यह किया जाना है तय
कि मिलें ब्लॉगर्स
दिल्ली में।
करें शुरूआत
मिलने की
जुलने की।
न कि लड़ने की
भिड़ने की
फिर गिरने की।
क्या दिल्ली में
नेहरू प्लेस के
आस्था कुंज में
मिलना रहेगा
ठीक।
रहे ठीक तो
लगे कीबोर्ड
यह भी बतलायें
कि कब मिलें
कितनी देर मिलें
और क्यूं मिलें।
राय और आदेश
आमंत्रित हैं।
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ये सब तो ठीक है चाचा जी... पर ना... कोटा मे मेल मिलाप हो तो मेरे आने की भी संभावना रहेगी.. दिल्ली तो मै आने से रही :।
जवाब देंहटाएंआइडिया बुरा नही है ..जगह भी अच्छी है .समय रखे वही ,जब घर से आसानी से निकला जा सके और रविवार हो तो सबसे मिला जा सके
जवाब देंहटाएंआइडिया बुरा नही है ..जगह भी अच्छी है .समय रखे वही ,जब घर से आसानी से निकला जा सके और रविवार हो तो सबसे मिला जा सके
जवाब देंहटाएंअपने को तो जब भी बुलाएँ...बंदा सपत्नीक सर के बल दौड़ा चला आएगा बशर्ते वहाँ पर किसी श्रीराम सेना द्वारा दौड़ा-दौड़ा के ना मारा जाए।
जवाब देंहटाएंडर डर के तो मत ......
जवाब देंहटाएंहम्ममम ....आईडिया अच्छा है...कार्टून बनाना पड़ेगा इस पर भी ..
जवाब देंहटाएंहम तो पहले से ही कह रहे थे। मकसद तो वही तय हो जाऐगे जब हम सब मिलेगे। दिमाग में कई चीजें घुम रही है। खैर कार्यक्रम तो बनाईए छुट्टी का दिन रख लीजिए। वैसे कोशिश करने पर ओर दिन भी आ सकते है हम तो। पर सूचना पहले दी जाए जी।
जवाब देंहटाएंआप कहें और हम ना आयें, एसे तो हालात नहीं।
जवाब देंहटाएंआप लोगों को यदि यह
जवाब देंहटाएंआयोजना प्रस्ताव वास्तव
में ही पसंद है तो फिर
टिप्पणी 7 और उपर
दाहिनी ओर पसंद सिर्फ 4
तीन भूल गए या उन्हें
नहीं मालूम कि उसे
चटकाने से असली पसंद
का स्वाद मिलता है।
मिलने जुलने से ही प्यार मोहब्बत बढती है।
जवाब देंहटाएंमिलना बुरा तो नहीं, लेकिन परदेसी हूं, क्योंकि पंजाब का रहने वाला इंदौर में फंस गया.. फिर भी अगर कोई ऐसी मीट होती है तो समय हुआ जरूर आउंगा...
जवाब देंहटाएंaache soch hai good work
जवाब देंहटाएंshayari,jokes,recipes,sms,lyrics and much more so visit
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भाई 31 जनवरी(शनिवार) अथवा 1 फरवरी (रविवार) का दिन रख लो। समय गुनगुनी धूप का हो यानी सुबह साढ़े द्स का तो बेहतर होगा। फिर भी अन्य मित्रों से भी समय और दिन की राय और ले लो।
जवाब देंहटाएंसुभाष भाई
जवाब देंहटाएंसब देख रहे हैं
पढ़ रहे हैं
गुन रहे हैं
और कब
हो
नुक्कड़ संगोष्ठी
बुन रहे हैं पर
क्यों हो
विचार करना है
इस पर भी।
areyy mujhe naa bhool jana,
जवाब देंहटाएंvarnaa kaun gayegaa milan ka gaanaa,
pataa theek se batanaa,
galat pata dekar hame shehar naa bhumanaa.
aur rakhna kuch paani dana.
