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टीआरपी का खेल पत्रकारिता नहीं - प्रभाष जोशी


मीडिया के बदलते स्वरुप और उसकी भूमिका पर स्व.‘प्रभाष जोशी’ से 2007में इंटरव्यू लिया था। मीडिया मंत्र का पहला इंटरव्यू। पहली मुलाकात में हमलोगों से ऐसे मिले जैसे वर्षों से जानते हैं। बड़ी आत्मीयता और सहजता से मिले। गंभीरता से हमारी बात सुनी। हमारी हिम्मत बढाई और पत्रिका के लिए शुभकामना दी। प्रभाष जोशी जी का जाना हम जैसे युवा पत्रकारों के लिए भी एक गहरा सदमा है. मेरे लिए बहुत खास थे. मेरी पत्रिका मीडिया मंत्र का विमोचन उनके ही शुभ हाथों से हुआ था. उनसे मुलाकात कम होती थी लेकिन हमेशा उन्हें अपने करीब महसूस करता था. मीडिया मंत्र को लेकर जब भी कोई बड़ा संकट पैदा होता था तो बरबस उनकी बात याद आ जाती थी कि जब तक रगड़ाई नहीं होती तबतक चमक नहीं आती. उनकी यह बात हमेशा संघर्ष के लिए प्रेरित करती रहती है।


सवाल : मीडिया क्या है?

जो भी कुछ संचार के लायक है, उसको लोगों तक पहुँचाना चाहिए। मीडिया की मूल प्रेरणा यही है। सूचना में तथ्यों की तरफ ज्यादा ध्यान दिया जाना चाहिए बजाय दूसरी बातों के । जब आप तथ्य बता देंगे तो इसके आधार पर राय बनाई जा सकती है। "टी।आर.पी. के खेल को मैं पत्रकारिता नहीं मानता। जिसे जो दिखाना है वो दिखाए और हमें भी यह समझ लेना चाहिए कि वो मनोरंजन कर रहे हैं। यदि रास्ते में बैठकर कोई मदारी डमरू बजाते हुए बंदरिया नचा रहा तो उसको ये करने दीजिए, उसे ये हक है पर जिसे खबर देखनी होगी वह वहाँ नहीं जाएगा।" READ MORE....

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इतनी कटुता...? इतनी घृणा...?

प्रभाष जोशी जी के निधन की खबर दिल्ली से प्रकाशित होने वाले एक तथाकथित राष्ट्रीय अखबार में नहीं छपी. इतनी कटुता...? इतनी घृणा...? अरे भाई, आदमी हमेशा के लिए चल बसा. अब तो दुराग्रह से मुक्त हो जाओ सम्पादकजी...अपनी इसी ओछी मानसिकता के कारण कुछ संपादक मालिक के अच्छे नौकर तो बने रहते है लेकिन वे पत्रकारिता के कलंक ही माने जाते है. प्रभाष जोशी का अचानक ऐसे चला जाना उन लोगों के लिए दुखद घटना है जो पत्रकारिता को मिशन की तरह लेते थे और वैसा व्यवहार भी करते थे। जोशी जी के जाने के वाद अब लम्बे समय तक दूसरा प्रभाष जोशी पैदा नहीं होगा। राजेंद्र माथुर जी के जाने के बाद प्रभाष जोशी ने उनके रिक्त स्थान को जैसे भर दिया था। एक नए तेवर, नई दृष्टि के साथ हिंदी पत्रकारिता को उन्होंने एक ऐसा मोड़ दिया, जैसा पहले किसी ने नहीं दिया था। READ MORE....
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भागो! पत्रकार आ रहा है!

