नुक्कड़ पर इस बेतरह गर्मी में महाकुंभकर्णी नींद लग गई।
इतनी भयंकर गर्मी में नुक्कड़ पर गर्म हवाओं की चपेटों के बीच नींद लेना वाकई एक कला है। लेकिन इस नींद में चकाचक गर्मी में भी ख्वाबों ने आना नहीं छोड़ा। ख्वाब झूठे होते हैं पर नींद में आए नींदचलचित्र कुछ अच्छे होते हैं। मानो सूचना जारी हो। आंखें लग रही थीं मानो बंद आंखों से परिश्रम किया जा रहा हो।
ख्वाब में जो नींदचित्र दिखलाई दिया उसमें रचनात्मक कारीगरी पवित्र पूजारंभ के बाद सबसे पहले परदे पर प्रभात की मानिंद रवीन्द्र जी गोचर हुए। हिन्दी ब्लॉग जगत में रवीन्द्र वही हैं, जिन्होंने परिकल्पना सम्मान को वास्तविकता का जामा पहनाकर कमाल कर रखा है। सबसे पहले उन्होंने हाथ जोड़कर सबको अभिवादन करते हुए घोषणा की कि आप सबकी भावनाओं की कद्र करते हुए मैंने तय किया है कि पिछले वर्ष प्रदान किए गए परिकल्पना सम्मान वापिस लेने के लिए अभियान चलाऊं। इसमें आप सब ब्लॉगरों को तन और मन से भरपूर सहयोग देना होगा क्योंकि जो गत् वर्ष सम्मानित हिंदी ब्लॉगर अपना सम्मान पदक, प्रमाण पत्र और नकद राशि वापिस नहीं देना चाहें, उन्हें हिन्दी ब्लॉग जगत के पहलवान ब्लॉग बाऊंसर और बाऊंसरनियां छीन झपेट कर वापिस ले आएं। छीना झपटी से हासिल सभी सम्मानों को तुरंत प्रभाव से रद्द करके, दोबारा से बाऊंसर ब्लॉगर और ब्लॉगरानियों को नए रूप स्वरूप में जारी कर दिया जाएगा।
इनका वितरण उन सभी से करवाया जाएगा जिन्होंने इस बार किसी भी रूप में 'परिकल्पना सम्मान समारोह' में विवाद के जरिए नि:शुल्क प्रचार किया है। कार्यक्रम सम्मान पाने वाले ब्लॉगर और ब्लॉगरनी के आवास पर संपन्न कराया जाएगा। जिसमें सख्त ताकीद की जाएगी कि समारोह में शामिल होने वाले अपने खर्चे पर चित्र एवं वीडियोग्राफी संपन्न करवाएंगे। जो सम्मान पाने वाले और समारोह में शामिल होने वालों के पेट में चूहे कूद रहे हों, वे अपने लिए जलपान, चाय, नमकीन और यदि दारूपान में यकीन रखते हों तो सभी व्यवस्था खुद करके आएं। उन्हें एक पुरातन ब्लॉगर बनाम नवीन प्रकाशक के छत पर कड़ी धूप में सेवन के लिए स्थल की व्यवस्था एकमुश्त भुगतान पर उपलब्ध कराई जा सकेगी। जिस तक पहुंचने के लिए वाहन इत्यादि की जिम्मेदारी पेट में कूद रहे चूहों और अपने लिए उनकी स्वयं की होगी।
विशेष : इसमें आप जो सोच रहे हैं, वही चिर-परिचित किरदार हैं और उनका संपूर्ण हिन्दी ब्लॉग संसार की वास्तविकता से सीधा संबंध है। इसे मज़ाक मत समझिएगा क्योंकि ब्लॉग जगत में किसी को मजाक पसंद नहीं है।
