कवयित्री, कहानीकार, उपन्यासकार, पत्रकार, रंगमंच, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन कलाकार, समाज सेवी और हिन्दी के प्रचार-प्रसार की अनथक सिपाही डॉ. सुधा ओम ढींगरा से अविनाश वाचस्पति ने परिकल्पना ब्लॉगोत्सव 2011 के लिए बातचीत की।
अविनाश जी, साहित्य का समुद्र बहुत गहरा है, लगता है अब तक घोघे- सिप्पियाँ ही हाथ लगे हैं, न जाने कितनी डुबकियाँ और लगानी पड़ेंगी हीरे जवाहरात ढूँढने के लिए | और इस जन्म में ढूँढ भी पाऊँगी या नहीं, समय बताएगा | आप ने पूछा है तो यह ज़रूर बता देती हूँ कि लिखना बहुत छुटपन से शुरू हो गया था | जब बच्चे खेला करते थे तो मैं काग़ज़ कलम ले कर अपनी कल्पना के घोड़े दौड़ाया करती थी | मेरा बचपन आम बच्चों जैसा नहीं था | मैं पोलियो सर्वाइवल हूँ | तीन माह की थी जब पोलिओ हुआ था | माँ -बाप डाक्टर थे, अपंग होने से तो मुझे बचा लिया पर दाईं टाँग कमज़ोर रह गई अतः अपने हम उम्र के बच्चों के साथ खेल नहीं पाई | बरामदे में बैठी उन्हें खेलते देखती तो मेरी परिकल्पना की दुनिया सज जाती | उसी दुनिया से निकल कर कभी-कभी उनके साथ खेलने चली जाती और सम्भल न पाती तो गिर जाती…कुछ बच्चे उठाने .... पूरी बातचीत पढ़ने के लिए क्लिक कीजिए