बार बार इस बात का रोना कि पब्लिक न्यूज नहीं देखना चाहती इसलिए हम मनोरंजन दिखाते हैं सवाल ये है कि क्या किसी डॉक्टर ने कहा था कि आप न्यूज चैनल का ही लाइसेंस लीजिए या पब्लिक अपका पैर पकड़ने गयी थी। आप लाइफ स्टाइल या म्यूजिक चैनल चलाइए किसी ने रोका हैं. तड़का लगाकर खबर को सनसनीखेज बनाना एक पत्रकार की अर्हता हो गयी है. मानवीय कमजोरियों का फायदा उठाकर किसी को अपना शिकार बनाने की मीडिया को लत लगती जा रही है। इतने जिम्मेदारी भरे कार्य के लिए जिन पत्रकारों का चयन किया जाता है और जिस तरह से किया जाता है उस पर भी गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। READ MORE...
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मैं एस.पी.की जिंदगी का अर्जुन कभी नहीं बन पाया- आशुतोष, मैंनेजिंग एडिटर,आईबीएन-7

मैं एस.पी.की जिंदगी का अर्जुन कभी नहीं बन पाया- आशुतोष, मैंनेजिंग एडिटर,आईबीएन-7
एस।पी हमेशा जनता से जुड़ने वाली ख़बरों और वैसी ही पत्रकारिता के पक्षधर थे वे शास्त्रीयता से ज्यादा लोकप्रियता के पक्षधर थे अख़बारों से लेकर टेलीविजन तक में उनकी यही कोशिश थी जिसमें वे सफल भी हुए एस।पी ने पत्रकारिता को आम जन से जोड़ दिया और आज टेलीविजन जिस मुकाम पर खडा है उसमें एस.पी. का बहुत बड़ा योगदान है एस.पी प्रयोग के पक्षधर थे यदि आज वे होते तो वे भी पत्रकारिता को और लोकप्रिय बनाने के लिए प्रयोग करते लेकिन आज प्रयोग के नाम पर ऐसी कुछ चीजें भी टेलीविजन पर चली जाती है जो शायद नहीं जानी चाहिए . विस्तृत लेख
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गंवारों के लिए है भोजपुरी फिल्मों के गीत

गंवारों के लिए है भोजपुरी फिल्मों के गीत
इन दिनों भोजपुरी गीतों और फिल्मों का दौर है। भोजपुरी फिल्म की यात्रा प्रारम्भ हुई थी गंगा मईया तोहे पियरी चढईबो से। उसके बाद कई भोजपुरी फिल्में बनी लेकिन उन्हें इस भोजपुरी फिल्म की तरह न प्रसिद्धि मिली और न व्यवसायिक सफलता। उस दौर के फिल्मों की यह खूबी थी कि उनके गीतों में काव्य सौष्ठव होता था। मसलन गंगा मईया तोहे पियरी चढईबो का गीत सोनवा के पींजडा में बंद भईली हाय राम कि चिडई के जीयरा उदास या हे गंगा मईया तोहे पियरी चढईबो, सईंया से कर द मिलनवा आदि गीतों में रसात्मकता के साथ-साथ काव्यात्मकता भी थी। READ MORE...
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मीडिया खबर.कॉम का सर्वे सुर्खियों में छाया

मीडिया खबर।कॉम ने कुछ माह पहले राजनीतिक पत्रकारिता और उससे जुड़े कई मुद्दों पर एक सर्वे करवाया था। सर्वे की विस्तृत रिपोर्ट मीडिया खबर.कॉम और मीडिया पर केंद्रित देश की एकमात्र मासिक पत्रिका मीडिया मंत्र में छपी थी. सर्वे को व्यापक सफलता और मान्यता मिली थी. बुद्धिजीवियों और टेलीविजन इंडस्ट्री के लोगों ने भी सर्वे को सराहा था. अभी हाल ही में सरकारी न्यूज़ एजेन्सी यूनीवार्ता ने मीडिया खबर.कॉम के इस सर्वे को पूरे देशभर में जारी किया. प्रतिष्ठित एच.टी.मीडिया समूह के वेबसाइट लाईव हिंदुस्तान.कॉम (http://www.livehindustan.com/news/desh/national/39-39-71890.html), प्रातःकाल (http://pratahkal.com/index.php?option=com_content&task=view&id=95050), आज समाज, वीर-अर्जुन, देशबंधु समेत देशभर के कई प्रतिष्ठित अख़बारों में मीडिया खबर.कॉम के सर्वे की रिपोर्ट छपी. इससे मीडिया खबर.कॉम के सर्वे को एक तरह से व्यापक सफलता और मान्यता मिली है. साथ ही मीडिया खबर.कॉम की विश्वसनीयता बढ़ी है. READ MORE...