अविनाश जी ,
जवाब देंहटाएंमुझे पिछले प्रकरणों का तो नहीं पता किंतु उन सबके बावजूद बार बार लगातार , विभिन्न पोस्टों ,चित्रों , संबोधनों के माध्यम से साथी ब्लॉगर्स के प्रति हास्यास्पद उद्देश्यों से निहित पोस्टें अब कोफ़्त पहुंचा रही हैं । आप श्रेष्ठ हैं और उम्र तथा अनुभव में भी अग्रज हैं , इसलिए ही पूरे हक से कह रहा हूं कि अब ये सब बंद करें और नुक्कड की गरिमा को बनाए रखा जाए तो बेहतर है ॥
हास्य और उपहास में कुछ फ़र्क होता है और वही अंतर मतभेद और मनभेद में होता है । शेष कुछ नहीं कहना है ...शुभकामनाएं
पिछले प्रकरण की एक छोटी सी बानगी आपकी मेल पर भेजी है। सिर्फ उसे पढ़ कर ही आपको मेरी विरुद्ध रची जा रही साजिश की जानकारी मिल जाएगी।
हटाएंअविनाश भाई , आपकी मेल देखी । हैरत में हूं और बेहद दुखी भी , हैरत इसलिए कि जो भाषा इस्तेमाल की जा रही है , दोनों ही पक्षों की ओर से , न सिर्फ़ ब्लॉग फ़ेसबुक पर बल्कि निजि मेलों तक में ,वो ऐसी है कि पढने भर से ही उबकाई आ रही है और दुख इसलिए कि आप सब मित्र /सखा और सहब्लॉगर हैं । मैं शुरू से ही स्पष्ट रहा हूं , और हमेशा ही मतभेद से लेकर मनभेद की स्थिति में में भी मान अपमान का ख्याल रखता हूं । जब भी कोई इस ख्याल से बेख्याल होता है तो ऐसी ही स्थितियां बनती हैं । मैं पहले ही कह चुका हूं कि मैं पूरे प्रकरण से पूरी तरह वाकिफ़ नहीं हूं , किंतु इसके बावजूद भी सीधा और स्पष्ट ये कह रहा हूं कि आप सबको एक बात अपने ज़ेहन में रखनी चाहिए कि ये सार्वजनिक मंच है , अंतर्जाल ...जहां बरसों तक सब कुछ ऐसा ही सहेजा रखा जाएगा । कल को ये न हो कि खुद ही खुद के लिखे पढे पर अफ़सोस हो । वैसे भी आजकल कुछ पोस्टें लिख कर मिटाने के लिए ही लिखी जा रही हैं ..सो इससे ज्यादा टिप्पणी नहीं दूंगा ...न ही समय ज़ाया करूंगा आपका अपना । फ़िलहाल के इतना ही , एक बार फ़िर इस बात के साथ कि अब बस पटाक्षेप हो ..और सबकी तरफ़ से होना चाहिए ।
हटाएंशुभकामनाएँ!
जवाब देंहटाएंजी शुक्रिया
हटाएंआपकी ऐसी पोस्ट और इससे पहले वो वाली पोस्ट (जिसे शिकायत होने के बाद आपने हटा दिया था या बदल दिया था). पढने के बाद जो आपका समर्थन करता है, वह सच में दया का पात्र है|
जवाब देंहटाएंआप जैसे कर्णधारों के सहारे हिन्दी ब्लोगिंग उत्थान करेगी?
