ऑस्‍कर के जादू का प्रभाव है

स्‍लमडॉग मिलियनेयर फिल्म ने एक इतिहास रचा है और जो यह सोच रहे हैं कि सिर्फ हास रचा है, उनकी संकीर्ण मानसिकता है कि वे सच्चांई को बदलना नहीं सिर्फ उससे नजरें फेरना चाहते हैं। सच्चाई अगर फिल्म में दिखाई गई तो मिर्ची क्यूं कर लगी, क्यों नहीं हम इस तथाकथित सच्चाई से मुक्त होने का प्रयास करते। जबकि सत्य को पहचान मिलने के बाद तो उससे बच निकलने का जज्बा होना चाहिए था। पर नहीं बिसूरने से तो मुक्ति मिले कि दुख क्यों आया, गंदगी क्यों दिखलाई, कुत्‍ता क्यों कहा ? पर सुख प्राप्ति के लिए न तो प्रयास करेंगे, न संयम ही रखेंगे और न उपक्रम ही करेंगे। गंदगी हटाने का प्रयास नहीं करेंगे। मौके बेमौके किसी को भी कुत्ता कह तो देंगे पर कोई इन्हें कहेगा, चाहे स्वमप्न में ही तो इनकी त्त्‍यौरियां सतरहवें आसमान पर चढ़ भौकेंगी।

पुरस्कृत इन्हें कर दिया जाता इससे भी घिनौनी असलियत सामने लाने के लिए तो खुशी मनाते, उन्होंने तो सिर्फ पन्द्रह दिन पहले होली मनाई है, ये नौ महीने पहले दीवाली भी मनाते, भांगड़ा भी करते, ईद भी मनाते – मतलब खुद को मिलती खुशी तो चाहते कि सब वैश्विक हो और सारी दुनिया इनके साथ झूमे। जब इन्हें नहीं हासिल हुई है तो इनकी कामना है कि पाने वाला खुदकुशी कर ले। ऐसी लचर मानसिकता है इनकी कि दूसरे को भरना भी पड़े तब भी खुद ही सब चरना चाहते हैं। इन्हें नहीं मिला तो धमाल कर रहे हैं, मिलता इन्हें तो धूम धड़ाका करते।

12 टिप्‍पणियां:

  1. यह टिप्पणी लगता है आपने कुछ जल्द कर दी। जरा एक दफा स्लम की हकीकत और उससे पैदा होने वाले 'नए बाजार' पर भी गौर जरूर फरमाएं।

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  2. एक सीन याद दिलाता हूँ..झुग्गी झोपडी के टॉयलेट में एक लड़का है .अमिताभ के आने की ख़बर है ..दरवाजा बाहर से किसी ने बंद कर दिया है .वो कौन से रास्ते से निकलता है ?....अब आप ख़ुद निर्धारित कीजिये ...

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  3. डा० अनुराग की टिप्पणी को खयाल से देखें, बहुत कुछ स्पष्ट हो जायेगा.

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  4. हमें सच को स्‍वीकार करना ही चाहिए...इससे कमियों को दूर करने में मदद मिलती है।

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  5. मै जब यह फिल्म देखने शकुंतलम पर गया था तो वहाँ एक सुरक्षा सिपाही कह रहा था। सा.. पागल बना रहे है। बकवास फिल्म को अच्छी बता रहे है। मैंने पूछा कि क्यों बकवास है तो बोला आप ही बताओ कोई बच्चा ट.. से सना हुआ जाऐगा और अमिताभा उसे आटोग्राफ देगा पर औरों को नही देगा। क्या उसे बदबू नही आई। कह रहे है रीयल देखा रहे है। क्या ये रीयल है? आप ही बताओ?

