रिश्तों की बरसी - 2

Posted on
  • by
  • तरूण जोशी " नारद"
  • in
  • Labels:
  • पहला भाग पढें (रिश्तों की बरसी - 1) 

    दोस्तों ये भी अजीब बात हैं ना, कि आप इस लेख को/ कहानी को पढकर जो सोच रहे हैं जिसके बारे मंे सोच रहा है वो अगर इस कहानी को पढ रहा होगा तो वो या तो किसी और के बारे मंे सोच रहा होगा और अगर वो आपके बारे मंे भी सोच रहा होगा तो उसके जज्बात आपकी बातोें से बिल्कुल इतर होंगे।

    दोस्तों इसको आप पढ लीजिए, कहानी समझकर, लेख समझकर, जज्बात समझकर। इसके बाद आप थोडा उल्टी प्रक्रिया में सोचना, ये नही कि आप किसके बारे में ऐसा सोच रहे हैं। आप उसके बारे मंे ख्याल करने की कोशिश कीजिए जो ये कहानी पढकर आपके बारे मंे ऐसे ख्याल रखे। उस इंसान की जिंदगी मंे अपने द्वारा किये गये कामों के लिए दिल से मन ही मन मंे माफी मांगने का मौका मत चूकना। 

    लेकिन इसमें भी एक बात का ध्यान रखना जरूरी है कि जो भी आप सोचो वो तार्किक हों सामान्यतः तो आप जिसके बारे मंे ऐसा सोचते हो कि उसने कुछ गलत किया वो भी ऐसा ही सोचता होगा कि आपने उसके साथ गलत किया है। ये ठीक वैसा ही है कि एक मैदान मंें अंग्रेजी में  6 लिखा और  उसके दोनो ओर दो लोग खडे हैं  तो एक को 6 दिखेगा और एक को 9 दिखेगा। दोनो को लगता  है कि वे सही हैं। लोग कहते हैं दोनो सही है। पर  दोनो एक बात मंे सही कैसे हो सकते है। दोस्तों गलत तो वो है ना जो उपर की तरफ उल्टी तरफ खडा है। जो जहां से देख रहा है, जैसा उसको दिख रहा है वो उसके नजरिये से सही भले ही हो वास्तविकता मंे सही नही हो सकता है।


    खैर अब इन दार्शनिक बातों को छोडते है और मुद्दे पर आते हैं। 

    हां तो आपको भी पहला पेज पढते पढते किसी ऐसे नाम के रिश्तें और दिखावे के अपनेपन की याद आने लगी होगी। जिनकी आपको भी बरसी मनानी होगी। तो आज हम उस रिश्ते की बरसी मनाने से पहले, जरा सा उसके बारे मंे सोचते हैं।

    हम सोचें कि ऐसे रिश्तों की बरसी मनाकर उनका हमेशा हमेशा के लिए तर्पण श्राद्धकर्म करना और उन भद्दे मोटे यादों के पुलिंदों को हमेशा हमेशा के लिए बहा देना चाहिए और खुद को मुक्त कर देना चाहिए।

    हालांकि कुछ हालातों मे देखा जा सकता है अगर सुधार की गुंजाइश है और पहले का विनाश हल्का सा है तो चाहो तो एक मौका और देकर देख लो। वर्ना बरसी के साथ ही तर्पण भी करलो।

    दोस्त बुरा मत सोचो उन लम्हों के बारे में, उन लोगों के बारे मंे। कर्म का फल होता है जो हम सब भोगते है। हमारे कर्माे का ही फल होगा जो हमने उसदिन भोगा था। 

    दुख भी हुआ था, तकलीफ भी हुई थी और अब तो धीरे धीरे बस केवल मुस्कुराना ही तो आता है उन लम्हों को याद करके।

    जैसे हमने उस दिन वो कर्माें का फल भोगा था। हमारा फल किसी और का कर्म था जो उन्होंने उस दिन कर दिया। तो अब उन कर्माें के फल कोे वो भोग रहे होंगे या भोगेंगे।

    चुंकि वो अब दूर जा चुके हैं हमसे तभी तो उन रिश्तों की हम बरसी मना रहे हैं। जैसे बरसी और श्राद्ध हम साल मंे दो बार मनाते है। वैसे ही कभी कभार जब लगे, जरूरत  के वक्त उनके लिए प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से खडे रहें।

    अरे जैसे किसी अपने के मर जाने के बाद हमंे पता नही होता वो कंहा और क्या कर रहे हैं, और वास्तविकता में हमारे हर लम्हे से वो लोग हमेशा हमेशा के लिए दूर हो जाते हैं, वैसे ही बीते एक बरस मंे उन्हें हमारे बारे में क्या ही पता है।

    कितना बदल गई हमारी जिंदगी, उन्हे क्या पता। 

    इक किसान मर गया बुआई के बाद, उसे क्या पता कि उसके खेत की फसल कैसी उग रही है।  उसने खो दिया मौका देखने का अपने खेत के पेड़ो को बढते देखने का। उसको खबर नही कि कब खाद दी गई, कब सहारा दिया गया। कब और कैसे पहली कोंपल उगी उस पौधे की, कैसे उसकी डालियां खिली। कैसे उस पौधे ने पहली हवा मे अपने आपको छटकाया और मस्त बेफिक्री के साथ खिलखिलाके नाच गाने का मजा लिया।

    खैर मरने के बाद ऐसा सब होना तो लाजमी है, मगर जीते जी, ऐसे हालात बन जाएं कि हमें हमारे अपनों की जिंदगी का एक भी लम्हा पता ना हो तो वो भी एक बडी त्रासदी क्या होगी, और इससे बडा अभागापन क्या होगा कि आप अपनों के हाल ना जान पाओ, एक नन्हे से बच्चे को बढते ना देख पाओ, अपने बाग केे फलों को ना छू पाओ, फूलों की खुश्बु ना सूंघ पाओ और पत्तांे की सरसराहट को खिलखिलाहट को ना सुन पाओ।

    खैर अब इन सब बातों में क्या रखा है। अब हम आगे बढते हैं ऐसे ही कुछ अभागे रिश्तों की बरसी मनाने की ओर, इनकी छोटी बडी घटनाओं को समझने मंे।


    0 comments:

    एक टिप्पणी भेजें

    आपके आने के लिए धन्यवाद
    लिखें सदा बेबाकी से है फरियाद

     
    Copyright (c) 2009-2012. नुक्कड़ All Rights Reserved | Managed by: Shah Nawaz