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रिश्तों की बरसी - 2

पहला भाग पढें (रिश्तों की बरसी - 1) 

दोस्तों ये भी अजीब बात हैं ना, कि आप इस लेख को/ कहानी को पढकर जो सोच रहे हैं जिसके बारे मंे सोच रहा है वो अगर इस कहानी को पढ रहा होगा तो वो या तो किसी और के बारे मंे सोच रहा होगा और अगर वो आपके बारे मंे भी सोच रहा होगा तो उसके जज्बात आपकी बातोें से बिल्कुल इतर होंगे।

दोस्तों इसको आप पढ लीजिए, कहानी समझकर, लेख समझकर, जज्बात समझकर। इसके बाद आप थोडा उल्टी प्रक्रिया में सोचना, ये नही कि आप किसके बारे में ऐसा सोच रहे हैं। आप उसके बारे मंे ख्याल करने की कोशिश कीजिए जो ये कहानी पढकर आपके बारे मंे ऐसे ख्याल रखे। उस इंसान की जिंदगी मंे अपने द्वारा किये गये कामों के लिए दिल से मन ही मन मंे माफी मांगने का मौका मत चूकना। 

लेकिन इसमें भी एक बात का ध्यान रखना जरूरी है कि जो भी आप सोचो वो तार्किक हों सामान्यतः तो आप जिसके बारे मंे ऐसा सोचते हो कि उसने कुछ गलत किया वो भी ऐसा ही सोचता होगा कि आपने उसके साथ गलत किया है। ये ठीक वैसा ही है कि एक मैदान मंें अंग्रेजी में  6 लिखा और  उसके दोनो ओर दो लोग खडे हैं  तो एक को 6 दिखेगा और एक को 9 दिखेगा। दोनो को लगता  है कि वे सही हैं। लोग कहते हैं दोनो सही है। पर  दोनो एक बात मंे सही कैसे हो सकते है। दोस्तों गलत तो वो है ना जो उपर की तरफ उल्टी तरफ खडा है। जो जहां से देख रहा है, जैसा उसको दिख रहा है वो उसके नजरिये से सही भले ही हो वास्तविकता मंे सही नही हो सकता है।


खैर अब इन दार्शनिक बातों को छोडते है और मुद्दे पर आते हैं। 

हां तो आपको भी पहला पेज पढते पढते किसी ऐसे नाम के रिश्तें और दिखावे के अपनेपन की याद आने लगी होगी। जिनकी आपको भी बरसी मनानी होगी। तो आज हम उस रिश्ते की बरसी मनाने से पहले, जरा सा उसके बारे मंे सोचते हैं।

हम सोचें कि ऐसे रिश्तों की बरसी मनाकर उनका हमेशा हमेशा के लिए तर्पण श्राद्धकर्म करना और उन भद्दे मोटे यादों के पुलिंदों को हमेशा हमेशा के लिए बहा देना चाहिए और खुद को मुक्त कर देना चाहिए।

हालांकि कुछ हालातों मे देखा जा सकता है अगर सुधार की गुंजाइश है और पहले का विनाश हल्का सा है तो चाहो तो एक मौका और देकर देख लो। वर्ना बरसी के साथ ही तर्पण भी करलो।

दोस्त बुरा मत सोचो उन लम्हों के बारे में, उन लोगों के बारे मंे। कर्म का फल होता है जो हम सब भोगते है। हमारे कर्माे का ही फल होगा जो हमने उसदिन भोगा था। 

दुख भी हुआ था, तकलीफ भी हुई थी और अब तो धीरे धीरे बस केवल मुस्कुराना ही तो आता है उन लम्हों को याद करके।

जैसे हमने उस दिन वो कर्माें का फल भोगा था। हमारा फल किसी और का कर्म था जो उन्होंने उस दिन कर दिया। तो अब उन कर्माें के फल कोे वो भोग रहे होंगे या भोगेंगे।

चुंकि वो अब दूर जा चुके हैं हमसे तभी तो उन रिश्तों की हम बरसी मना रहे हैं। जैसे बरसी और श्राद्ध हम साल मंे दो बार मनाते है। वैसे ही कभी कभार जब लगे, जरूरत  के वक्त उनके लिए प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से खडे रहें।

अरे जैसे किसी अपने के मर जाने के बाद हमंे पता नही होता वो कंहा और क्या कर रहे हैं, और वास्तविकता में हमारे हर लम्हे से वो लोग हमेशा हमेशा के लिए दूर हो जाते हैं, वैसे ही बीते एक बरस मंे उन्हें हमारे बारे में क्या ही पता है।

