हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग में पुरस्‍कारों को लेकर ठेकेदार सक्रिय : दाल भात में मूसलचंद : जी हां, हैं तो चंद ही

दाल भात में
तू कौन
मैं मूसलचंद
न मूसल अपनी
न अपनी चांद

बस चंद सलाहें
बिन मांगे
कर रहा हूं पेश

इसी में कर रहे हैं
ठेकेदार ब्‍लॉगर ऐश
न जेब में दाम
न कौड़ी के विचार

क्‍यों दे रहे हो
कैसे कर रहे हो
ऐसे मत करो
वैसे करो जी

ठेकेदारों का काम
यही होता है
ऊधम मचाते हैं
खूब चिल्‍लाते हैं

गला करते हैं
अपना खराब
पुरस्‍कार देने
वालों के करते हैं
कान में खिचखिच

ऐसे क्‍यों किया
वैसे क्‍यों किया
उसको क्‍यों दिया
उसको नहीं दिया

जला रहे हैं
अपना ही जिया
न जी रहे हैं
न जीने दे रहे हैं

खून ब्‍लॉगरों का
पी पीकर जी रहे हैं
उन्‍हें पुरस्‍कार का
क्‍या करना है

मच्‍छर हैं
उनके लिए हिंदी ब्‍लॉगिंग
काला अक्षर है
कुछ मच्‍छरनियां भी हैं


हिंदी ब्‍लॉगिंग की
तथाकथित महारानियां हैं
जो बदतर हैं
विचारों से
शक्‍ल से चाहें
सुंदर हैं
पर सूरत न हो
सीरत होनी चाहिए

वही तो नहीं है
इसलिए हमें
पुरस्‍कार चाहिए
चाहिए सम्‍मान

अभी इतना ही
बाकी बाद में
लेकिन बहुत बाद में नहीं
पुरस्‍कारों से पहले
सच्‍चाईयों के गहने
बांटे जाएंगे

लेने वाले ईमानदार
बहुत योग्‍य हैं और
हम उन्‍हें ढूंढ लाएंगे।

10 टिप्‍पणियां:

  1. जरूर ढूँड ढूँड कर लाइये
    फिर उनकी पकोडि़याँ पकवाइये।

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  2. उत्तर
    1. देने वाले क्‍यों हों दुखी
      लेने वालों को हो न मिलने का दुख
      देने में मिलता है सुख
      इसलिए बांट रहे हैं हम
      अपनों में
      आखिर मीठी रेवडि़यों का
      सवाल है
      इसलिए मच रहा है
      विवाद है
      हंगामा है
      पोस्‍टों और टिप्‍पणियों में
      मचा हुआ ड्रामा है।

      हटाएं
  3. शक्‍ल से चाहें
    सुंदर हैं
    पर सूरत न हो
    सीरत होनी चाहिए
    इसमें कोई दो राय नहीं।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. डॉ. साहब, आपकी दया का आलोक यूं ही बना रहे।

      हटाएं
  4. आभार |
    बढ़िया प्रस्तुति ||

    जवाब देंहटाएं
  5. रविकर जी आपने टिप्‍पणी देकर और बढि़या कर दिया।

    जवाब देंहटाएं

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