उसकी रोटी, आषाढ का एक दिन एवं सतह से उठता आदमी...जैसी यथार्थ की पृष्ठभूमि से जुडी़ लीक से हटकर फिल्मों के सृजनहार प्रख्यात फिल्म निर्देशक मणि कौल का कल रात लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। वे 66 वर्ष के थे। सूत्रों ने बताया कि कौल का निधन कल रात एक बजे गुडगांव स्थित उनके निवास पर हुआ। उन्हें कल रात ही अस्पताल से छुट्टी दी गई थी। कौल के परिवार में दो पुत्र और दो पुत्रियां हैं। कौल का अंतिम संस्कार इस समय (दिनांक 6 जुलाई 2011 समय सायं 4 बजे) लोधी रोड शमशान घाट पर हो रहा है।
उल्लेखनीय है कि 25 दिसंबर 1944 को राजस्थान के जोधपुर में जन्मे कौल ने भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान एफटीआईआई में बंगाली नवयर्थाथवादी सिनेमा के पुरोद्धा रितिक घटक के मार्गदर्शन में शिक्षा प्राप्त की थी। रितिक के सरोकारों का युवा कौल के मन पर बडा गहरा प्रभाव पडा। कौल को उन भारतीय सिने निर्देशकों की श्रेणी में गिना जाता था जिन्होंने लीक से हटकर फिल्में बनाई और नए भारतीय सिनेमा को आकार देने में एक अहम भूमिका अदा की।
मणि कौल का मानना था कि पुराने सिनेमा में जो बातें प्रतीक के रुप में कहीं गयी वे चीजें नए फिल्मकार सीधी सीधी बात में कहते हैं। कैमरे के कोण, लोकेशन या ध्वनि अथवा संवादों की भाषा में जो नयापन है उसे सिनेमा का नया आंदोलन कहा जा सकता है। मसलन विशाल भारद्वाज ने ओंकारा में जिस भाषा का प्रयोग किया है वह पिछले सारे अनुभवों से भिन्न है।
मणि कौल नयी कहानी आन्दोलन के महत्वपूर्ण कथाकार मोहन राकेश की एक कहानी पर आधारित 'उसकी रोटी' उन्हीं के नाटक 'आषाढ का एक दिन' 'मुक्तिबोध' की कहानी पर सतह से उठता आदमी. विनोद कुमार शुक्ल के उपन्यास 'नौकर की कमीज' और 'विजय दान' देथा की कहानी 'दुविधा' पर इसी नाम से फ्ल्मि बना कर अंतरराष्ट्रीय स्तर की ख्याति प्राप्त की थी।
एक बार एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था कि सिनेमा को देखने का तरीका यह है कि जो दिख रहा है उससे परे हट कर देखा जाए। जो दिखता है वह उपभोक्तावाद है। कार सुंदर है या कोई चीज सुंदर है उससे परे हट कर देखना चाहिए। जो नहीं दिख रहा उस पर दृष्टि डालने की कोशिश करनी चाहिए। कथा से भिन्न जो अकथ है जिसे महसूस किया जा सके। वह ध्वनि जो सुनाई न दे उसे समझने की कोशिश करनी चाहिए. सिनेमा का आनंद इसी कोशिश में है।
नुक्कड़ समूह परिवार मणि कौल के निधन पर विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता है।
उल्लेखनीय है कि 25 दिसंबर 1944 को राजस्थान के जोधपुर में जन्मे कौल ने भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान एफटीआईआई में बंगाली नवयर्थाथवादी सिनेमा के पुरोद्धा रितिक घटक के मार्गदर्शन में शिक्षा प्राप्त की थी। रितिक के सरोकारों का युवा कौल के मन पर बडा गहरा प्रभाव पडा। कौल को उन भारतीय सिने निर्देशकों की श्रेणी में गिना जाता था जिन्होंने लीक से हटकर फिल्में बनाई और नए भारतीय सिनेमा को आकार देने में एक अहम भूमिका अदा की।
मणि कौल का मानना था कि पुराने सिनेमा में जो बातें प्रतीक के रुप में कहीं गयी वे चीजें नए फिल्मकार सीधी सीधी बात में कहते हैं। कैमरे के कोण, लोकेशन या ध्वनि अथवा संवादों की भाषा में जो नयापन है उसे सिनेमा का नया आंदोलन कहा जा सकता है। मसलन विशाल भारद्वाज ने ओंकारा में जिस भाषा का प्रयोग किया है वह पिछले सारे अनुभवों से भिन्न है।
मणि कौल नयी कहानी आन्दोलन के महत्वपूर्ण कथाकार मोहन राकेश की एक कहानी पर आधारित 'उसकी रोटी' उन्हीं के नाटक 'आषाढ का एक दिन' 'मुक्तिबोध' की कहानी पर सतह से उठता आदमी. विनोद कुमार शुक्ल के उपन्यास 'नौकर की कमीज' और 'विजय दान' देथा की कहानी 'दुविधा' पर इसी नाम से फ्ल्मि बना कर अंतरराष्ट्रीय स्तर की ख्याति प्राप्त की थी।
एक बार एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था कि सिनेमा को देखने का तरीका यह है कि जो दिख रहा है उससे परे हट कर देखा जाए। जो दिखता है वह उपभोक्तावाद है। कार सुंदर है या कोई चीज सुंदर है उससे परे हट कर देखना चाहिए। जो नहीं दिख रहा उस पर दृष्टि डालने की कोशिश करनी चाहिए। कथा से भिन्न जो अकथ है जिसे महसूस किया जा सके। वह ध्वनि जो सुनाई न दे उसे समझने की कोशिश करनी चाहिए. सिनेमा का आनंद इसी कोशिश में है।
नुक्कड़ समूह परिवार मणि कौल के निधन पर विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता है।
दु:ख की बात है कि आज कई समाचारपत्रों में यह खबर नहीं छपी। शायद देर रात निधन होने की वजह से स्टाप प्रेस नहीं हो पाया हो। लेकिन ऐसे उत्क़ष्ट फिल्म निर्देशक का बिछड़ना वाकई बहुत बड़ी क्षति है। स्व0 कौल को मेरी श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएंआज आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
जवाब देंहटाएं...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
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विनम्र श्रद्धांजलि...
जवाब देंहटाएंसादर,
डोरोथी.