"इस प्यार को क्या नाम दूँ"

"इस प्यार को क्या नाम दूँ"

 

***राजीव तनेजा***

"दिल की ये आरज़ू थी कोई दिलरुबा मिले"...

"आखिर तुम्हें आना है...ज़रा देर लगेगी"...

"आज ये सब गाने मुझे बेमानी से लग रहे थे क्योंकि सब कुछ धीरे-धीरे सैटल जो होता जा रहा था"

"आज भी पुराने दिन याद करता हूँ तो सिहर-सिहर उठता हूँ"...

"उफ!..वो दिन भी क्या दिन थे जब मैँ दिन रात इसी सपने में खोया रहता कि... काश..सपने में ही दिख जाए वो मुझे किसी तरह "

"असलियत में तो नामुमकिन सी बात जो लगती थी"..

"उसका चेहरा हमेशा मेरी आँखो के आगे छाया रहता"...

"ज़मीन पर रह कर चाँद को पाने की चाहत थी मेरी"..

"पहली बार बचपन में बडे पर्दे पर ही तो देखा था उसे"..

"सामने ये कौन आया...दिल में हुई हलचल...

देख के बस एक ही झलक...हो गए हम पागल"..

"उफ!..क्या कयामत बरपायी थी उसने अपने पहले ही जलवे में"..

"जिसे देखो...वही शैंटी फ्लैट हुए जा रहा था तो अपुन किस खेत की गाजर मूली थे?"...

"थे तो हम भी हाड माँस के मामुली इंसान ही ना?...

"सो!..कैसे बचे रह्ते उसके मोह पाश से?"

"बस अब ना था दिन को चैन और ना रही रातों की नींद"

"जानता था कि मेरी किस्मत में नहीं है वो"..

"कोई बडा आदमी ही ले जाएगा उसे"

"मेरी किस्मत में तू नहीं शायद...क्यूँ तेरा इंतज़ार करता हूँ...

मैँ तुझे कल भी प्यार करता था...मैँ तुझे अब भी प्यार करता हूँ"

"लोगों से सुना है...किताबों में लिखा है...

सबने यही कहा है कि...नखरे बहुत हैँ स्साली के"..

"खर्चीली इतनी कि पूछो मत"...

"किसी आँडू-बाँडू को पुट्ठे पे हाथ तक नहीं धरने देती है"...

"अब ये बावले क्या जानें कि नखरे तो होने ही हैं....टॉप की आईटम जो ठहरी"...

"अब हर किसी ऐरी-गैरी...नत्थू-खैरी के बस का कहाँ कि वो लटके-झटके दिखाती फिरे"

"नखरे दिखाना भी अदा होती है ...स्टाईल होता है"...

"अब खुमार ऐसा छाया दिल ओ दिमाग पे कि लाख उतारे ना उतरा"

"सबने समझाया कि रहने दे...तेरे बस कि बात नहीं"...

"ऊँचे लोगों की ऊँची पसन्द भला गरीब के घर में एडजस्ट कैसे करेगी?"

"बडे ही प्यार से ...जतन से रखूँगा"

"सब नखरे सह-सह लूंगा"...

"रूठ गयी तो ...प्यार से...मान मनौवल से मना लूंगा"

"अब किसी और को बसाने की इस दिल ए नादाँ में चाहत ना रही"

"बचपन से दिल में यही इकलौती इच्छा समाई हुई थी कि...एक ना एक दिन उसे लाना ज़रूर है"

"जब जवान हुआ और थोडा बहुत कमाना भी शुरू कर दिया तो...

कईओं ने घर आ-आ के खुद ही कहना शुरू कर दिया कि आप हमारी वाली ले जाएँ"

"मैँ मन ही मन सोचता कि इनकी जूठन?"....

"और!..वो मैँ सम्भालूँ?"

"हुह!..ऐसी होने से तो न होना ही अच्छा है लेकिन कम कमाई होने की वजह से सिवाय चुप लगा के रहने के मेरे पास कोई चारा नहीं होता था"

"अफसोस!..कोई फ्रैश पीस आ के ही राज़ी नहीं था मेरे पास"

"जो भी मिलती ...कोई ना कोई कमी साथ लिए ज़रूर होती"

"किसी का फिगर बेकार तो...

किसी के रंग रूप में दम वाली बात नज़र नहीं आती"

"कोई सूरत-शक्ल से बेकार...

तो कोई नैन-नक्श से कंडम"..

