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टिप्पणियां ग्यारह
और यहां
नौ दो ग्यारह
कहीं नहीं हैं बारह
देख लीजिए
जांच लीजिए
एक एक नेक पोस्ट
नेक मैं कह रहा हूं
आप क्या कहते हैं
टिप्पणियां क्यों
घट रही हैं
घटना नहीं
घटहां बन रही हैं
क्या कहना है आपका
विश्लेषण जनाब का
पढ़ नहीं रहे हैं
या नहीं भा रहे हैं
व्यंग्य
वैसे पसंद का
बटन दबा रहे हैं
फेसबुक पर वे
जिनकी ऊंगलियां
नहीं दे रही हैं दिखाई
वे भी तो हैं
पढ़ने वाले भाई
या हैं बहनें
पाठक सदा
सच्चे हैं गहने।
पसंद कर लेते हैं
फेसबुक पर
और टिप्पणी
देते हैं रहने।
देखा मुझे भी
फेसबुक पर
कर लिया पसंद
यूं तो सभी
हैं रजामंद
पर पसंद करने में
बहुत तीव्र
नहीं हैं मंद।
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यूं तो सभी
हैं रजामंद
पर पसंद करने में
बहुत तीव्र
नहीं हैं मंद।
जिज्ञासा और रोचकता की युगलबंदी। बधाई!
जवाब देंहटाएंSunday at 8:04am
भाई अभी आपका ब्लॉग देखा है...अच्छा लगा है...अब टिप्पणियां भी आएंगी...सुन्दर कविता...
जवाब देंहटाएंलिजिये एक तो बढ़ा ही देते हैं..:)
जवाब देंहटाएं:) पढ़ भी रहे हैं और भा भी रहे हैं व्यंग्य...लेकिन टिप्पणी के लिए शब्द गायब हो जाते हैं...मन ही मन तारीफ़ करके लौट जाते है... आज रुक गए...
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