मैं कभी किसी के पास समर्थन मांगने नहीं गया हूं, न इस प्रकार की आदत है कि समर्थन मांगा जाए। समर्थन वही अच्छा होता है जो बिना मांगे मन से दिया जाए। आप मेरे समर्थकों को अगर उनके दया के पात्र में कुछ देना चाह रहे हैं या दे रहे हैं तो यह आपकी महानता है। वैसे भी आपके समान तो कोई हो ही नहीं सकता। आंखें सदैव दो होती हैं और दोनों का ही उपयोग करना चाहिए न कि अन्य लोग वही महान कार्य करें तो आपको बेहतर दिखलाई दें और जब हम कुछ भी अनर्गल न कहें तो हमें जान से मारने की धमकी देकर हमारी पोस्ट ही हटवा दी जाए। फिर भी आपकी सोच आपकी अपनी है, उसके मालिक आप हैं और मेरी सोच मेरी अपनी। मालिक भी तो मैं ही हुआ। फिर किसी की सोच को मैं क्या बदलूं, परिस्थितियां और हालत उन्हें बदलेंगे तो अच्छा रहेगा। मैंने कभी यह मुगालता नही पाला है कि मैं हिन्दी ब्लॉगिंग के उत्थान में सक्रिय हूं, मालूम नहीं आप तक किसने यह खबर पहुंचवाई है, जिन्होंने पहुंचवाई है, वे ही इस बारे में बेहतर बतला पाएंगे।
हटाएंअविनाश जी,
हटाएंमुझे नहीं मालूम मैंने इस मामले में किसको महान बताया है, न ही आपपर ये आरोप लगाया है कि आप किसी के पास समर्थन मांगने गए हैं| मेरा ओब्जेक्शन सिर्फ उसपर है जो दिख रहा है| भीतर भीतर क्या चल रहा है, ये हम सबको नहीं मालूम लेकिन जैसी भाषा में लेख\पोस्ट लिखे जा रहे हैं, ये प्रतिक्रया उसी पर है| छ सौ से ज्यादा फोलोवार्स, कम से कम छ ब्लोग्स, कई प्रकाशित पुस्तकें इन्हीं सबसे अंदाजा लगाया था कि आप कर्णधारों में शामिल हैं और जिस तरह से महिला ब्लोगर्स के नाम का आप की पोस्ट में इस्तेमाल किया गया था, वही इस कमेन्ट का कारण है| आगे कभी ऐसा कुछ लिखें तो एक लाईन ये भी लिख दिया करें कि यहाँ सिर्फ वही कूदे, जिसे सब मालूम हो| पोस्ट बदलने के बाद इन कमेंट्स का मेरी समझ में कुछ औचित्य नहीं रहता, फिर भी आपने जवाब दिया तो मेरा भी ये लिखना जरूरी था|
पिछले प्रकरण की एक छोटी सी बानगी आपकी मेल पर भेजी है। सिर्फ उसे पढ़ कर ही आपको मेरी विरुद्ध रची जा रही साजिश की जानकारी मिल जाएगी
हटाएंहिन्दी ब्लॉगजगत मे हम्म दुई हजार दस मे आयें हैं, तो दशक के ही ब्लॉगर हुये न ? ब्लोगरों के खुल्ला खेल फरुखावादी देखके हमहुमुगालते मे थे कि कुछ कुख्यात ब्लॉगरों के दबाब मे आकार रवीद्र प्रभात जी मुझे तो सम्मान देकर ही रहेंगे, मगर आपने तो नुक्कड़ पर बैठकर उंगली ही कर दी .....अब मेरा सम्मान कवन करेगा भाई ? चलते हैं अब अनूप शुक्ल के पास उहे अब हमें सदी का महानतम ब्लॉगर का सम्मान देंगे बंदूक फैक्ट्री के बगल वाले बरामदे मे....जय हो नुक्कड़ भैया की जय .....हम्म तो भुखखड़ है हमारा क्या, पाला बादल लेंगे ....रवीद्र जी न सही, अनूप जी ही ......कोई नहीं देगा तो गमछा बिछके हम्म खुददे सम्मानित हो लेंगे ।
जवाब देंहटाएंमनोज पाण्डेय जी आप चिंतित न हों। आपके लिए नुक्कड़ का गमछा सदैव हाजिर है। आप अपना मेल पता भेजिए और नुक्कड़ में अपने उचित अधिकार हासिल कीजिए। बंदूक वालों का क्या मालूम, कब किस तरफ नली घुमाकर ट्रिगर दबा दें। इसलिए हम तो सदैव सबसे डरकर रहने में यकीन रखते हैं। वरना तो आजकल के कुछ प्रकाशक लेखक को अवश्य ही भुक्खड़ बनाने पर तुल गए हैं जबकि वे खुद किस तुला पर तोले जा रहे हैं, उनके बाट उनके अपने बनाए हुए हैं। इसे सब जानते हैं। वे अंग्रेजों के इतने अच्छे मुरीद हैं कि फूट डालो और पुस्तकें छापो की नीति पर अमल करते हैं। आजकल सफल भी वही हैं।
हटाएंअभी तो लिखाई गीली ही रही होगी, कर दिया शुरू पोस्ट बदलना? हद हो गयी आपकी|
जवाब देंहटाएंवैसे एक बात है अब खीझ नहीं होती आपका लिखा हुआ पढ़कर, दिल से दुआ है - get well soon.
