तेल तल रहा तेवर तीखे,
जनता मुश्किल जाल मॅ,
सरकारे तो पस्त हुई अब,
देश ठगा – बेहाल है,
बिजली – पानी – तैल – रसोई -
गैस, सभी बीमार है,
जीवन भी अब तो जनता का,
चुकने को तैयार है,
ओ तैल मंत्री, तैल सचिव ओ तैल मनेजर,
देश जल रहा बिना तैल- कुछ तो तू कर,
भौचक धन्ना सेठ, लुटे है व्यापरी,
कामगार पर गाज गिरी सबसे भारी,
कोई बाबा-संत-पुजारी आगे आओ,
तैल देव को पूजो-तैल हवन कराओ,
क्योकि:-
तेल तल रहा तेवर तीखे,
जनता मुश्किल जाल मॅ,
सरकारे तो पस्त हुई अब,
देश ठगा – बेहाल है,
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सामायिक-बहुत उम्दा.
जवाब देंहटाएंतेल तल रहा तेवर तीखे,
जवाब देंहटाएंजनता मुश्किल जाल मॅ,
सरकारे तो पस्त हुई अब,
देश ठगा – बेहाल है,
सटीक सामयिक रचना .
हमारा भी तेल के मारे बुरा हाल है। डर लग रहा है कि कहीं रात में दो बजे आफिस से घर जाते समय बाइक बेतेल न हो जाए। तब आपकी कविता बहुत याद आएगी। http://chaighar.blogspot.com
जवाब देंहटाएंtel tal raha.....
जवाब देंहटाएंek baat kanhu..aap bemisal he aour vo sirf isliye nahi ki achcha likhte he balki isliye ki aapme bahuvidha he...
ye bahuvidha unnat hoti rahe aour hame achcha lekhan padne ko milta rahe bas yahi chaah he..
तेल निकाल के छोङेगा, जनता का दुष्ट ये सिस्टम.
जवाब देंहटाएंतेल चाहिये तो बाबा, बदलो यह पूरा सिस्टम.
sahi kaha sahab .....aur to aur abhi hamare yahan transportaron ki hadtaal ne aur tel nikale diya hai.....bhala ho murli devda ka ki tel ki hadtaal samapt ho gayee....umeed hai ab tel ke is khel me thode kam paise karne par sarkaar vichar karegi...uitttam rachna ke liye saadhuvaad ....
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