सुभाष नीरव
इक इक परत उधेड़ा खुद को
तब भी नहीं मैं समझा खुद को
खून से लथपथ हुआ तो सोचा
क्यों शीशे में रक्खा खुद को
कितना बड़ा फरेबी निकला
जो कहता था सच्चा खुद को
बड़े बड़ों की भीड़ में तन्हा
देख रहा था बच्चा खुद को
खूब सभी को लगता है वो
जिसने खूब तराशा खुद को।
तब भी नहीं मैं समझा खुद को
खून से लथपथ हुआ तो सोचा
क्यों शीशे में रक्खा खुद को
कितना बड़ा फरेबी निकला
जो कहता था सच्चा खुद को
बड़े बड़ों की भीड़ में तन्हा
देख रहा था बच्चा खुद को
खूब सभी को लगता है वो
जिसने खूब तराशा खुद को।
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बहुत उम्दा रचना, बधाई.
जवाब देंहटाएंखुद की
जवाब देंहटाएंखुदा की
खुदाई
गजल में
खुद ही
बताई
बधाई
बड़े भाई
बहुत बढिया गज़ल है।बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब लिखा है।
जवाब देंहटाएंवाह भाई सुभाष नीरव जी, खूब लिखा आपने!इतनी अच्छी गजल जीवन की सच्चाई से रु ब रु कराती । सच में, जीवन जीते तो हम जरूर हैं पर फिर भी उसे कभी समझ नहीं पाते।- सुशील कुमार।
जवाब देंहटाएंसुभाष जी बहुत ही सुन्दर गजल ।
जवाब देंहटाएं'बड़े बड़ों की भीड़ में तन्हा , देख रहा था बच्चा खुद को'नीरव जी की गज़ल का यह शेर जीवन की संवेदना के लुप्त होने की कहानी कहता है ।बड़े लोग अपनी सहजता खो देते हैं ।यही कारण है की बच्चा वहाँ स्वयं को निपट अकेला महसूस करने लगता है
जवाब देंहटाएंGazal kaa har sher pyaaraa hai,dil ko chhone
जवाब देंहटाएंwaalaa.
Har sher dil ko chhoone waalaa hai.Subhaash jee
जवाब देंहटाएंko badhaaee.
गज़ल में वज़न है,दिल को छूने की ताकत है बधाइ
जवाब देंहटाएंjis din khud ko samajh jayenge wakai us din khoob ho jayenge.bahut sahi kaha aapne.
जवाब देंहटाएंBhai Subhash,
जवाब देंहटाएंKhubsurat Ghazal. Badhai.
Chandel
bahut hi achhi rachna.......
जवाब देंहटाएंसुभाष जी,कोतो सुन्दर रचना तुमि लिखोबे.....आमी तोमाके भालो बाशो.....!!एक तू सत्तो बोलबी आमी...!!
जवाब देंहटाएंजीवन की सच्चाई से रूबरू करता एक बढिया गज़ल ....
जवाब देंहटाएंहर शेर अपने आप में कुछ ना कुछ कहता है....
जवाब देंहटाएंउम्दा भाव....बढिया गज़ल...