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  6. अविनाश बाबू बिल्कुल सही कह रहे हैं। क्या ‘स्लमडॉग’ एक मुहावरा नहीं है जिस पर मनुदीप यदुवंशी जी को बुरा नहीं लगना चाहिये।सच्चाई को अपमान कहो या मान, वह तो है ही। मुझे सिर्फ़ यदुवंशी जी यह बतायें कि ए. आर. रहमान या गुलजार में भारतीय ज़ज्बा है या नहीं। यदुवंशी की थोथी दलील के आगे क्या मैं उनको अपना गुरु मानकर उनके आगे नतमस्तक हो जाऊँ?यह सत्य है कि जिन भारतीय कलाकारों -लेखकों ने वैश्विक पटल पर अपने ला खड़ा किया आज उसका यहां इतने अरसे से प्रयास चल रहा था।सच कहा अविनाश बाबू ने कि इन्हें नहीं मिल रहा है तो ये धमाल कर रहे हैं।मिलता इन्हेन तो धूम-धड़ाका करते।

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  7. जो पश्चिम दिखा देता है वही सच हो जाता है???
    जो पश्चिम सिखा देता है क्या वही ज्ञान हो जाता है???
    अगर लिखक मानते है कि सत्य को दिखाया गया है ..चित्रित किया गया है ...तो इसका अर्थ यह होता है कि हमारी हर एक फिल्म को आस्कर मिलना चाहिये.... कितनी सच्ची फिल्मॅ बनी है 60-70 के दशक मॅ. खैर विजेताऑ को मेरी और से बधाई.

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  8. आपने सही मुद्दे को उठाया है. मै भी डॉग नाम का विरोधी हूँ. हिन्दुस्तानियों को कुत्ता कहने वाले फिरंगी ने एक बार फिर हमें कुत्ता कहा. वैसे फिल्म ज़रूर अच्छी बनी है पर पर सारे सिचुयेशन और इसके पीछे की नियति कुछ ठीक नहीं लगी.

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  9. मैं ने फिल्म नहीं देखी इस लिए कुछ कह नहीं सकता। लेकिन जब कुछ भारतीय कलाकारों को दुनिया का सर्वोच्च खिताब मिला है तो हर भारतीय को प्रसन्नता होनी चाहिए। खिताब के लिए जो निर्णायकों के मानदंड थे निश्चित ही वे यहाँ हर किसी के नहीं हो सकते। इस लिए उन्हें हो सकता है कुछ दूसरी फिल्में बेहतर लगती हों। लेकिन यह तो सच है कि ऑस्कर दुनिया का सब से बड़ा फिल्मी खिताब है इस लिए उस के चयन के मानदंडों पर उंगली उठाना उचित नहीं। हाँ यदि उस के मानदंड कभी गलत सिद्ध हुए तो उस की मान्यता खतरे में पड़ जाएगी। एक तरीका और भी है कि हम ऑस्कर के मुकाबले का कोई वैश्विक खिताब देना शुरु करें और उसे ऐसी मान्यता दिला दें कि ऑस्कर पीछे छूट जाए। पर क्या हम ऐसा करने में सक्षम हैं?

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  10. मैं नए माध्यमों और इससे सामाजिक विकास की गुंजाइश की तरफदारी नहीं कर रहा लेकिन इतना तो जरुर है कि नए माध्यमों ने कुछ भी नहीं होने और बदलने के वरक्स एक संभावना को बचाए रखने की कोशिश में है, ये जरुरी है

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  11. I think the seen is different, if we show us poor, slum people or like dog world will be happy because they have only that image of India and they like us to be at that place..........If you ask me I like the concept of the movie the storyline and how it pictured, they only thing which makes me fuzzy that it is completely negative....it shows that India which always want to forget and it also represent that india which is poor,useless and dishonest and disrespectful.......so while watching the movie I felt ashamed being an India so how can one be proud of awards like Oscars

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  12. अगर रोचकता के हिसाब से देखा जाए तो यकीनन फिल्म अच्छी बनी है लेकिन मेरे दिमाग में कुछ सवाल घूम रहे हैँ जिन्हें मैँ आप सभी के साथ बाँटना चाहूँगा।

    1.अगर ये फिल्म किसी भारतीय ने बनाई होती तो भी क्या इसे ऑस्कर का हकदार माना जाता?

    2.क्या इससे बेहतर कोई फिल्म अभी तक हमारे हिन्दोस्तान में नहीं बनी या नहीं बन सकती?
    3.क्या "तारे ज़मीन पर" फिल्म को ऑस्कर के लिए नहीं भेजा जाना चाहिए था?

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