो..!
    कभी पूछो ज़रा खुद से वही क्यों कर झुलसती है.?
    कविता उपलब्ध है 

    3 टिप्‍पणियां:

    1. नमन माँ |
      शुभकामनायें ||

      जवाब देंहटाएं
    2. माँ ने जिन पर कर दिया, जीवन को आहूत
      कितनी माँ के भाग में , आये श्रवण सपूत
      आये श्रवण सपूत , भरे क्यों वृद्धाश्रम हैं
      एक दिवस माँ को अर्पित क्या यही धरम है
      माँ से ज्यादा क्या दे डाला है दुनियाँ ने
      इसी दिवस के लिये तुझे क्या पाला माँ ने ?

      जवाब देंहटाएं

    आपके आने के लिए धन्यवाद
    लिखें सदा बेबाकी से है फरियाद

     
    Copyright (c) 2009-2012. नुक्कड़ All Rights Reserved | Managed by: Shah Nawaz