(नुक्कड़ के साथियों के लिए सूचना)

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मालिकों को ब्रेकिंग न्यूज़ भी चाहिए और विज्ञापन भी. चैनल हेड आखिर करे तो क्या करे ?

मालिकों को ब्रेकिंग न्यूज़ भी चाहिए और विज्ञापन भी। चैनल हेड आखिर करे तो क्या करे ?
अक्सर यह सुनने - पढने में आता है कि आज के संपादक, मैनेजर हो गए हैं। बात कुछ हद तक सही भी है. कारपोरेट के बढ़ते दवाब में मीडिया संस्थानों में संपादकों को प्रबंधक की भूमिका भी निभानी पड़ती है और शायद कई बार उनके सम्पादकीय कौशल पर प्रबंधकीय दायित्व हावी हो जाता है. इस सिलसिले में वरिष्ठ पत्रकार मार्क टली कहते हैं - 'वर्तमान में मीडिया का कॉर्पोरेटाईजेशन इतना बढ़ गया है कि एडिटर अब मैनेजर हो गए हैं. ' उन्ही को बात को विस्तार देते हुए दिल्ली सरकार के सूचना और जनसंपर्क विभाग के निदेशक 'उदय सहाय' कहते हैं कि - '90 फीसदी मीडिया संस्थानों की दीवार ढह चुकी है. अब मार्केटिंग का काम एडिटोरिअल वाले करते हैं.' विस्तृत ख़बर ..
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मीडिया से भाषा और संस्कृति दोनों मटमैली

मीडिया भाषा और जीवन की संस्कृति को विकृत कर रहा है और लोगों के बार-बार संकेतित करने के बावजूद सचेत नहीं हो रहा है। भाषा का संबंध संस्कृति से भी है. हमारी संस्कृति युग-युग से भाषा से प्रभावित होती रही है. भाषा के समाजशास्त्र में हम इस बात का विवेचन भी करते हैं. यह बात प्रमाणित हो गयी है कि भाषाविज्ञान ने आँखे ही समाजशास्त्र की गोद में खोली है. इसलिए भाषा का संबंध संस्कृति से भी है. भाषा संस्कृति को प्रभावित करे या संस्कृति भाषा को प्रभावित करे, यह बात तय है कि दोनों ही स्थितयों में इस प्रभाव या परिवर्तन की प्रक्रिया दीर्घ होती है. पूरा लेख पढ़ें...
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लता जी के जन्मदिन पर न्यूज़ 24 की खास पेशकश लतानमा देखना ना भूलें

मेलोडी क्वीन लता मंगेशकर 28 सितम्बर को 80 साल की हो रही हैं। उनके जन्म दिन से तीन दिन पहले न्यूज 24 शुक्रवार रात 10 बजे एक घंटे का खास प्रोग्राम चला रहा है -लतानामा--80 साल की मेलोडी क्वीन। लता मंगेशकर के इंटरव्यू और फिल्म इंडस्ट्री के तमाम लोगों की लता से जुड़ी यादों को लेकर ये शो बनाया गया है। शुक्रवार की रात 10 बजे इसका पहला भाग प्रसारित हो रहा है। दूसरा भाग शनिवार रात 10 बजे से प्रसारित होगा। पूरी ख़बर पढने के लिए यहाँ क्लिक करें । आगे पढ़े...
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हिंदी को लेकर चिंतित होने की जरुरत नही - प्रो.सुधीश पचौरी

