माँ अब - सुशील कुमार ।
Posted on by Sushil Kumar in
माँ के चेहरे पर
दु;खों के जंगल रहते हैं
फिर भी उसके आँचल में
सुख की
घनी छाया
किलकती है।
माँ की पथरायी आँखों में अब
न सागर लहराते हैं न सपने ।
सभ्यता की धूसरित दीवार से टँगी
वह एक जीवित तस्वीर है केवल
जहाँ तुम्हारे शब्दों से अलग
इतिहास के पन्ने फड़फडा़ते हैं
तुम्हें आगाह करते कि
माँ पृथ्वी है घूमती हुई
अँधेरे को उजास में बदलती हुई
जिसकी गुफ़ाओं में एक सूर्य उदीयमान है
रोम-रोम में जीवन की जोत जगाता हुआ,
तुम्हारे शब्दों और भाषाओं की गहरी
काली रात हरता हुआ ।
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bahut sundar aur bhavpoorna abhivyakti.ma ka sampooran roop darsha diya .
जवाब देंहटाएंमाँ..........शब्द में ही जुड़ी है प्यार, उमंग, सुख और रौशनी की ललक.
जवाब देंहटाएंमाँ की बारे में जो भी लिखा हो, सुंदर होगा, शशक्त रचना है यह
वाह बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंमा को केन्द्र मे रखकर हिन्दी के तमाम कवियो ने अनेक कविताये लिखी है…यह उनमे से श्रेष्ठ कविताओ मे शामिल होने की योग्यता रखती है।
जवाब देंहटाएंबधाई
और हर पुत्र इस अभिव्यक्ति को
जवाब देंहटाएंमन ही मन पढ़ता हुआ
स्वयं को मां के सपनों के
अनुरूप भीतर तक गढ़ता हुआ।
मां की आंखों में जमाने भर का दुलार
सबको दुलारता बढ़ता हुआ
संस्कृति और सेवा भाव मां के प्रति
मन में सबके भरता
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ! बधाई !
जवाब देंहटाएंMaa par ek aur sashakt kavita.Badhaaee.
जवाब देंहटाएंMaa par ek aur sashakt kavita.Bdhaaee
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