कितना बदल गई हमारी जिंदगी, उन्हे क्या पता। 

इक किसान मर गया बुआई के बाद, उसे क्या पता कि उसके खेत की फसल कैसी उग रही है।  उसने खो दिया मौका देखने का अपने खेत के पेड़ो को बढते देखने का। उसको खबर नही कि कब खाद दी गई, कब सहारा दिया गया। कब और कैसे पहली कोंपल उगी उस पौधे की, कैसे उसकी डालियां खिली। कैसे उस पौधे ने पहली हवा मे अपने आपको छटकाया और मस्त बेफिक्री के साथ खिलखिलाके नाच गाने का मजा लिया।

खैर मरने के बाद ऐसा सब होना तो लाजमी है, मगर जीते जी, ऐसे हालात बन जाएं कि हमें हमारे अपनों की जिंदगी का एक भी लम्हा पता ना हो तो वो भी एक बडी त्रासदी क्या होगी, और इससे बडा अभागापन क्या होगा कि आप अपनों के हाल ना जान पाओ, एक नन्हे से बच्चे को बढते ना देख पाओ, अपने बाग केे फलों को ना छू पाओ, फूलों की खुश्बु ना सूंघ पाओ और पत्तांे की सरसराहट को खिलखिलाहट को ना सुन पाओ।

खैर अब इन सब बातों में क्या रखा है। अब हम आगे बढते हैं ऐसे ही कुछ अभागे रिश्तों की बरसी मनाने की ओर, इनकी छोटी बडी घटनाओं को समझने मंे।


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रिश्तों की बरसी - 1

 बरसी

बरसी- इस नाम से क्या ख्याल जेहन में उपजता है, हां मैं भी उसी की बात कर रहा हूं, हां वही बरसी जो किसी अपने के हमेशा हमेशा के लिए रूखसत हो जाने, दूर हो जाने या मर जाने की सालगिरह के तौर पर मनाया जाता है। 

वैसे तो बरसी अपनों की मनाई जाती हैं, रिश्तेदारों की मनाई जाती है। उनके साथ के लम्हों को याद किया जाता है, उनकी शांति की प्रार्थना की जाती है, उनकी मुक्ति की दुआ की जाती है।

लेकिन हर बार बरसी अपनों की नही कई बार अपनेपन की भी मनाई जाती है, रिश्तेदारों की ही नहीं रिश्तों की भी मनाई जाती है।

तो आज हम भी ऐसे ही एक बरसी मनाने जा रहे हैं. रिश्तों की बरसी।

सुनने मंे भले ही अजीब सा लगे, लेकिन हां ये सच है, आप भी याद करिये, जीवन की किताब के किसी एक कोने मंे आपने भी दफन किये होंगे कुछ पन्ने कहीं किसी छोर पर।

अरे वैसे ही जैसे बचपन में किसी विषय की कॉपी मंे कुछ गलतियां हो जाने पर उन्हें छिपाने, और दूसरे छोर के पृष्ठों को फटकर गिरने से बचाने के लिए हम स्टेपल कर लेते थे। ठीक उसी तरह से कुछ पेज आपको भी मिल जाएंगें अपनी जिंदगी की किताब में। हो सकता है आपकी किताब मंे ऐसे स्टेपलर लगे पेजों का पुलिंदा एक हो या हो सकता है वो एक से अधिक हो।

हो सकता है कि स्टेपलर की पिन चमक रही हो और बयां कर रही है अपना दर्द और जता रही है कि जख्म अभी हरा है, या फिर यूं भी हो सकता है कि वो पुलिदों पर लगी पिन जंग खा चुकी हो और उन अपनो को भी भुला चुकी हो।

लेकिन जैसे हमारी संस्कृति में रिवाज है बरसी मनाने का, लम्हों को याद करने का और शांति या मुक्ति की प्रार्थना करने का तो हम अब एक अनूठी बरसी मनाते है। उन लम्हों और वो दर्द देने वाले की मुर्खता और उनकी बचकानी हरकतों को याद करते हैं और मुस्कुराते है उनकी नादानी पर। हम प्रार्थना नही भगवान का खुदा का, रब का शुक्रिया करते हैं कि हमें मुक्त कर दिया ऐसे दर्दनाक अपनों से और कसैले विषैले रिश्तों से। इस बार ये बरसी अपनो की नही अपनेपन की है, और रिश्तेदारों की नही बल्कि इस बार ये रिश्तों की बरसी है।