हिंदी को लेकर चिंतित होने की जरुरत नही - प्रो।सुधीश पचौरी
हिंदी पर सोचने के लिए हिंदी के बरक्स से शुरुआत नहीं होनी चाहिए। हिंदी पर जितनी बहसें हैं उसमें किससे आक्रांत है, शुरू वहां से होनी चाहिए। माने एक भाषा को खतरा है – इस मनोवृत्ति से सोचना शुरू करते हैं तो एक किस्म का पेरोनोइ, पेरोनोइड किस्म का अनुभव रहता है और हम सहज मनोवृत्ति से, सहज मन से समझ ही नहीं पाते कि हम क्या हैं? हिंदी भाषा और हिंदी जनक्षेत्र – इन दोनों को मैं साथ-साथ लेकर चलता हूं, ऑब्लिक करके चलता हूं। मेरे लिए ये दोनों अलग-अलग नहीं है। मैंने पहले ही ये कहने की कोशिश की है कि हिंदी का कोई बरक्स नहीं है, किसी भी भाषा का कोई बरक्स नहीं है। अगर है भी तो पड़ोस। भाषा का पड़ोस होता है, बरक्स नहीं। बरक्स एक कल्चरल डिस्कोर्स है जो आ जाती है। यानी मैं इक्सक्लूसिविटी चाहता हूं, अतिविशिष्टता चाहता हूं, ऐसी भाषा चाहता हूं, उसे रक्त से ऐसी शुद्ध, रक्त से ऐसी शुद्ध कर देना चाहता हूं, उसमें कोई और रक्त न मिले तो निश्चित रूप से ये अलग ही ढंग का डिस्कोर्स है जो भाषा का तो नहीं है। READ MORE..

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संपादको के चेहरे बेनकाब करने वाले उपन्यास मिठलबरा का दूसरा संस्करण प्रकाशित

संपादको के चेहरे बेनकाब करने वाले उपन्यास मिठलबरा का दूसरा संस्करण प्रकाशित
पत्रकारिता की आड़ में मालिको की दलाली करने वाले और श्रमजीवी पत्रकारों को प्रताडित करने वाले मालिकनिष्ठ संपादको की असलियत जाननी हो तो रायपुर में पिछले तीस सालो से सक्रिय पत्रकार गिरीश पंकज के उपन्यास मिठलबरा की आत्मकथा ज़रूर पढ़नी चाहिए। इस उपन्यास का नया संसकरण मिठलबरा शीर्षक से दिल्ली से प्रकाशित हो गया है. आगे पढें...
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फोकस टीवी के मुंबई ब्यूरो चीफ पर छेड़छाड़ का आरोप, हुए गिरफ्तार



फोकस टीवी के मुंबई ब्यूरो चीफ पर छेड़छाड़ का आरोप, हुए गिरफ्तार


मुंबई। फोकस टीवी के मुंबई ब्यूरो चीफ 'हरिगोविंद विश्वकर्मा' को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है.उनपर अपने एक सहकर्मी के साथ छेड़छाड़ का आरोप लगा है. आगे पढ़ें ।


फोकस में आई एक कलंक कथा


महिलाओं को फोकस में लाने के मकसद से शुरू किए गए चैनल के मुंबई ब्यूरो की एक नई नवेली लड़की ने अपने मुखिया पर ही खुद के शील भंग की कोशिश की रपट मुंबई के वरसोवा पुलिस थाने में लिखवाई, तो पुलिस उनको ले गई। मामला सामने आते ही कंपनी द्वारा उस लड़की को दरवाजा दिखा दिए जाने की खबर है। और खबर यह भी हैं कि जिसका कभी खबरों से कोई वास्ता नहीं रहा, ऐसे एक शख्स को जब इस चैनल से निकाल बाहर कर दिया गया, तो उसने दुश्मनी निकालने के लिए उस लड़की को अपने षड़यंत्र में शामिल किया। और उसमें जोश भरा एक महिला वकील ने, जो उस निकाल बाहर किए शख्स की खैरख्वाह है। आगे पढ़ें।

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वॉयस ऑफ इंडिया के बहाने जरा सोचिए,कुछ कीजिए

