शहीद तेरे नाम से ... एक संस्‍मरण

बरसों पुरानी बात बताने जा रही हूँ...जिस दिन भगत सिंह शहीद हुए,उस दिन का एक संस्मरण...

सुबह का समय ...मेरे दादा-दादी का खेत औरंगाबाद जाने वाले हाईवे को सटके था...दादा दादी अपने बरामदे में शक्ल पे उदासी, ज़ुबाँ पे मौन लिए बैठे हुए थे...

देखा, लकडी के फाटक से गुज़रते हुए, अंग्रेज़ी लश्कर के दो अफसर अन्दर की ओर बढे़। कई बार यह हो चुका था कि, दादा या दादी को गिरफ्तार करने अँगरेज़ चले आते। स्वतंत्रता संग्राम जारी था... दादा जी ने अगवानी की। उन्हें बरामदे में बैठाते हुए, आनेकी वजह पूछी।

जवाब मिला: " हम हमारी एक टुकडी के साथ, अहमदनगर की ओर मार्च कर रहे हैं...सड़क पे आपके फार्म का तख्ता देखा। लगा, यहाँ शायद कुछ खाने/पीने को मिल जाय..पूरी बटालियन भूखी है.....क्या यहाँ कुछ खाने पीने का इंतज़ाम हो सकता है?"

दादा: " हाँ...मेरे पास केले के बागान हैं, अन्य कुछ फल भी हैं...अपनी सेना को बुला लें...हम से जो बन पायेगा हम करेंगे...."

एक अफसर उठ के सेना को बुलाने गया। एक वहीँ बैठा। दादी ने उन्हें खाने की मेज़ पे आने के लिए इल्तिजा की। मुर्गियाँ हुआ करती थीं...अंडे भी बनाये गए...

कुछ ही देर में दूसरा अफसर भी पहुँचा....दादा ने सेना के लिए फलों की टोकरियाँ भिजवाई....वो सब वहीँ आँगन में बैठ गए।

नाश्ते का समय तो हो ही रहा था। दादा दादी ने उन दो अफसरों को परोसा और खाने का इसरार किया। दादी, लकडी के चूल्हे पे ब्रेड भी बनाया करतीं...कई क़िस्म के मुरब्बे घर में हमेशा रहते...इतना सारा इंतज़ाम देख अफसर बड़े ही हैरान और खुश हुए.....
उन में से एक ने कहा :" आप लोग भी तो लें कुछ हमारे साथ...समय भी नाश्ते का है...आप दोनों कुछ उदास तथा परेशान लग रहे हैं..."

दादी बोलीं: " आज हमें माफ़ करें। हमलोग आज दिन भर खाना नही खाने वाले हैं..."
अफसर, दोनों एकसाथ :" खाना नही खाने वालें हैं? लेकिन क्यों? हमारे लिया तो आपने इतना कुछ बना दिया...आप क्यों नही खाने वाले ???"

दादा:" आज भगत सिंह की शहादत का दिन है...चाहता तो बच निकलता..लेकिन जब सजाए मौत किसी और को मिल रही यह देखा तो सामने गया...क्या गज़ब जाँबाज़ , दिलेर नौजवान है....हम दोनों पती पत्नी शांती के मार्ग का अनुसरण करते हैं, लेकिन इस युवक को शत शत नमन...अपने बदले किसी और को मरने नही दिया..आज सच्चाई की जीत हुई है....मरी है तो वो कायरता...सच्चाई ज़िंदा है...जब तक भगत सिंह नाम रहेगा, सच्चाई और बहादुरी का नारा लगेगा...!"

कहते ,कहते, दादा-दादी, दोनों के आँसू निकल पड़े...

दादी ने कहा: " उस माँ को कितना फ़क़्र होगा अपने लाल पे....कि उसकी कोख से ऐसा बेटा पैदा हुआ...वो कोख भी अमर हो गयी...उस बेटे के साथ,साथ..."

दोनों अफ़सर उठ खड़े हो गए। भगत सिंह इस नाम को सलाम किया...और उस दिन कुछ ना खाने का प्रण किया...बाक़ी लश्कर के जवान तब तक खा पी चुके थे...घर से विदा होने से पूर्व उन्होंने हस्तांदोलन के लिए हाथ बढाये....
तो दादा बोले:
"आज हस्तांदोलन नही..आज जयहिंद कहेंगे हम...और चाहूँगा,कि, साथ, साथ आप भी वही जवाब दें..."

दोनों अफसरों ने बुलंद आवाज़ में," जयहिंद" कहा। फिर एक बार शीश झुका कर , बिना कुछ खाए वहाँ से चल दिए...पर निकलने से पहले कहा,

" आप जैसे लोगों का जज़्बा देख हम उसे भी सलाम करते हैं...जिस दिन ये देश आज़ाद होगा, हम उस दिन आप दोनों को बधाई देने ज़रूर पहुँचेंगे...गर इस देश में तब तक रहे तो..."

और हक़ीक़त यह कि, उन में से एक अफ़सर , १६ अगस्त के दिन बधाई देने हाज़िर हुआ। दादा ने तथा दादी ने तब कहा था," हमें व्यक्तिगत किसी से चिढ़ नही... संताप नही... लेकिन हमारा जैसा भी टूटा फूटा झोंपडा हो...पर हो हमारा... कोई गैर दस्त अंदाज़ ना रहे ... हम हमारी गरीबी पे भी नाज़ करके जी लेंगे...जिस क़ौम ने इसे लूटा, उसकी गुलामी तो कभी बर्दाश्त नहीं होगी...."

ऐसी शहादतों को मेरा शत शत नमन....

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही प्रेरक संस्मरण है यह लेकिन अब न दादा दादी जैसे लोग हैं न ही वैसे अंग्रेज अफसर ।

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  2. vakai. aise dada-dadi ko mera charan sparsh. sath hi aise afsaron ko bhi salam jinhone shaheed ke prati dada-dadi ke man main mojood samman ko samjha. man ko chhoone wala samsmaran. badhai.

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  3. रोचक! हिंदुस्तान सचमुच महान था! शायद अब भी है... बिलकुल है.

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  4. शमा जी,संस्मरण बड़ा रोचक लगा..इसे पढ़ कर मेरा हर उस व्यक्ति को फिर से नमन करने का मन कर रहा है..जो कही से अप्रत्यक्ष रूप से भी भारत की सेवा करते रहे...कभी भी कहीं भी..

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  5. shama ji
    aaj ka aapka sansmaran padhkar rongte khade ho gaye............jab aaj hamara ye haal hai to us waqt jinhone wo sab jhela hai unke jazbe ko hamara shat shat naman hai..........wakai wo log alag hi matwale the .us waqt deshbhakti ki bhawana har bachche bade mein kot-kootkar bhari thi aur usi ka parinam hai ki aaj hum azad desh mein saans le rahe hain.
    aapke dada dadi ko naman.

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  6. पढ़ कर अच्छा लगा. क्या ही अच्छा हो जो आज के कर्णधारों को भी रत्ती भर शर्म आ जाए.

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