अभिव्यक्ति के जो कई माध्यम हैं, उनमें
भाषा का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। ध्वनियों ने लिपि को विकसित किया और लिपियों ने अक्षरों को विकसित किया। अक्षर ध्वनि और लिपि का सर्वोच्च रूप है। भाषा में भी ध्वनि,लिपि और अक्षर का ही महत्व है। इसी के आधार पर हम अपनी बात संप्रेषित करते हैं।
मीडियाकर्मी अपनी बात यानी खबर को भाषा के माध्यम से संप्रेषित करते हैं। इसलिए उनके लिए उस भाषा और वर्तनी का काफी महत्व है, जिसके ज़रिये वे खबर को संप्रेषित करते हैं।
मैं जब सुबह उठ कर अखबार उठाता था, तो भाषा और वर्तनी की
अशुद्धियों की भरमार पाता था। पटना से प्रकशित सभी दैनिकों की मैं बात कर रहा हूं- नवभारत टाइम्स, हिन्दुस्तान और आज सबकी। इनमें तो ‘आज’ में बहुत सारी अशुद्धियाँ रहती थीं। देख कर मन खिन्न हो जाता था। उन अशुद्धियों को दूर करने के लिए मैं अपने स्तम्भ-लेखन का प्रूफ़ खुद पढ़ता था। वे स्तम्भ थे-‘कस्बानामा’,नगर-चर्चा,‘कथन’। लेकिन बाद में सोचा कि मैं इनमें अपनी आंखे गड़ाने में ही सारा समय लगा दूंगा, तो फिर लिखूंगा कब? इसीलिए मैं जो कुछ भी लिखता था, समाचार के अलावा,उनका भी प्रूफ़ नहीं पढ़ता था। वैसे, बहुत सारे पत्रकार लिखते भी गलत हैं। शायद ही कोई ‘संन्यासी’ लिखता है, ज्यादातर लोग ‘सन्यासी’ ही लिखते हैं जो गलत है। उस समय मेरे साथ काम करने वाले कई सहयोगी कागजात की जगह कागजातों लिखते थे। कागज का बहुवचन कागजात है। फिर कागजातों की क्या जरूरत है। इसी तरह हमलोगों के ही अखबार में ‘गण्यमान्य’की जगह ‘गणमान्य’ छपा था। मैंने अपने सहकर्मी को बताया कि यह शब्द गलत है। लेकिन वे मानने के लिए तैयार नहीं थे। मैंने उन्हें समझाते हुए कहा-अलग-अलग देखें,तो ‘गण’ भी ठीक है और ‘मान्य’ भी।
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