भ्रष्टाचार व काले धन के पक्ष में निश्चय ही कोई भी नहीं हो सकता. लेकिन लोकतंत्र में, सुपर लोकतंत्र का जो रास्ता अण्णा हज़ारे की देखा-देखी बाबा रामदेव ने अपनाया है वह हमें कहां ले जा रहा है अब मुझे भी पता नहीं. सिविल सोसायटी के नाम पर, कल तक की पेज-3 की बैठी-ठाली जनता को अच्छे ‘सोशल वर्क’ का पुख़्ता हैंडल मिल गया है. हींग लगे न फिटकरी और रंग भी चोखा. किसी के प्रति कोई जवाबदेही नहीं और सभी को हड़काते भी घूमो. ऐसे दूध के धुले लोकपाल न जाने ये लोग मंगल ग्रह से लाएंगे जो संविधान की किसी भी संस्था से ज्यादा अधिकार-प्राप्त होगें….
बाबा रामदेव एक तरफा ट्रैफ़िक है, ये सज्जन केवल बोलते हैं सुनते नहीं. ये मानकर चलते हैं कि बस उनकी सोच ही सही है बाक़ी सब मूर्ख हैं. अब ये भ्रष्टाचार व काले धन का मुद्दे पर एकाधिकार किए बैठे हैं जो इन्हें सत्ता की एकमात्र सीढ़ी दिखाई दे रहा है. बी.जे.पी. की हार से भी इन्होंने कोई सबक़ नहीं सीखा. दूसरी तरफ, लंगोट की ढीली सरकार भी मनौती- मोड में दुम दबाए यहां वहां घूम रही है.
बड़े नोटों का चलन बंद करना ही कोई एकमात्र उपाय नहीं है. काला धन बहुत से दूसरे रास्तों से भी चलायमान रहता है, वे हैं compensatory and complementary over/under invoicing, over/under pricing, exchange in precious metals, stones etc., fudged book entries, paper transactions including shares/derivatives/forward commodity markets etc., payments beyond/across borders, squaring off entries and accounts....and so on. कोई भी महानगरीय चार्टर्ड एकाउंटेंट, आयकर व enforcement निदेशायलय का अधिकारी ये अच्छे से जानता है. आज जितने भी बड़े बड़े घोटाले सामने आए हैं उनमें से किसी में भी बड़े नोटों का कोई आदान-प्रदान सामने नहीं आया है. जिन केसों में बड़े नोट पकड़े जाते हैं वे कुल ब्लैक अर्थव्यवस्था का मात्र नगण्य हिस्सा है.
लेकिन बाबा रामदेव के सधुक्कड़ी अर्थशास्त्र में, बेबस व दुखी आम आदमी ठीक वैसे ही उम्मीद पालने लगा है, जिस तरह 60 के दशक में हरियाणा में कुछ लोग सता में यह कर आ गए थे कि भाखड़ा-नंगल डैम बनाकर पानी से बिजली तो पंजाब ने सोख ली, तुम्हें तो बस फोका पानी ही मिल रहा है...
यह कोई भावनात्मक मुद्दा ही नहीं है दूसरों की बात सुनने का माद्दा भी होना चाहिये.
-काजल कुमार
वाह काजल जी
जवाब देंहटाएंजल जल अलग
और कालिमा
बिल्कुल अलग।
सही बात कही है काजल कुमारजी आपसे असहमत नहीं हुआ जा सकता .सब इसी सिस्टम के उत्पाद हैं जो होगा अन्दर से ही होगा लेकिन उसके लिए वर्ल्ड बैंक का दिया लंगोट बदलना होगा .
जवाब देंहटाएंआपकी लेखनी हमेशा की तरह धारदार है | सच्चाई को बयान करती है |
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