बात जब हो ही रही है मिलने की तो सारी बातें साफ-साफ हो जाए। किसी एक आदमी पर खाने-पीने को लेकर लोड न पड़े इसलिए बेहतर रहेगा कि जो भी परिवारवाले हैं या फिर जिनके यहां खाना बनाने का इंतजाम है वो अपने से एक आदमी का ज्यादा भोजन लेकर आएं। मेरे जैसा छगड़ा एक किलो मूंगफली या हल्दीराम से कुछ मीठा लेकर आ जाएंगे, एक ही साथ कई ब्लॉगरों के घर का खाना भी चखना हो जाएगा, तेल-मसाले वाले खाना से भी बचा जा सकेगा और सारा का सारा लोड अविनाशजी पर भी नहीं पड़ेगा। ब्लॉगर लो नकदी पैसा जितना बचाएं, उतना ही अच्छा। हां, अविनाशजी चाहें तो अच्छा खाना पर पचास-पच्चीस का इनाम रख दें, ताकि आगे से भी बनाकर लाने का हौसला बना रहे।
जवाब देंहटाएंकोई फायदा नही अंकल अपने अपने का खेल तो यहाँ भी सब खेल रहे है .वहां लडाई हो गई तो
जवाब देंहटाएंबच्चा काफी समझदार है
जवाब देंहटाएंनटखट नाम तो है इसका
पर काम दिमाग खटखटाने के कर रहा है
पर विदेशी या विदेश में रहने वाले इस
प्यारे से खटखट बच्चे को ढेर सारा प्यार।
सही खटखटाया है इसने दिमाग का दरवाजा
ऐसी नौबत ही न आने दें कि हो झगड़ा
करें ऐसा कि झगड़े का न हो तनिक रगड़ा
नुक्कड़ संगोष्ठी में आने का हो पक्का इरादा
वे पूरा होमवर्क अभी से करना कर दें शुरू
कह सकते हैं गुरू हो जायें शुरू
चाहे हों वे मौजूद इन चुरू
पर करनी है जिन मुद्दों पर चर्चा
उस पर अभी से दिमाग का कर लें खर्चा
अपने विषय सुझायें उस पर राय भी बतलायें
सब अपना अपना आइडिया इसी प्लेटफार्म पर लायें
उस पर अपने विचार बतलायें, सबके विचार सुनें
मनन करें, मंथन करें और निकालें निष्कर्ष
तभी संगोष्ठी का सोपान बनेगा नया उत्कर्ष
सिर्फ मिलने के लिए मिलना
अपने घरों से इतनी दूर निकलना
मेरा घर पास है तो इसका मतलब
यह तो नहीं है कि मुझे अन्यों की
चिंता नहीं है, जबकि आज खाली कोई नहीं है
वैसे भी समय खराब करने के लिए
नेटजगत से अच्छा कोई और प्लेटफार्म नहीं है
पर सभी नहीं कर रहे हैं समय खराब
और
न ही करना है हम सबने बेकार
चाहे कार में न आयें पर बेबस भी न हों
रचें, लिखें, मथे, ऐसा जो जचे जमाने को
बदल दे कहानी को, पूरी रवानी को
ऐसा माहौल बनाना है, अच्छे विचारों को
जगमगाना है, ब्लॉग का सदुपयोग करके
सबको करके दिखलाना है
नुक्कड़ चाहे न बने मिसाल, पर न खराब हो इसमें लगे साल
साल दर साल नहीं तो यूं ही बढ़ते रहेंगे
पर सच्चाई में पीछे हटते रहेंगे
इसलिए अच्छी तरह सोचें
अपनी योजनायें नुक्कड़ पर लगायें
जिसमें अपना संपूर्ण ज्ञान आजमायें
सबकी मानें और अपनी मनवायें
जो भी हों अच्छी सच्ची बातें
नहीं तो कल यही बच्चा हमें डांट रहा होगा
कहेगा अंकल, देखना मैं करता हूं क्या कल
पर उसे न होने दें विकल
और पर्यावरण अनुकूल चलायें शब्दों की साईकिल।
मैं इस साईकिल से उतरता हूं
अब दूसरा बैठे और अपनी बात कहे।
hum to jaipur mein hain
जवाब देंहटाएंshyad nahi aa payengee
accha vichar hai,par soochna 5,6 din pheley mil jaye to accha hai,ek doosrey sai sampark ho jayga aur vicharo ka aadan pradaan ho jayega.
जवाब देंहटाएंदिल्ली की बात तो दिल वाले ही जाने। हमे क्या? हम तो ठहरे परदेसी।:)
जवाब देंहटाएंमिलने का हाल बयान किया जाये!
