एक ग़ज़ल

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  • सुभाष नीरव
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    इक इक परत उधेड़ा खुद को
    तब भी नहीं मैं समझा खुद को

    खून से लथपथ हुआ तो सोचा
    क्यों शीशे में रक्खा खुद को

    कितना बड़ा फरेबी निकला
    जो कहता था सच्चा खुद को

    बड़े बड़ों की भीड़ में तन्हा
    देख रहा था बच्चा खुद को

    खूब सभी को लगता है वो
    जिसने खूब तराशा खुद को।
    00

    16 टिप्‍पणियां:

    1. खुद की
      खुदा की
      खुदाई
      गजल में
      खुद ही
      बताई
      बधाई
      बड़े भाई

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    2. वाह भाई सुभाष नीरव जी, खूब लिखा आपने!इतनी अच्छी गजल जीवन की सच्चाई से रु ब रु कराती । सच में, जीवन जीते तो हम जरूर हैं पर फिर भी उसे कभी समझ नहीं पाते।- सुशील कुमार।

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    3. सुभाष जी बहुत ही सुन्दर गजल ।

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    4. 'बड़े बड़ों की भीड़ में तन्हा , देख रहा था बच्चा खुद को'नीरव जी की गज़ल का यह शेर जीवन की संवेदना के लुप्त होने की कहानी कहता है ।बड़े लोग अपनी सहजता खो देते हैं ।यही कारण है की बच्चा वहाँ स्वयं को निपट अकेला महसूस करने लगता है

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    5. Har sher dil ko chhoone waalaa hai.Subhaash jee
      ko badhaaee.

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    6. गज़ल में वज़न है,दिल को छूने की ताकत है बधाइ

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    7. jis din khud ko samajh jayenge wakai us din khoob ho jayenge.bahut sahi kaha aapne.

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    8. सुभाष जी,कोतो सुन्दर रचना तुमि लिखोबे.....आमी तोमाके भालो बाशो.....!!एक तू सत्तो बोलबी आमी...!!

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    9. जीवन की सच्चाई से रूबरू करता एक बढिया गज़ल ....

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    10. हर शेर अपने आप में कुछ ना कुछ कहता है....

      उम्दा भाव....बढिया गज़ल...

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