चुनाव और हम ब्‍लॉगर्स की जिम्‍मेदारी

चुनाव एक यज्ञ
(सामयिक चर्चा)

चुनाव एक यज्ञ है। इस यज्ञ में वो सब लोग जो वोट देने के अधिकारी हैं, यज्ञ करने वाले हैं और जो अभी वोट देने की उम्र तक नहीं पहुचे हैं वे यज्ञ में सम्मिलित ऐसे सदस्‍य हैं जो इससे ज्ञानार्जन और पुण्‍य दोनों अर्जित कर रहे हैं।

आज किसको वोट दिया जाए और किसको न दिया जाए, ये एक यक्ष प्रश्‍न बन गया है। हम कोई सीधा सादा फार्मूला नहीं लगा सकते कि जो ऐसा है उसको वोट दो और जो ऐसा नहीं है उसको वोट न दो। जो इस पार्टी का है उसको वोट दो और जो उस पार्टी का नहीं है उसको वोट न दो। आज का यह सबसे बड़ा बहस का मुद्दा है कि हम किस प्रत्‍याशी को जिताएं।

हम सभी ब्‍लॉगर्स की भी यह नैतिक जिम्‍मेदारी है कि इस यज्ञ में शरीक हों और इस बहस को निर्णायक मोड़ तक पहुंचाये कि आखिर हम किस तरह के लोगों को चुनकर लोकसभा में भेजें। क्‍योंकि एक गलत चुना हुआ नुमाइंदा सदन में कितना व्‍यवधान पैदा करता है, एक बेईमान मंत्री (
सुखराम जैसे लोगों को याद करो) देश को कितना बड़ा नुकसान पहुचाता है इस का लेखा जोखा करना आसान नही है। यहां तक कि सदन के लिए चुने हुए व्‍यक्ति द्वारा दिए हुए एक एक बयान, एक एक स्‍टेटमेंट के अपने मायने होते हैं और अगर वो गलत हैं, मूर्खतापूर्ण हैं, गैर जिम्‍मेदाराना हैं तो पूरे देश का और समाज का अतिशय अहित होता है।

पिछले सदन के कार्य काल में, हम सभी ने यह जरूर महसूस किया होगा कि सदन के समय की खूब बर्बादी हुई है, सदन बहुत ही कम समय के लिए चला है (पिछले सदनों की अपेक्षा बहुत कम समय तक चला है) और सदन में गंभीर से गंभीर विषयों पर चर्चा या विचार विमर्श बौद्धिक स्‍तर पर नहीं हुआ है। खाली सहमति और असहमति के नारे लगाए गए हैं। कार्यवाही में बाधा पहुचाई गई है। और कई बार तो ऐसा लगा है कि पूरे सदन को गुमराह करने की कोशिश की गई है।

सदन कोई बच्‍चों के खेल का मैदान नहीं है। कुछ विवेकशील लोगों ने यह सोचा कि यदि सदन की कार्यवाही का टी वी पर जीवंत प्रसारण किया जाएगा तो शायद सदन के सदस्‍यों को इस बात का डर रहेगा कि हमें पूरा देश देख रहा है लेकिन यहां तो हालत ये हो गई कि किसी बेशर्म का लोगों ने एक बार कपड़ा उतार दिया तो अब वो कपड़ा ही नहीं पहनना चाहता। हां, सदन में जो शर्मदार सदस्‍य हैं, वे विचारे या तो चुप बैठे रहते हैं या आंखें बंद किए रहते हैं।

हमें अपने गरिमामय राष्‍ट्र के सदन के लिए जिम्‍मेदार और विवेकशील सदस्‍य चाहिएं। हमारे सोमनाथ दादा ने ठीक ही कहा है कि तुम सब लोग इस बार हार जाओगे। उनका तात्‍पर्य सीधे सीधे सदस्‍यों की गैर जिम्‍मेदाराना हरकतों और सदन के गरिमा को कम करने के कारणों से ही रहा होगा। क्‍योंकि यह श्राप किसी विशेष पार्टी या किसी विशेष सदस्‍य के नहीं ये सिर्फ उन लोगों के लिए है जिन लोगों ने सदन की गरिमा को घटाया है।

अंत में, मैं यही कहूंगा कि हम सब अपने अपने ज्ञान के आधार पर तजुर्बे के आधार पर ऐसे छोटे छोटे सूत्रों का प्रतिपादन करें जिससे हमारे समाज के हर व्‍यक्ति को यह संदेश जाए कि वो किसको वोट दे और किसको वोट न दे।

From the desk of : MAVARK

2 टिप्‍पणियां:

  1. अच्‍छा लेख लिखा ... पर बच्‍चों के खेल के मैदान से सदन की तुलना गलत हैं ... हां , सदन के होहल्‍ला को देखकर बच्‍चे अब संसद संसद खेलने लगे हैं ... वोटर तो असमंजस की स्थिति में रहेगे ही ... किसे वोट दिया जाए ... दूध के धुले कौन हैं ?

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