
डॉ. अनिल चड्ढा की द्वितीय पुरस्कार से सम्मानित बाल कविता
एक नन्ही-मुन्नी के प्रश्न
मैं जब पैदा हुई थी मम्मी,
तब क्या लड्डू बाँटे थे ?
मेरे पापा खुश हो कर,
क्या झूम-झूम कर नाचे थे ?
दादी-नानी ने क्या मुझको,
प्यार से गोद खिलाया था,
भैया के बदले क्या तुमने,
मुझको साथ सुलाया था ?
प्यार अग़र था मुझसे माँ ,
तो क्यों न मुझे पढ़ाया था ?
मनता बर्थ-डे भैय्या का है,
मेरा क्यों न मनाया था ?
था करना मुझसे भेदभाव,
तो दुनिया में क्यों बुलाया था ?
क्या मैं तुम पर भार हूँ माँ ?
फिर तुमने क्यों ये जताया था ?
तुम भी तो एक नारी हो,
क्या तुमने भी यही पाया था ?
ग़र तुमने भी यही पाया था ?
तो क्यों न प्रश्न उठाया था ?
अपने वजूद की खातिर माँ,
क्यों मेरा वजूद झुठलाया था ?
तुमने अपने दिल का दर्द,
कहो किसकी खातिर छुपाया था ?
मैं तो आज की बच्ची हूँ ,
मुझको ये सब न सुहाता है,
इस दुनिया का ऊँच-नीच,
सब मुझे समझ में आता है ।
इसीलिये तो अब मुझको,
आँधी में चलना भाता है,
मेरी तुम चिंता मत करना,
मुझे खुद ही संभलना आता है ।