उस समय तक वॉयस ऑफ इंडिया की सांसें लगभग उखड़ चुकी थीं, जब साईं भक्त और चैनल के सीईओ अमित सिन्हा इसे मज़बूती के तौर पर खड़े करने की बात करते नज़र आ रहे थे। मीडिया ख़बरों से जुड़ी एक वेबसाइट पर बतौर सीईओ उन्होंने कहा कि मैं साईं का भक्त हूं और मुझे उन पर पूरा भरोसा है, सब ठीक हो जाएगा। जाहिर है, उस समय अमित सिन्हा ने चैनल से जुड़े लोगों को जो भरोसा दिलाया, वो एक सीईओ की हैसियत से ज़्यादा श्रद्धा में जकड़े एक भक्त की भावुकता से ज़्यादा कुछ भी नहीं था। जिन लोगों को लगता है कि उनका जीवन श्रद्धा, विश्वास और धार्मिक मान्यताओं के आधार पर तय होते हैं, उन्हें अमित सिन्हा की बात पर भरोसा करने में रत्तीभर भी संदेह नहीं हुआ होगा और वो इस इंटरव्यू के पढ़े जाने के बाद से ही राहत महसूस करने लगे होंगे। वैसे भी देश के भीतर एक खास तरह की जनता हमेशा से मौजूद है जो बाबा, पुजारी, भगवान और पीर-फकीरों के प्रभाव से कोढ़ी, लाचार और अपाहिज को रातोंरात चंगा होते देखते आये हैं। अपनी इसी समझदारी के बूते पर अमित सिन्हा ने सीईओ के तौर पर एक-दो लोगों की जिंदगी नहीं बल्कि पूरा का पूरा एक चैनल ही चंगा करने की जिम्मेवारी अपने आराध्य पर डाल दी। अगर अमित सिन्हा के भीतर प्रोफेशनल एप्रोच होता, तो वो साईं मिलेनियर नाम से दूसरा चैनल खोलने के बजाय मौजूदा चैनल को दुरुस्त करने का काम करते। इस बात को समझ पाते कि दिन-रात साधना और आध्यात्म की बात करनेवाले चैनल भी बाज़ार की शर्तों पर चलते हैं, उसे कोई बाहरी शक्ति चंगा करने नहीं आती। नहीं तो अब या तो ये मानिए कि सारी गड़बड़ी उस आराध्य की है, वो अब समर्थ नहीं रह गये कि कोढ़ी को चंगा कर सकें या फिर अमित सिन्हा को इस पूरे प्रकरण के लिए जिम्मेवार मानिए कि उन्होंने सैकड़ों मीडियाकर्मियों की जिंदगी से खिलवाड़ किया है और भक्त होकर आस्था की सत्ता के आगे ढोंग रचने का काम किया है। ये मामला एक चैनल का है] इसलिए बाकी के चैनल कवरेज करने के बावजूद भी चुप्पी साधे बैठे हैं। नहीं तो दूसरी स्थिति होती तो ये पूरा मामला आस्था और कल्याण से जुड़ी स्टोरी एंगिल को लेते हुए हम ऑडिएंस के लिए एक के बाद एक पैकेज बनकर सामने आते। पूरा लेख मीडिया ख़बर.कॉम पर पढ़ सकते हैं। यहाँ क्लिक करें।
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मीडिया के ‘‘भूलते भागते क्षण’’

बहुत पुरानी बात नहीं है, जब हमारी दिनचर्या देश दुनिया की ख़बर पढ़ने के साथ शुरू होती थी। सुबह सवेरे अख़बार के बड़े - बड़े और मोटे आकार में लिखे हेडलाइन्स पर चर्चा और उसके नतीजों पर बहस के बाद बाकी के काम होते थे। शाम के समय दफ्तर से लौटने के बाद रेडियो पर प्रसारित होने कार्यक्रम हमें तरोताजा करते थे। इसमें दिन भर की ताजा ख़बरों के बुलेटिन को भी लोग गंभीरता से लेते थे। मीडिया लोगों की जरूरत बन चुकी थी। लोग इस क्षेत्र में क्रांति का इंतजार कर रहे थे। एक ऐसी क्रांति का जिससे ख़बर उनके पास तत्काल पहुंच सकें औरं उन्हें 24 घंटे का इंतजार ना करना पड़े। इंतजार का वक़्त तो धीरे - धीरे ख़त्म होता गया लेकिन जल्दी ही लोगों का इससे मोहभंग होना भी शुरू हो गया। इसमें ज्यादा वक़्त नहीं लगा।