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जिंदगी एक धागे का बंडल है।

Started Writing after years 

जिंदगी एक धागे का बंडल है।

इस बंडल मंे लिपटे हैं लम्हें कई।

परत दर परत खुलते जाते हैं। 

इक छोर से दूजे छोर तक फिसलते हुए।

फिर एक चक्क्र पूरा होता है,

जैसे हुआ एक अध्याय पूरा।

अगले ही लम्हें मंे परत बदल जाती हैं, 

जैसे कलेंडर में हो साल नया।

बस अनवरत चलता रहता है,

डोर की माला बढती जाती है।

और इक पल में जिंदगी की राह

ये गुजर जाती है।

मैं सोच रहा हुं  कि ये क्या हुआ,

समझ ना सका ये तू था मेरे खुदा।

हर पल तुने ये क्या करिश्मा दिखाया

इस अदने पुतले का भी इक हस्ती बनाया ।।

सोच में में अपनी मगरूर था,

ना जाने किस बात का गुरूर था ।

मगर तू तो मुझमें बसा रहा,

पर मुझे ना कोई इल्म ना सुबुर रहा।।

रब मेरे, मेरे जीवन के खेवन

तेरा बचपन, तेरा यौवन

तेरा हर पल, तेरी खुशियां

हंसते हंसते लेंगे ये गम।

तुमने जो कुछ दिया स्वीकारा

देखो चरखी अब भी घूम रही हैं, 

धीरे धीरे  आगे को बढ़ रही है, 

हर पल लम्हें को लील रही हैं

तुम इस तरह से हमें बदल रहें

पल पल हम जीना सीख रहे।

और उस इक लम्हे के इंतजार में

ये आखिरी कतरे तक पंहुच रहे।।

अब ए खुदा बस छोड दे इस चकरी को

उड जाने से पतंग को आजादी से

अब ये रूह मेरी तेरी हो गई हमेशा के लिए

मुक्त हो गया इन लम्हों की उलझन से।

चलो अब सोचते हैं, कि क्या किया,

किससे क्या लिया औ क्या दिया।

जीवन का पूरा चक्र अब फिर से दोहराना है,

इस जन्म मंे भी मुझको अपनों को अपनाना है।

कुछ अपने जो रूठ गए है,

कुछ पीछे छूट गए हैं।

कुछ के पीछे जाते जाते 

हम कबके ही टूट गए हैं।।

इस जीवन को क्या हम समझें

समझना चाहें हम तुमकों ईश्वर।

जिस दिन समझ लिया तुझको

नही भाएगी ये दुनिया नश्वर।।


इस कृति को यहीं अधूरी छोडकर हम बढते हैं।

ईश्वर तुम सब लिखते हो हम तो केवल पढते हैं


Tarun Joshi "NARAD"



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ब्लॉगर मीट FIND RAJASTHAN

आप सभी आमंत्रित हैं
रानी जिला पाली राजस्थान मैं दिनांक 1 व 2 मई को आयोजित होने वाले ब्लॉगर मीट में जिसका नाम है FIND RAJASTHAN

इसमें प्रथम दिवस में आने के बाद आराम विश्राम के पश्चात परिचय सत्र का आयोजन किया जायेगा, इसके पश्चात रात्रि के समय एक गोष्ठी होगी जिसमे कुछ ज्वलंत मुद्दों पर आप सभी ब्लागरों से चर्चा की जायेगी


दुसरे दिन नजदीकी भ्रमण स्थान रणकपुर जैन मंदिर जो की विश्व प्रशिद्ध है का भ्रमण किया जायेगा .
नजदीकी रेलवे स्टेशन रानी और फालना है जयपुर दिल्ली और मुंबई तक से सीधी ट्रेन सुविधा है साथ ही बिहार और उत्तर प्रदेश से भी कई ट्रेने चलती है
आप केवल अपना स्थान बता दीजिये पूर्ण ट्रेन की समय सारणी भिजवा दी जाएगी


कृपया कर आने वाले ब्लॉगर अपना नाम दिनांक 25 अप्रेल तक दे देवें ताकि कार्यक्रम की रुपरेखा प्रकाशित हो सके
संपर्क करें bloggermeet@naradnetwork.in
tarun@naradnetwork.in
Mobile No. 9251610562
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आनन्दवन पथमेडा मॅ गौ वत्स पाठ्शाला का आयोजन