"कोई ज़रूरत से ज़्यादा तगडी तो...

किसी का कमज़ोरी में कोई सानी नहीं"

"कोई मेकअप से लिपी-पुती...

तो कोई मेकअप विहीन अपना दीन चेहरा लिए नज़र आती"

"अपुन ने तो अपने सभी यार-दोस्तों से साफ-साफ कह दिया था कि..

"लाएँगे तो एक्दम सॉलिड पीस ही लाएँगे वर्ना खाली हाथ बैठे रहेंगे"

"अब ये बेकार की '*&ं%$#@'पीस अपने बस की बात नहीं"

"सुना जो रखा था कि सब्र का फल मीठा होता है...

तो सोचा कि क्यों ना सब्र करके भी देख लिया जाए?"

"डायबिटीज़ हुई तो क्या हुआ?"...

"अब!..थोडा बहुत मीठा तो चलता ही है"...

"क्यों?..है कि नहीं?"

"और आखिर हर्ज़ ही क्या है इसमें?"

"क्या मालुम आने वाला कल सुनहरा हो"

"हम होंगे कामयाब एक दिन...हो..हो...मन में है विश्वास...पूरा है विश्वास"

"खैर...हम सब्र करते रहे और वो ऊपर बैठा-बैठा हमारे सब्र का इम्तिहान लेता रहा"...

"पहले तो ये बहाना था जनाब के पास कि मुंडा कमाता नहीं है" ...

"अब तो ठीकठाक कमाने भी लगा हूँ"...

"अब क्या एतराज़ है आपको?"

"स्साला!..जिसे देखो वही अपना घिसा पिटा पुराना माल चेपने की फिराक में तैयार बैठा मिलता था"..

"अब वैसे कहने को तो कई ठीक-ठाक काम चलाऊ अपने रस्ते में आती रही...

टकराती रही लेकिन इस चक्कर में कि सिर्फ और सिर्फ सालिड मॉल पे ही हाथ डालना है"...

"मैँ बेवाकूफ!..सबको रिजैक्ट पे रिजैक्ट करता चला गया"

"यही सोच थी मेरी कि ऊपरवाला रहमदिल है"...

"उसके घर देर है पर अन्धेर नहीं है"

"कोई ना कोई तो उसने मेरे लिए बनाई ही होगी"

"सुन जो रखा था कि जोडियाँ ऊपर से ही बन के आती हैँ"

"तो चलो!...देख लेते हैँ कि कब जागती है अपनी रूठी हुई किस्मत"

"इसी चक्कर में उम्र बढती रही..बढती रही"

"अब तो पडोसियों ने भी टोकना शुरू कर दिया था कि...

अब मज़े नहीं लेगा तो क्या बुढापे में लेगा?"

"बाद में तेरे किसी काम ना आएगी"...

"दूसरे ही मौज उडाएँगे"

"जब कब्र में पैर लटके होंगे तो ला कर क्या धूप-बत्ती करेगा?"

"अगर ढंग की एक नहीं मिलती है तो कामचलाऊ दो ले आओ"एक मज़ाक उडाता हुआ बोला

"आजकल बडी सस्ती मिल रही हैँ नेपाल में और आसाम में"

मुझे गुस्सा आ गया...बोला"नेपाल और आसाम का लोकल माल आप ही को मुबारक हो शर्मा जी"

"अपुन को तो चाहिए..एकदम स्टाईलिश वाला"

"शर्मा जी!...आपसे अपनी तो संभलती नहीं ठीक से और चले हैँ लैक्चर देने दूसरों को"...

"पहले अपना घर तो ठीक करो जा के"

"चिनॉय सेठ!...जिनके घर शीशे के होते हैँ वो दूसरों के घरों पे पत्थर नहीं फैंका करते"

"कुछ इल्म भी है आपको?कि कभी कोई तो कभी कोई आपकी वाली के साथ मौज उडा रहा होता है?"
"कभी चाँदनी चौक तो कभी चॉयना"...

