शमशेर राजनीति नहीं, सौंदर्य के कवि हैं - नामवर सिंह: "हैदराबाद: ‘‘शमशेर बहादुर सिंह हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं के बड़े कवि थे। गद्यकार भी वे उतने ही बड़े थे। वे इकलौते ऐसे आलोचक हैं जिन्होंने हाली की उर्दू रचना ‘मुसद्दस’ और मैथिलीशरण गुप्त की हिंदी रचना ‘भारत भारती’ की गहराई से तुलना करते हुए दोनों के रिश्ते की पहचान की। इक़बाल पर भी हिंदी में उन्होंने ही सबसे पहले लिखा। वे हिंदी और उर्दू के बीच किसी भी प्रकार के भेदभाव और टकराव के विरोधी थे। इसीलिए तो उन्होंने कहा था - ‘वो अपनों की बातें, वो अपनों की खू बू / हमारी ही हिंदी हमारी ही उर्दू।’ इतना ही नहीं, नितांत निजी क्षणों में भी उन्हें उर्दू ज़बान ही याद आती थी। उदाहरण के लिए मुक्तिबोध पर उनकी उर्दू में लिखी कविता को देखा जा सकता है।’’
ये विचार हिंदी समीक्षा के शलाका पुरुष प्रो. नामवर सिंह ने 30-31मार्च, 2011 को हैदराबाद में आयोजित द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘शमशेर शताब्दी समारोह’ के उद्घाटन सत्र में बुधवार को बीज व्याख्यान देते हुए व्यक्त किए। यह समारोह उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा और मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में संपन्न हुआ। प्रो. नामवर सिंह ने इसे एक अच्छी शुरुआत मानते हुए कहा कि शमशेर हिंदी-उर्दू की गंगा-जमुनी तहजीब के अपने ढंग के विरले अदीब थे। हिंदी और उर्दू की राष्ट्रीय महत्व की दो बड़ी संस्थाओं ने हिंदी-उर्दू के इस दोआब को पहचाना है, यह बहुत महत्वपूर्ण घटना है। इस बहाने इन दोनों भाषाओं के परस्पर नज़दीक आने का जो सिलसिला शुरू हुआ है वह हैदराबाद से आरंभ होकर देश भर में फैलना चाहिए।
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ये विचार हिंदी समीक्षा के शलाका पुरुष प्रो. नामवर सिंह ने 30-31मार्च, 2011 को हैदराबाद में आयोजित द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘शमशेर शताब्दी समारोह’ के उद्घाटन सत्र में बुधवार को बीज व्याख्यान देते हुए व्यक्त किए। यह समारोह उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा और मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में संपन्न हुआ। प्रो. नामवर सिंह ने इसे एक अच्छी शुरुआत मानते हुए कहा कि शमशेर हिंदी-उर्दू की गंगा-जमुनी तहजीब के अपने ढंग के विरले अदीब थे। हिंदी और उर्दू की राष्ट्रीय महत्व की दो बड़ी संस्थाओं ने हिंदी-उर्दू के इस दोआब को पहचाना है, यह बहुत महत्वपूर्ण घटना है। इस बहाने इन दोनों भाषाओं के परस्पर नज़दीक आने का जो सिलसिला शुरू हुआ है वह हैदराबाद से आरंभ होकर देश भर में फैलना चाहिए।
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