ये थी ख़बरें आज तक, इंतज़ार कीजिए कल तक। तो लोग इंतजार करते थे। फिर हक़ीकत जैसी, ख़बर वैसी को भी लोगों ने गंभीरता से लिया। फिर चर्चा शुरू हुई बेख़बर ना रहने की और लोग-ख़बरों से जुड़े रहते थे। जुंबा पर सच, दिल में इंडिया-ये है एनडीटीवी इंडिया। ये कुछ ऐसे जुमले थे जो लोगों की जुबान पर चढ़ गए, और मुहावरे के तौर पर इसका इस्तेमाल होने लगा। पूरालेख मीडिया ख़बर.कॉम पर। यहाँ क्लिक करें।
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हरियाणा में सरकारी विज्ञापनों में करोड़ों का घपला


ताज़ा सूचना के मुताबिक़, आरटीआई के तहत हिला देनेवाली जानकारी मिली है। हरियाणा सरकार ने सरकारी विज्ञापन देने में इलेक्ट्रानिक मीडिया में केवल एक चैनल के लिए दरिया दिली दिखाई है। उस चैनल के लिए सरकारी पैसा पानी की तरह बहाया गया। जबकि वो चैनल कहीं दिखता नहीं है। दूसरी तरफ , बड़े चैनलों , जिसमें सरकारी दूरदर्शन के अलावा स्टार, आज तक और ज़ी न्यूज़ चैनलों के लिए दिल बेहद छोटा कर लिया गया। यहां तक रिज़नल चैनलों की टीआरपी और विश्वसनीयता को भी नज़र अंदाज़ किया गया। जानकारी मिली है कि ये मामला अब कोर्ट में जानेवाला है। आगे पढ़ें ...
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बरखा दत्त की फिल्म के बहाने जरा सोचिए


विजय दिवस के नाम पर पर देश के अधिकांश हिंदी चैनल भले ही लोगों को शर्तिया तौर पर भावुक करने में जुटे हों, हम तुम्हें आज रुला कर ही छोड़ेगे के अंदाज़ में भाषा और शब्दों का जबरन इस्तेमाल कर रहे हों, लेकिन इन सबसे अलग NDTV24×7 पर बरखा दत्त की ओर से पेश की गयी, लगभग चालीस मिनट की फिल्म REMEMBERANCE KARGIL TEN YEARS LATER ये साबित कर देती है कि कम शब्दों के जरिये भी हम संवेदना के स्तर पर मज़बूती से बात कर सकते हैं। ऐसे मौके पर हिंदी के तमाम न्यूज़ चैनल्स, जहां टेलीविजन को टेलीविजन रहने ही नहीं देना चाहते, वो उसे रेडियो में कन्वर्ट करने पर आमादा हो जाते हैं, वहीं बरखा दत्त इस फिल्म के जरिये टेलीविज़न की ताक़त को रीडिफाइन करती नज़र आती हैं। अभिव्यक्ति के स्तर पर ये पूरी फिल्म इस थ्योरी पर बनी है कि SOME MOMENTS ARE WORDLESS। कुछ ऐसे ही मौक़े होते हैं, जहां कुछ भी कहना नहीं होता, उसके लिए कुछ शब्द भी नहीं होते, गहराई तक जाने के लिए बस हमें उससे होकर गुज़र जाना भर होता है। टेलीविज़न की ज़रूरत और ताक़त यहीं समझ में आती है।

