शरीर शांति के लिए देहपाठ किया जाता है। देहपाठ को कुकर्म या पापकर्म मान लिया जाता है जबकि इसमें पाप जैसा कुछ भी नहीं है। वैसे क्या है पाप और क्या है पुण्य, अभी तो इसी का डिसीजन फाइनल नहीं है। किसी का पाप किसी के लिए पुण्य और किसी का पाप किसी का भी पुण्य बनने की क्षमता से युक्त होता है। देहपाठ को चारित्रिक पतन माना जाता है। यह दैहिक प्रकार की चरित्र संस्कृति है जिसका निर्माण और विकास मानव ने ही किया है। इसमें भी चरित्र की गिरावट तो दोनों की माना जाता है। पर इज्जत नारी की तार-तार होती है। नर के तार नहीं जुड़े होते... पूरा पढ़ने के लिए यहां पर क्लिक कीजिए और टिप्पणी भी वहीं कीजिएगा
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Posted on by अविनाश वाचस्पति in
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