युवाऑ के सर्वांगिण विकास और उनमॅ आध्यात्मिकता और गौसेवा के भाव विकसित करने के लिये श्री गोधाम महातीर्थ आनन्दवन पथमेडा मॅ हो रहा हैं गौ वत्स पाठ्शाला का आयोजन
विश्व मॅ पहली बार नवाचार करके युवाऑ को भारतीय संस्कृति एवम उसमे गौमाता के महत्व और उपादेयता और आवश्यकता के बारे मॅ जानकारी देने के साथ साथ उनका संस्कारयुक्त सर्वांगिण विकास करने के उद्देश्य से दिनाक 17 से 21 जून 2010 तक परम भागवत गौऋषि पूज्य स्वामी श्रीदतशरणानन्द्जी महाराज की पावन प्रेरणा एवम परम पूज्य मलूक पीठाधीश्वर द्वाराचार्य श्री राजेन्द्रदास जी महाराज ( वृन्दावन धाम ) के पावन सानिध्य एवं मार्गदर्शन मॆ पथमेडा मॅ आयोजित किया जा रहा है! इस कार्यक्रम मॆ युवा साथियो के लिये विभिन्न कार्यक्रम होंगे! ज़िसमे प्रतिदिन परम पुज्य संत श्री गोपालमणिजी महाराज द्वारा “गौ महिमा” पर प्रवचन, परम पूज्य प. श्री विजयशंकरजी मेहता द्वारा विशेष प्रवचन (महाभारत, रामायण व ग़ौ भक्ति) के अतिरिक्त भगवान श्री कृष्ण की अद्भुत झांकियॉ के दर्शन के साथ महाराष्ट्र के वारकरी वैष्णव भक्तो द्वारा नृत्यमय भजन गायन व वादन और श्री गोविन्द जी भार्गव (कानपुर निवासी) अपनी मधुर वाणी मॅ भजन संध्या मॆ प्रस्तुतिया देंगे ! इन सबके अतिरिक्त समस्त युवाओ को परम पुज्य बाल व्यास श्री राधाकृष्णजी महाराज का पूर्ण सानिध्य प्राप्त होगा
पथमेडा एक परिचय
आनंदवन पथमेड़ा भारत देश की वह पावन व मनोरम भूमि है जिसे भगवान श्री कृष्ण् ने कुरूक्षेत्र से द्वारिका जाते समय श्रावण,भादो महिने में रूककर वृन्दावन से लायी हुई भूमण्डल की सर्वाधिक दुधारू, जुझारू, साहसी, शौर्यवान, सौम्यवान, ब्रह्मस्वरूपा गायों के चरने व विचरने के लिए चुना था। गत 12 शताब्दियों से कामधेनु, कपिला, सुरभि की संतान गोवंश पर होने वाले अत्याचारों को रोकने के लिये सन् 1993 मे राष्ट्रव्यापी रचनात्मक गोसेवा महाभियान का प्रारम्भ इसी स्थान से हुआ है।
जिसके अन्तर्गत सर्वप्रथम श्री गोपाल गोवर्धन गोशाला श्री गोधाम महातीर्थ की स्थापना कर पश्चिमी राजस्थान एवं उतर पश्चिमी गुजरात के विभिन्न क्षेत्रों में गोसेवा आश्रमों, गोसंरक्षण केन्द्रों तथा गोसेवा शिविरों की स्थापना करना प्रारम्भ किया। इस अभियान द्वारा गोपालक किसानों तथा धर्मात्मा सज्जनों के माध्यम से गोग्रास संग्रहित करके गोसेवा आश्रमों में आश्रित गोवंश के प्राण पोषण का निरन्तर प्रयास प्रारम्भ हुआ। उपरोक्त महाभियान के प्रथम चरण में क्रूर कसाइयों के चंगुल से तथा भयंकर अकाल की पीड़ा से पीड़ित लाखों गोवंश के प्राणों को संरक्षण मिल सका।
श्री गोधाम महातीर्थ की स्थापना से लेकर आजतक अत 17 वर्शो में श्री गोधाम पथमेड़ा द्वारा स्थापित एवं संचालित विभिन्न गोसेवाश्रमों में आश्रय पाने वाले गोवंश की संख्या क्रमशः इस प्रकार रही है-सन् 1993 में 8 गाय से शुभारम्भ सन् 1999 में 90000 गोवंश सन् 2000 में 90700 गोवंश सन् 2001 में 126000 गोवंश सन् 2003 में 284000 गोवंश सन् 2004 में 54000 गोवंश सन् 2005 में 97000 गोवंश सन् 2009 में 72000 हजार इस प्रकार लगातार चलते हुए वर्तमान सन् 2010 में 200000 से अधिक गोवंश सेवा में है जो की अकाल की विभीशिका के चलते बढ़ता ही जा रहा है। साथ ही प्रदेश के विभिन्न भागों में अस्थाई गोसेवा अकाल राहत शिविरों में लाखों गोवंश को आश्रय देने का कार्य प्रारम्भ हो गया है।
पथमेडा पहुंचने के लिये अहमबाद और जोधपुर से प्रत्येक घंटे रोड्वेज और प्राइवेट बसे सांचोर के लिये चलती है ( सांचोर से पथमेडा मात्र 10 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है और साधन उपलब्ध है)
अधिक जानकारी के लिये सम्पर्क करें 9414152163, 9414131008 02979-287102, 287122
या मेल करे mail@pathmedagodarshan.org, या www.pathmedagodarshan.org देखे

सूचना द्वारा
तरूण जोशी “नारद” (स्वतंत्र लेखक एव कवि )
9462274522, 9251941999 tdjoshi_narad@yahoo.co.in, model-hunter@in.com
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