फिल्म की शुरुआत बहुत ही सादे और स्वाभाविक तरीके से होती है। बरखा दत्त करगिल के उन इलाक़ों में पहुंचती है, जहां से आज से ठीक दस साल पहले 26 साल की उम्र में होकर वो गुजरीं, करगिल युद्ध को कवर किया और देशभर में इतनी पॉपुलर जर्नलिस्ट बनी कि बॉलीवुड ने इसकी छवि का इस्तेमाल करते हुए लक्ष्य जैसी फिल्म बनायी। पूरा लेख मीडिया ख़बर.कॉम पर। READ MORE
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मीडिया का भी कबाड़ा, राजनीति और फिल्मों की तरह

प्रभाष जोशी भन्नाए हुए हैं। उनका दर्द यह है कि पत्रकारिता में सरोकार समाप्त हो रहे हैं। हर कोई बाजार की भेंट चढ़ गया है। क्या मालिक और क्या संपादक, सबके सब बाजारवाद के शिकार। कभी देश चलानेवाले नेताओं को मीडिया चलाता था। आज, मीडिया राजनेताओं से खबरों के बदले उनसे पैसे वसूलने लगा हैं। देश भर में दिग्गज पत्रकार कहे जाने वाले प्रभाष जोशी बहुत आहत हैं। अगर सब कुछ ऐसे ही चलता रहा, जैसा चल रहा है, तो सरोकारों को समझने वाले लोग मीडिया में ढूंढ़ने से भी नहीं मिलेंगे। हालात वैसे ही होंगे, जैसे राजनीति के हैं। वहां भी सरोकार खत्म हो रहे हैं। पद और अपने कद के लिए कोई भी, कुछ करने को तैयार है।

यह विकास की गति के अचानक ही बहुत तेज हो जाने का परिणाम है। अपना मानना है कि भारत में अगर संचार से साधनों का बेतहाशा विस्तार नहीं हुआ होता, तो आज जो हम यह, भारतीय मीडिया का विराट स्वरूप देख रहे हैं, यह सपनों के पार की बात होती। पूरा लेख मीडिया ख़बर.कॉम पर । यहाँ क्लिक करें।
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सेक्स, सेक्सुएलिटी और संस्कृति

योग गुरू बाबा रामदेव लोगों को ये सिखाते नहीं थकते कि जिंदगी में संयम बनाये रखना है तो योग की शरण में आओ। लेकिन धारा 377 को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट के ताजा फैसले पर अपनी वाणी पर संयम नहीं रख पाये। समलैंगिकता को लेकर एक टीवी चैनल पर बहस के दौरान बाबा ने जो कहा उसे यहां लिखा नहीं जा सकता मगर उनका मतलब ये था कि " वो जगह किसी और काम के लिये है" यौन संबंध के लिये नहीं। तमाम धर्माचार्य भी कोर्ट के इस फैसले से आग बबूला हैं। इनके मुताबिक समलैंगिकता धर्म विरोधी है, घृणित कर्म है, एक मानसिक विकृति है, एक ऐबरेशन यानि विचलन है जिसका विरोध न किया गया तो समाज का पतन निश्चित है। बाबा और धर्माचार्यों को समझने के लिये भारतीय सभ्यता, संस्कृति और इतिहास सब ताक पर रखनी पड़ेगी। क्योंकि इन महापुरूषों ने भारतीय संस्कृति का एक नया इतिहास रचने का हठ कर लिया है। इस नये इतिहास का पहला चैप्टर सेक्स और समलैंगिकता पर होगा। इसमें खजुराहो और कोणार्क के मंदिरों के इरॉटिक शिल्पकारी की बात नहीं बतायी जायेगी, उन चित्रों में दिखाये गये ओरल सेक्स का जिक्र बाबा की किताब में नहीं होगा। READ MORE...
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अखबार में अशुद्ध शब्दों की भरमार

