सिर्फ एक शहर की बात नहीं है, अन्य कुछ देशों में भी यही घटता है। प्रत्येक शहर आज इसी आशंका से भयभीत है। बम मुंबई में फटता है तो डर दिल्ली, कलकत्ता, मद्रास, बैंगलोर, अहमदाबाद, लखनऊ वालों को भी लगता है। दिल्ली वाले अधिक डर जाते हैं, फिर इस डराई गई जनता की तलाशी, उनसे भी अधिक डरी हुई पुलिस लेती है। पुलिस को डर बम का नहीं, अपनी नौकरी के जाने का होता है। पर डर तो डर है जो सबके मन में कर गया घर है। पुलिस वाले फिर भी अपनी बहादुरी का दंभ भरते हैं और जनता परेशान होती रहती है। फर्क जनता को ही पड़ता है।
बम ने जहां फटना होता है, जब फटना होता है, घटना नहीं, दुर्घटना बनना होता है, बन जाता है। लहू, लाशें, घायल, चीत्कार और चिल्लाहटें - कोई रोक नहीं पाता। फिर बम फटता है सरकारी घोषणाओं का, मुआवजों का, बयानों का, चैनलों में सुर्खियों का – मानो इस बम के बिना चारों ओर ... पूरा पढ़ना और कुछ कहना चाहें तो यहां पर क्लिक कीजिए