संपादको के चेहरे बेनकाब करने वाले उपन्यास मिठलबरा का दूसरा संस्करण प्रकाशित

संपादको के चेहरे बेनकाब करने वाले उपन्यास मिठलबरा का दूसरा संस्करण प्रकाशित
पत्रकारिता की आड़ में मालिको की दलाली करने वाले और श्रमजीवी पत्रकारों को प्रताडित करने वाले मालिकनिष्ठ संपादको की असलियत जाननी हो तो रायपुर में पिछले तीस सालो से सक्रिय पत्रकार गिरीश पंकज के उपन्यास मिठलबरा की आत्मकथा ज़रूर पढ़नी चाहिए। इस उपन्यास का नया संसकरण मिठलबरा शीर्षक से दिल्ली से प्रकाशित हो गया है. आगे पढें...

6 टिप्‍पणियां:

  1. सूचना के लिए धन्यवाद। गिरीश पंकज जी को इस कृति के लिए ढेर सारी बधाइयां। हम यह कृति ज़रूर पढ़ना चाहेंगे।

    जवाब देंहटाएं
  2. आप का बहुत बहुत धन्यवाद, इस जानकारी के लिये,

    जवाब देंहटाएं
  3. जानकारी देने के लिए,
    बहुत-बहुत धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  4. बधाई हो गिरीश भईया को.

    जवाब देंहटाएं

आपके आने के लिए धन्यवाद
लिखें सदा बेबाकी से है फरियाद

 
Copyright (c) 2009-2012. नुक्कड़ All Rights Reserved | Managed by: Shah Nawaz