लिखाई सदैव गीली ही रहती है। बशर्ते कि सामने वाले की आंखों में गीलापन बेशर्मी बनकर न उतर आए। मेरे स्वस्थ होने की लिखकर दुआ करने वालों मैं परिचित हूं कि आप मुझे नरकीय अविनाश वाचस्पति बनाने के पूरी तरह से गुटबद्ध हैं और यह शब्द आपको जिन्होंने दिया है। वे खुद एक महान हस्ती हैं और जहर को सदैव जीभ पर रखते हैं। अगर आपकी जीभ पर भी उसका स्वाद गहरा रहा है तो इसमें दोष न आपका और न वाक्य देने वाले का बल्कि जहर की गुणवत्ता का है। फिर दिल से निकलने वाली दुआ कब जहरीली दवा बनकर मेरे पास आ जाए, मैं तो सदैव उसके लिए भी तैयार हूं।
हटाएंये कम्नेट किया था, शायद स्पैम में चला गया होगा, फिर से लिख रहा हूँ -
हटाएंमेरे यह कहने से कि मैं किसी गुट में नहीं हूँ, कोई मानने से रहा| ये शब्द मुझे किसी ने नहीं दिए हैं, आपके बारे में पढ़े जरूर थे और जिस समय ये कमेन्ट किया था, उस समय एकदम वाजिब भी लगे थे| कम से कम इन शब्दों के लिए किसी और को दोषी न माना जाए, मैंने खुद अपने होशोहवास में लिखे थे और मैं अपनी बात से फिरने भी नहीं जा रहा| जहर तो है मेरी जीभ में, मैं भी जानता हूँ, अब नहीं आऊँगा उगलने| हाँ, विरोध या असहमति को मरने मारने की हद तक खींच ले जाऊं, इतना बेशऊर तो नहीं ही हूँ|
मेरे यह कहने से कि मैं किसी गुट में नहीं हूँ, कोई मानने से रहा| ये शब्द मुझे किसी ने नहीं दिए हैं, आपके बारे में पढ़े जरूर थे और जिस समय ये कमेन्ट किया था, उस समय एकदम वाजिब भी लगे थे| कम से कम इन शब्दों के लिए किसी और को दोषी न माना जाए, मैंने खुद अपने होशोहवास में लिखे थे और मैं अपनी बात से फिरने भी नहीं जा रहा| जहर तो है मेरी जीभ में, मैं भी जानता हूँ, अब नहीं आऊँगा उगलने| हाँ, विरोध या असहमति को मरने मारने की हद तक खींच ले जाऊं, इतना बेशऊर तो नहीं ही हूँ|
जवाब देंहटाएंलगे रहिये, नेक कार्य में रुकावटें तो आती ही है,
जवाब देंहटाएंअपने आप को जहां तक हो सके विवाद से बचा कर रहे, शुभ कामना
कोशिश तो यही है परंतु सच को सही और झूठ को गलत कहने की ऐसी बुरी आदत है कि फिर इन सबके सामने प्राण भी मायने नहीं रखते।
हटाएंप्रकरण कुछ समझ नहीं आया।
जवाब देंहटाएंदारूपान ki vavsta trunt karay.nice
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