"और साहेब हैँ कि इन्हें कोई फिक्र ही नहीं"

"वाह साहेब!..वाह"

"एक-आध को तो मैँने 'बाराटूटी' में भी गुल्छर्रे उडाते देखा था आपकी वाली के साथ"

"सच...इन्हीं आँखो से"

"आप बुज़ुर्ग हैँ...आपकी इज़्ज़त कर रहा हूँ वर्ना कोई और होता तो अभी के अभी मुँह तोड के रख देता"

"मूड खराब हो चला था मेरा"

"लग रहा था कि बिना उसके ही पूरी ज़िन्दगी काटनी पडेगी"

"ये सब ख्यालात दिल में उमड-उमड ही रहे थे कि अखबार में छपे एक इश्तेहार ने सारा मूड एकदम से फ्रैश कर दिया"

"बार-बार उसी सफे को पढे जा रहा था मैँ जिसमें मेरी जॉनेमन का जिक्र था"

"अपनी चमचम कर चमकती किस्मत पे जैसे विश्वास ही नहीं हो रहा था मुझे"

बार-बार खुद को चिकोटी काटता कि...

"या अल्लाह!...क्या ये सच है?"

अब दिल का भंवर झूम-झूम गाने लगा..

"जिसका मुझे था इंतज़ार...वो घडी आ गयी...आ गयी"...

"जिसके लिए था दिल बेकरार...वो घडी आ गयी..आ गयी"

"अब रुका किस कम्भख्त से गया?"...

"सीधा दिया हुआ फोन नम्बर मिलाया और सारी बातचीत करने के बाद बताए गए पते पे जा पहुँचा"

"वो तैयार खडी मानों मेरी ही राह तक रही थी"

"इस प्यार को क्या नाम दूँ?"

"दबे हुए जज़बातों को क्या अल्फाज़ दूँ?"

"शायद...पहली नज़र का पहला वाला प्यार यही था"

"लव ऐट फर्स्ट साईट"...

"जब अपने बारे में सब कुछ तफ्तीश से बताया उन्हें कि...

तनख्वाह के अलावा कितना कमाता हूँ ऊपर से और...

क्या क्या शौक हैँ मेरे वगैरा वगैरा"...

"तो कहीं जा के उन्हें तसल्ली हुई कि यही बन्दा ठीक रहेगा"

"हर किसी राह चलते ऐरे-गैरे नत्थू खैरे के हाथ कैसे थमा देते?"

"पहले भी तो देख चुके थे किसी अनाडी के हाथ में थमा के"...

"दो दिन भी ठीक से सम्भाला नहीं गया था उससे और उल्टे पाँव लौटा दी थी बैरंग "

"अब कहीं जा के तसल्ली हुई दिल को कि अब किसी को फाल्तू बोलने का मौका नहीं मिलेगा"

"यार-दोस्त...पडोसी-रिश्तेदार...सबके मुँह बन्द हो जाएँगे खुद ही"

"बडे कहते फिरते थे कि...राजीव के बस का कुछ नहीं"..

"ऐसे ही वेल्ले हाँकता फिरता है" ..

"ये!..बडा सा...मोटा सा ताला लग जाएगा उनकी लपलपाती ज़बान को "

"अब अपने मुँह से क्या तारीफ करूँ कि...

"दिखने में कैसी है?"

"रंग-रूप कैसा है उसका?"..

"स्टाईल कैसा है उसका?"

"फिगर कैसी है उसकी?"वगैरा...वगैरा"...

"उफ!...कैसे तारीफ करूँ उसकी?"

"रंग-रूप ऐसा कि चाँद भी शर्मा उठे"

"कोमल इतनी कि छू लेने भर से दाग लग जाए"

"बस यूँ समझ लो कि एक दम मक्खन के माफिक चिकनी"

"चाल ऐसी मतवाली कि जब सडक पे निकले तो सब की सब निगाहेँ थम जाएँ"...

"कसा हुआ भरपूर बदन कि बडे-बडे विश्वामित्र ललचा उठें"

"आँखे चौँधिया जाएँ उनकी "

"बोलती बन्द हो उठे "

"उनके जल कर कोयला होने का मंज़र देख ये दिल खुशी से झूम उठता है"

"तारीफ करूँ क्या उसकी...जिसने तुम्हें बनाया...

ये चाँद सा रौशन चेहरा ज़ुल्फों का रंग सुनहरा"...

"ऊप्स!..ये ज़ुल्फें कहाँ से आ गई बीच में?"..

"हैँ ही कहाँ उसके ज़ुल्फें?". ..

"मुझे तो दिखाई ही नहीं दी"

"अब वो ऐसी है...या फिर वो वैसी है...

"मेरे कहने से तो आप मानने से रहे"...

"तो आप खुद ही नज़र उठा कर एक झलक देख क्यों नहीं लेते?...

"आप भी अगर फिदा न हो उठें तो मेरा नाम भी राजीव नहीं"...

bmw

***राजीव तनेजा***

 

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