समय:-1980-81 के एक दिन की दोपहर
स्थान:-मुहल्लों में बसे शहर जबलपुर का एक मुहल्ला
नेता जी ज़िंदाबाद ! नेता जी ज़िंदाबाद !! ये ही आवाज़े मुहल्ले को आवाज़ों से भर रहे थे. कंजा भूरी सहित न जाने कित्ते शोहदों ने नेता जी को कंधे पर बारी बारी से ढोया. पार्षदी का चुनाव जीतने के बाद हज़ूर मुहल्ले में पहली बार पधारे थे. यूं तो रात को भी आये , ऐसा सुना ऐसा कोई कह रहा था पर आज़ का आना उनका बिलकुल अलग तरीके का था. हर घर की देहरी पे राम जुहार करते कराते नेता जी को बाबूजी ने आशीर्वाद दिया –“बेटा, महेंद खूब तरक्की करो मुहल्ले की भी तरक्क़ी करो”
जी बाबूजी ... कह कर तपाक से बाबूजी के चरण छुए उसने .
बाजू वाले घर से ठाकुर राजू की अम्मा निकली :-“देख महेन, अब सारी नाली और कुलिया साफ़ होना चईये अब समझा तू ”
“हओ-अम्मा, जे तो ठीक है, पर तुम सब भी सुबह सफ़ाई वाले अक्कू को बोल दिया करो न माने तो बताना ”
राजू की अम्मा – ”ससुरा हमाई सुने तब न, अब तो तुम मुहल्ले के नेता बन गये हो, जो चाहोगे वो हो जायेगा”
महेन:-“अम्मा, बताओ क्या करूं.. ”
राजू की अम्मा गम्भीर होके बोली :-“ मैं कुछ नहीं मुहल्ले की नाली साफ़ करवान तुम्हारा काम समझे पार्षद हो गये हो मुंह चलाओ कि हो गया काम ”
राजू की अम्मा की बात सुन कर मेरे बराबर खड़ा कंटर राजू एक आंख दबा के बोला:- राजू की अम्मा तो महेन को मुंह चला के नाली साफ़ करने की कह रई है बताओ पप्पू महेन कोई....? हा हा हा
भारतीय प्रजातंत्र में नेता को आम वोटर आल-माईटी मानता है . ये सच है पर एक भय मुझे तभी से सालने लगा था कि जिस दिन जन नायक खुद को आल-माईटी मानने लगेगा उस दिन देश का क्या होगा ?
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समय:-साल 2010 के एक दिन की दोपहर
स्थान:-मुहल्लों में बसे शहर जबलपुर का एक मुहल्ला
तीस बरस बाद नेताजी बीस से पचास के हो गये हैं शरीर का भार पचास से एक सौ के ऊपर , हारते जीतते अब शायद किसी पद पर मनोनीत हुए मुहल्ले में अपनी सत्ता में पकड़ दिखाने आए. गेदे के फ़ूलों से सर-ओ-पा लदे महेंद इस बार बाबूजी को सिर्फ़ दूर से नमस्ते किया . राजू की अम्मा बोली :- कौन, बेटा महेन, का बन गये अब तुम, अरे देखो नाली साफ़ अब भी नईं होती. अरे तुम इधर तुम मूं (मुंह)चलाओ उधर नाली साफ़ .
महेन:- अरे अम्मा, अब हम भोपाल देखते हैं जे काम तुम पार्षद से कहो.
अम्मा असमंजस से महेन की बात समझने की कोशिश कर रही थी कि महेंन आगे बढ़ गया काफ़िले के साथ. पता नहीं मुझे क्यों लग रहा है वो महेन पार्षद नहीं अर्थी से उठी चलती फ़िरती भीम काय गेंदे से लदी ... है
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