अभिव्यक्ति के जो कई माध्यम हैं, उनमें भाषा का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। ध्वनियों ने लिपि को विकसित किया और लिपियों ने अक्षरों को विकसित किया। अक्षर ध्वनि और लिपि का सर्वोच्च रूप है। भाषा में भी ध्वनि,लिपि और अक्षर का ही महत्व है। इसी के आधार पर हम अपनी बात संप्रेषित करते हैं। मीडियाकर्मी अपनी बात यानी खबर को भाषा के माध्यम से संप्रेषित करते हैं। इसलिए उनके लिए उस भाषा और वर्तनी का काफी महत्व है, जिसके ज़रिये वे खबर को संप्रेषित करते हैं।

मैं जब सुबह उठ कर अखबार उठाता था, तो भाषा और वर्तनी की अशुद्धियों की भरमार पाता था। पटना से प्रकशित सभी दैनिकों की मैं बात कर रहा हूं- नवभारत टाइम्स, हिन्दुस्तान और आज सबकी। इनमें तो ‘आज’ में बहुत सारी अशुद्धियाँ रहती थीं। देख कर मन खिन्न हो जाता था। उन अशुद्धियों को दूर करने के लिए मैं अपने स्तम्भ-लेखन का प्रूफ़ खुद पढ़ता था। वे स्तम्भ थे-‘कस्बानामा’,नगर-चर्चा,‘कथन’। लेकिन बाद में सोचा कि मैं इनमें अपनी आंखे गड़ाने में ही सारा समय लगा दूंगा, तो फिर लिखूंगा कब? इसीलिए मैं जो कुछ भी लिखता था, समाचार के अलावा,उनका भी प्रूफ़ नहीं पढ़ता था। वैसे, बहुत सारे पत्रकार लिखते भी गलत हैं। शायद ही कोई ‘संन्यासी’ लिखता है, ज्यादातर लोग ‘सन्यासी’ ही लिखते हैं जो गलत है। उस समय मेरे साथ काम करने वाले कई सहयोगी कागजात की जगह कागजातों लिखते थे। कागज का बहुवचन कागजात है। फिर कागजातों की क्या जरूरत है। इसी तरह हमलोगों के ही अखबार में ‘गण्यमान्य’की जगह ‘गणमान्य’ छपा था। मैंने अपने सहकर्मी को बताया कि यह शब्द गलत है। लेकिन वे मानने के लिए तैयार नहीं थे। मैंने उन्हें समझाते हुए कहा-अलग-अलग देखें,तो ‘गण’ भी ठीक है और ‘मान्य’ भी। READ MORE...
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बलात्कारियों का बलात्कार क्यों ना हो . चलो बेशर्मी की हद पार की जाये

मैं सुबह उठती हूं तो अमूमन अच्छी बातें सुनना और देखना पसंद करती हूं । खुदा को याद करने के बाद मैं हमेशा टीवी खोल देती हूं क्योंकि ऑफिस पहुंचने के बाद टीवी जर्नलिस्ट होने के बावजूद टीवी देखना नसीब नहीं हो पाता। एक बड़ा चैनल दृश्य दिखा रहा था. एक औरत के जिसको पटना की सड़कों पर खुलेआम इधर उधर से छुआ जा रहा था औऱ कई सारे लड़के उसे हर तरफ से घेर कर बेइज्जत कर रहे थे और कपड़े खींच रहे थे . मैंने देखा कि दूर खड़े लोग हंस रहे थे औऱ नामर्दों की तरह तमाशा देख रहे थे . देख कर आखे फंटी रह गई औऱ कुछ सेकंड में ही आंसूं फूंटने लगे . हैरत हुई ये देखकर कि अहम मर चुका है , खून ठंडा हो चुका है औऱ बुजदिली छा गई है . ऐसा लगा जैसे किसी ने जोर से मेरे मुंह पर तमाचा मारकर मेरी औकात बताई हो क्योंकि मैं भी एक लड़की हूं . देख कर बहुत तकलीफ हुई और चिंता हुई कि जब तक हमारी औलादें होंगी औऱ बड़ी होंगी तब तक कहीं इससे भी बदतर हालात ना हो जायें . पूरा लेख मीडिया ख़बर.कॉम परपढ़ सकते हैं। Read More........
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