फ़ज़ल इमाम मल्लिक
देश भर में रवींद्रनाथ टैगोर की डेढ़सौवीं जयंती अपने-अपने तरीक़े से मनाई
गई। प्रकाशक नियोगी बुक्स ने कवि गुरु को अपने तरीक़े से याद किया है।
नियोगी बुक्स ने रवींद्रनाथ टैगोर की कृतियों का प्रकाशन अंग्रेजी में
किया है। दरअसल इन पुस्तकों का यह पुनर्प्रकाशन है। प्रकाशित पुस्तकों का
अनुवाद ख़ुद रवींद्रनाथ टैगोर ने किया था। इन पुस्तकों का महत्त्व इसलिए
ज्Þयादा है। क्योंकि रवींद्रनाथ टैगोर की कृतियों का अनुवाद कोई नई बात
नहीं है, क्योंकि रवींद्रनाथ टैगोर की कृतियों का अनुवाद अंग्रेजी सहित
देश-विदेश की दूसरी भाषाओं में होता रहा है। नियोेगी बुक्स ने उनके जÞरिए
अनुदित इन पुस्तकों को उनकी डेढ़सौवीं जयंती पर फिर से प्रकाशित किया है,
यह महत्त्वपूर्ण है। बड़ी बात यह है कि प्रकाशक ने पाकेट बुक्स की तरह इन
कृतियों का प्रकाशन किया है, जिनकी छपाई-सफाई तो सुंदर है ही, क़ीमत भी
निहायत वाजिब और मुनासिब है। कवर की सादगी मन मोहने के लिए काफÞी है।
यह भी अज्जब इत्तफ़ाक़ है कि हाल ही में रवींद्रनाथ टैगोर को याद करते हुए
जब मैंने इस सच को स्वीकारा था कि मैंने रवींद्रनाथ टैगोर को बहुत नहीं
पढ़ा है तो दूर-दूर तक इस बात की उम्मीद नहीं थी कि हाल-फिलहाल मुझे
रवींद्रनाथ टैगोर को पढ़ने का मौक़ा मिलेगा। लेकिन ऐसा हुआ। रवींद्रनाथ
टैगोर की एक साथ छह किताबें मुझे मिलीं और पहली फ़ुर्सथ में ही मैंने इसे
पढ़ी। रवींद्रनाथ टैगोर को किसी ख़ास विद्या में बांध कर नहीं देखा जा
सकता। वे चिंतक, नाटककार, कवि और कथाकार के साथ-साथ संगीत के मर्मज्ञ भी
थे, उन्होंने अभिनय भी किया और बेहतरीन चित्रकार तो थे ही। इसलिए उन्हें
पढ़ते हुए उनके कई आयाम सामने आते हैं। इन किताबों के ज़रिए भी उनकी इस
प्रतिभा को देखने-समझने का मौक़ा मिलता है। क्योंकि उन्होंने अपनी इन
रचनाओं का अनुवाद भी किया है और जो किताबें सामने आई हैं वह विभिन्न
विधाओं की है। नियोगी बुक्स (डी-78, ओखला इंडस्ट्रियल एरिया, फेज-एक, नई
दिल्ली-110020) ने रवींद्रनाथ टैगोर की जिन पुस्तकों का प्रकाशन किया है,
उनमें तीन नाटकों की किताबें हैं। रेड ओलियंड्रस (मूल्य: 125 रुपए),
सैक्रीफाइज (मूल्य: 75 रुपए) और द किंग आफ द डार्क चेंबर (मूल्य: 125
रुपए) नाटकों में टैगोर ने जीवन के मूल्यों को सामने रखा है। इन नाटकों
में जीवन के कई रंगों को देखा जा सकता है। मानवीय संवेदना और रोजमर्रा के
जीवन से जुड़े मसलों के साथ-साथ प्रकृति और सौंदर्य को भी हमारे सामने रखा
गया है। ‘सैक्रीफाइज’ बांग्ला नाट्य कृति ‘विसजर्न’ का अनुवाद है। इसका
प्रकाशन 1890 में हुआ था और यह टैगोर के उपन्यास ‘राजऋषि’ से प्रेरित है।
टैगोर के जीवनकाल में इसका कई बार मंचन हुआ था और कोलकाता में तत्कालीन
एंपायर थिएटर (अब राक्सी सिनेमा) में अगस्त, 1923 में दो रातों तक इसका
मंचन हुआ था। टैगोर ने भी इस नाटक में जयसिंह की भूमिका निभाई थी। तब
उनकी उम्र बासठ साल थी। निर्मलकांति भट्टाचार्य की लिखी भूमिका से इसका
पता चलता है। नाटक में बलि से जुड़े कई सवालों को खूबसूरती से उकेरा गया
