इसे मासूम मन में उपजी जिज्ञासा कहें या सब कुछ जान लेने की जल्दबाजी , बच्चों के क्या ,क्यों और कैसे का सिलसिला कभी ख़त्म नहीं होता । कई बार तो प्रश्र ही ऐसे होते है कि अभिभावक उलझ कर रह जाते हैं। उनके प्रश्नों को टाल जाना ही बड़ों को बचने का एकमात्र मार्ग नज़र आता है | पर क्या यह सही है ? Yah Post Yahan padhen...!
सवालों में उलझा बचपन .....!
Posted on by डॉ. मोनिका शर्मा in
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Dr Monika Sharma
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आज आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
जवाब देंहटाएं...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
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