जवाब देंहटाएंअच्छी शुरूआत है।शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंहम तो इतनी दूर से आ नही सकते है ।
जवाब देंहटाएंआप लोग दिल्ली मे मिलिए और हम लोग उस मीट की खबर आप लोगों के ब्लॉग पर पढेंगे ।
kahne or karne me fark hota h dosto..........m parectical hu......31 january ....sunday......12 baje.......my idea
जवाब देंहटाएंप्रिय अविनाश जी
जवाब देंहटाएंदेख रहा हूं आपका आमंत्रण सभी को लुभा रहा है लेकिन जैसा कि हर नई शुरूआत के पहले तरह तरह की आशंकाएं घेरती हैं वैसे ही इस ब्लॉगर्स की सभा के लिए भी लोगों ने आशंकाएं व्यक्त की हैं। लेकिन ब्लॉगर्स पढ़े लिखे सभ्य लोग हैं, इकट्ठा होंगे तो लड़ेंगे क्यों, साहित्य से जुड़े हुए लोग हैं, सृजनशीलता में विश्वास रखते हैं यदि ये साथ मिलकर बैठेंगे किसी बात के लिए सहमत होंगे तो नया ही कुछ बन पड़ेगा। व्यक्तिगत तौर पर सबसे ज्यादा यह महसूस होता है कि ज्यादातर ब्लॉगर्स अभी भी अपने इस हथियार को यानी कि अपने ब्लॉग पर आकर कुछ भी कह देने की क्षमता को इतनी गहराई से नहीं समझते। यह एक अमोघ अस्त्र है जो ब्लॉगस्पाट, वर्डप्रेस इत्यादि ने हमें दिया है। जिसका उन्नयन चिट्ठाजगत, ब्लॉगवाणी इत्यादि एग्रीग्रेटरों के बलबूते परवान चढ़ रहा है। सबसे पहले तो हमें इन सबका हार्दिक आभार प्रकट करना है उसके बाद आगे का कार्यक्रम स्टैप्स में तय कर लेना है।
याद करें आज से 40 साल पहले छपने छपाने की बात तो कौन करे, किसी अच्छी कवि गोष्ठी में घुसकर सुनने के लिए रिरियाना पड़ता था। न तो किसी गोष्ठी का टेलीकास्ट होता था और न उसकी कोई लंबी चौड़ी समीक्षा आती थी। जो उस महफिल में घुस सका, केवल वही उस स्वाद को चख पाता था और आज हम सबकी महफिल चौबीसों घंटे, सातों दिन, बारह महीने सजी रहती है, चाहे तो सुनें चाहें तो सुनायें - जब चाहें अपनी बात कहें, जब चाहें तो दूसरों की बात सुनें, दूसरों के विचारों पर अपने विचार प्रकट करें और हर प्रकार से लाभान्वित हों। मेरी तरफ से चर्चा का पहला टॉपिक रखा जा सकता है
ब्लॉगर्स का सामाजिक दायित्व
या
पंचों की राय सरमाथे पर अर्थात जो बहुमत की राय हो। दिन और वार दिन रविवार ही बेहतर रहेगा और समय होली के बाद का पहला या दूसरा रविवार। इन सब बातों हम ब्लॉगर्स ब्लॉग पर पहले तय कर सकते हैं।
मिलने का समय दो सत्रों में होना चाहिए जो कम से कम कुल मिलाकर चार घंटे का हो, जिसमें पहले दो घंटे के बाद अल्पाहार के लिए ब्रेक रखा जा सकता है। मैं समझता हूं खाने पीने के लिए बहुत बड़ा आयोजन करने और ज्यादा दिमाग लगाने की जरूरत नहीं है। क्षुधा और प्यास शांत करने तक का प्रोग्राम बनाना ही उचित होगा। सब लोग एक जैसा खाएं, एक जैसा पिएं, जो कि सादा हो और स्वास्थ्यकर। कोई किसी पर बोझ न बने, इसका इंतजाम आराम से आम सहमति से किया जा सकता है। उपरोक्त बातों को ध्यान में रखते हुए ब्लॉगर्स अपने साथ समान रुचि के लोगों को ला सकते हैं अर्थात जिनका खुद का ब्लॉग नहीं है तो क्या हुआ वे भी हमारे साथी ही हैं।