दो बरस पहले एक अलबेले नवेले पुरस्कार के साथ भारी भरकम राशि की घोषणा की गई। वोटिंग भी हुई। वोटों का डिब्बा लबालब भर गया। लगा कि पुरस्कार देने ही होंगे, पचास हजार कम नहीं होते। सो आनन फानन में रद्द कर दिए गए। पचास हजार का लाभ हो गया, पचास हजार देने नहीं पड़े, पूरे एक लाख की कमाई। सच है कि हिंदी ब्लॉगिंग में भरपूर कमाई है। न देने का हल्ला मचने पर खूब प्रतिक्रियाएं आने लगीं और अलबेले पुरस्कार प्रदायक ने मौका ताड़ते ही कि मेरी पोस्ट, टिप्पणी व्यवस्था में अव्यवस्था फैल रही है, चिल्लाते हुए पुरस्कार निरस्त कर दिए। मतलब पब्लिसिटी भी ले ली और कानी कौड़ी का भी खर्च नहीं। मुफ्त के आम, गुठली भी मिलीं बिना दाम।
क्या जुआ हैं आज पुरस्कार
Posted on by अविनाश वाचस्पति in
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अलबेले पुरस्कार,
सम्मान,
हिंदी ब्लॉगर
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