है। ‘नेशनलिज्म’ और ‘रिलीजन आफ मैन’ उनके भाषणों का संग्रह है।
‘नेशनलिज्म’ (मूल्य: 125 रुपए) पहली बार 1913 में प्रकाशित हुई थी। इस
पुस्तक में अमेरिका और जापान में दिए गए उनके तीन भाषण ‘नेशनलिज्म इन द
वेस्ट’ ‘नेशनलिज्म इन जापान’ और ‘नेशनलिज्म इन इंडिया’ संकलित हैं। इसके
अलावा उस सदी के अंतिम दिन लिखी गई उनकी कविता ‘द सनसेट आफ द सेंचुरी’ भी
पुस्तक में है। राष्ट्रीयता को लेकर टैगोर के विचारों को इन आलेखों के
जरिए समझने में मदद मिलती है। इसी तरह आक्सफोर्ड में दिए गए भाषणों के
अलावा जीवन और मूल्यों से जुड़े आलेखों की पुस्तक है ‘रिलीजन आफ मैन’
(मूल्य: 150 रुपए)। 1930 में टैगोर ने आक्सफोर्ड में भाषण दिए थे, किताब
में उन्हें शामिल किया गया है। लेकिन अपने जीवन से जुड़ी घटनाओं को इसके
केंद्र में उन्होंने रखा है। टैगोर का कहना है कि उन्होंने इसके जरिए
धर्म का मनोवैज्ञानिक विशलेषण करने के बजाय उस धामिर्क आस्था को देखने की
कोशिश की है जो आदमी के भीतर कहीं होती है। छठी पुस्तक उनकी मशहूर कृति
‘गीतांजलि’ (मूल्य: 75 रुपए) का गद्य अनुवाद है। इसकी भूमिका डब्लू.बी.
यीट्स ने सितंबर 1912 में लिखी थी। गीतांजलि में प्रकृति, अध्यात्म,
समर्पण, त्याग जैसी बातों को बहुत ही खूबसूरती से पिरोया गया है। इसे
पढ़ते हुए जीवन के कई रंग हमारे सामने शिद्दत से उभरते हैं। टैगोर इसलिए
आज भी प्रासंगिक लगते हैं क्योंकि कई नए अर्थ उनकी रचनाओं को पढ़ते हुए
खुलते हैं।
देश भर में रवींद्रनाथ टैगोर की डेढ़सौवीं जयंती अपने-अपने तरीक़े से मनाई
गई। प्रकाशक नियोगी बुक्स ने कवि गुरु को अपने तरीक़े से याद किया है।
नियोगी बुक्स ने रवींद्रनाथ टैगोर की कृतियों का प्रकाशन अंग्रेजी में
किया है। दरअसल इन पुस्तकों का यह पुनर्प्रकाशन है। प्रकाशित पुस्तकों का
अनुवाद ख़ुद रवींद्रनाथ टैगोर ने किया था। इन पुस्तकों का महत्त्व इसलिए
ज्Þयादा है। क्योंकि रवींद्रनाथ टैगोर की कृतियों का अनुवाद कोई नई बात
नहीं है, क्योंकि रवींद्रनाथ टैगोर की कृतियों का अनुवाद अंग्रेजी सहित
देश-विदेश की दूसरी भाषाओं में होता रहा है। नियोेगी बुक्स ने उनके जÞरिए
अनुदित इन पुस्तकों को उनकी डेढ़सौवीं जयंती पर फिर से प्रकाशित किया है,
यह महत्त्वपूर्ण है। बड़ी बात यह है कि प्रकाशक ने पाकेट बुक्स की तरह इन
कृतियों का प्रकाशन किया है, जिनकी छपाई-सफाई तो सुंदर है ही, क़ीमत भी
निहायत वाजिब और मुनासिब है। कवर की सादगी मन मोहने के लिए काफÞी है।
यह भी अज्जब इत्तफ़ाक़ है कि हाल ही में रवींद्रनाथ टैगोर को याद करते हुए
जब मैंने इस सच को स्वीकारा था कि मैंने रवींद्रनाथ टैगोर को बहुत नहीं
पढ़ा है तो दूर-दूर तक इस बात की उम्मीद नहीं थी कि हाल-फिलहाल मुझे
रवींद्रनाथ टैगोर को पढ़ने का मौक़ा मिलेगा। लेकिन ऐसा हुआ। रवींद्रनाथ
टैगोर की एक साथ छह किताबें मुझे मिलीं और पहली फ़ुर्सथ में ही मैंने इसे
पढ़ी। रवींद्रनाथ टैगोर को किसी ख़ास विद्या में बांध कर नहीं देखा जा
सकता। वे चिंतक, नाटककार, कवि और कथाकार के साथ-साथ संगीत के मर्मज्ञ भी
थे, उन्होंने अभिनय भी किया और बेहतरीन चित्रकार तो थे ही। इसलिए उन्हें
पढ़ते हुए उनके कई आयाम सामने आते हैं। इन किताबों के ज़रिए भी उनकी इस
प्रतिभा को देखने-समझने का मौक़ा मिलता है। क्योंकि उन्होंने अपनी इन
रचनाओं का अनुवाद भी किया है और जो किताबें सामने आई हैं वह विभिन्न
विधाओं की है। नियोगी बुक्स (डी-78, ओखला इंडस्ट्रियल एरिया, फेज-एक, नई
दिल्ली-110020) ने रवींद्रनाथ टैगोर की जिन पुस्तकों का प्रकाशन किया है,
उनमें तीन नाटकों की किताबें हैं। रेड ओलियंड्रस (मूल्य: 125 रुपए),
सैक्रीफाइज (मूल्य: 75 रुपए) और द किंग आफ द डार्क चेंबर (मूल्य: 125
रुपए) नाटकों में टैगोर ने जीवन के मूल्यों को सामने रखा है। इन नाटकों
में जीवन के कई रंगों को देखा जा सकता है। मानवीय संवेदना और रोजमर्रा के
जीवन से जुड़े मसलों के साथ-साथ प्रकृति और सौंदर्य को भी हमारे सामने रखा
गया है। ‘सैक्रीफाइज’ बांग्ला नाट्य कृति ‘विसजर्न’ का अनुवाद है। इसका
प्रकाशन 1890 में हुआ था और यह टैगोर के उपन्यास ‘राजऋषि’ से प्रेरित है।
टैगोर के जीवनकाल में इसका कई बार मंचन हुआ था और कोलकाता में तत्कालीन
एंपायर थिएटर (अब राक्सी सिनेमा) में अगस्त, 1923 में दो रातों तक इसका
मंचन हुआ था। टैगोर ने भी इस नाटक में जयसिंह की भूमिका निभाई थी। तब
उनकी उम्र बासठ साल थी। निर्मलकांति भट्टाचार्य की लिखी भूमिका से इसका
पता चलता है। नाटक में बलि से जुड़े कई सवालों को खूबसूरती से उकेरा गया
है। ‘नेशनलिज्म’ और ‘रिलीजन आफ मैन’ उनके भाषणों का संग्रह है।
‘नेशनलिज्म’ (मूल्य: 125 रुपए) पहली बार 1913 में प्रकाशित हुई थी। इस
पुस्तक में अमेरिका और जापान में दिए गए उनके तीन भाषण ‘नेशनलिज्म इन द
वेस्ट’ ‘नेशनलिज्म इन जापान’ और ‘नेशनलिज्म इन इंडिया’ संकलित हैं। इसके
अलावा उस सदी के अंतिम दिन लिखी गई उनकी कविता ‘द सनसेट आफ द सेंचुरी’ भी
पुस्तक में है। राष्ट्रीयता को लेकर टैगोर के विचारों को इन आलेखों के
जरिए समझने में मदद मिलती है। इसी तरह आक्सफोर्ड में दिए गए भाषणों के
अलावा जीवन और मूल्यों से जुड़े आलेखों की पुस्तक है ‘रिलीजन आफ मैन’
(मूल्य: 150 रुपए)। 1930 में टैगोर ने आक्सफोर्ड में भाषण दिए थे, किताब
में उन्हें शामिल किया गया है। लेकिन अपने जीवन से जुड़ी घटनाओं को इसके
केंद्र में उन्होंने रखा है। टैगोर का कहना है कि उन्होंने इसके जरिए
धर्म का मनोवैज्ञानिक विशलेषण करने के बजाय उस धामिर्क आस्था को देखने की
कोशिश की है जो आदमी के भीतर कहीं होती है। छठी पुस्तक उनकी मशहूर कृति
‘गीतांजलि’ (मूल्य: 75 रुपए) का गद्य अनुवाद है। इसकी भूमिका डब्लू.बी.
यीट्स ने सितंबर 1912 में लिखी थी। गीतांजलि में प्रकृति, अध्यात्म,
समर्पण, त्याग जैसी बातों को बहुत ही खूबसूरती से पिरोया गया है। इसे
पढ़ते हुए जीवन के कई रंग हमारे सामने शिद्दत से उभरते हैं। टैगोर इसलिए
आज भी प्रासंगिक लगते हैं क्योंकि कई नए अर्थ उनकी रचनाओं को पढ़ते हुए
खुलते हैं।
सादर नमन ।।
जवाब देंहटाएंsundar jaankari
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