देश के पदनाभास्वामी मन्दिर से निकला 90 हजार करोड का खज़ाना …………एक प्रश्नचिन्ह बन रहा है सब ये सोचने मे लगे है कि आखिर ये खज़ाना , ये संपत्ति किस राजा के काल का है और उसके वंशज कौन है? आखिर क्या जरूरत है मंदिर की संपत्ति है या तो मंदिर के काम आये या फिर जनता के और मन्दिर के भी कितने काम आ सकती है एक दायरे मे ही ना तो उसके बाद उस पैसे का सदुपयोग देश और समाज के कल्याण के लिये होना चाहिये ना……आखिर देश की संपत्ति है ……बेशक जनता ने दी है तो जनता के ही काम आयेगी ना……वैसे भी हमारे देश से राजा महाराजाओ की परम्परा खत्म हो चुकी है ऐसे मे उनके वंशज से पूछना ना पूछना कोई मायने नही रखता……तो हम ये क्यो नही सोचते कि इस धन का सदुपयोग इस तरह क्या किया जाये कि जन कल्याण हो और देश का विकास भी……सोचने वाली बात ये है कि हर मन्दिर या मठ मे इतना पैसा बरस रहा है तो क्यो ना एक ऐसा कानून बनाया जाये जिसके तहत एक सीमा तक ही मन्दिरो या मठों मे पैसा रखा जाये और उसके बाद का सारा पैसा जन कल्याण के कार्यक्रमो मे उपयोग किया जाये………इससे एक नयी विचारधारा का जन्म होगा ……बेरोजगारो को काम मिलेगा और देश मे अपराध , बेईमानी , भ्रष्टाचार का बोलबाला कम होगा और अपनी जरूरतो के लिये किसी की तरफ़ हाथ फ़ैलाने की जरूरत नही रहेगी………आज एक ऐसे कानून की जरूरत है जिसका सख्ती से पालन किया जा सके .............वैसे भी हमारी जनता धर्मभीरु ज्यादा है और डर के मारे वहाँ तो पैसा चढ़ा देगी मगर कोई जरूरतमंद माँग ले उसे नहीं देगी ...........या किसी के काम आ जाये वो नहीं करेगी तो चाहे जिस कारण से पैसा आ रहा हो तो उसका सदुपयोग करने के लिए क्यों ना ऐसा कानून बने जिससे जान जान का कल्याण हो और देश और समाज में स्वस्थ वातावरण का निर्माण हो .
अब तो एक नया कानून बनना चाहिये…………आखिर देश के भविष्य के लिए
Posted on by vandana gupta in
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वन्दना गुप्ता
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बिल्कुस सही!
जवाब देंहटाएंआपकी बात से चार चवन्नियों के बराबर सहमत हूँ
krantikari baaten likh rahi hain aap
जवाब देंहटाएंsundar vihar hai...
वंदना जी, भारत के सभी मंदिरों व मठों पर क़ानून लगा दो...क्या फर्क पड़ता है...किन्तु मंदिरों व मठों के अलावा भी बहुत कुछ है, इन्हें क्यों नज़र अंदाज़ किया जा रहा है?
जवाब देंहटाएंएक दृष्टि ज़रा यहाँ डालें...
बाबा रामदेव के ट्रस्ट की संपत्ति है करीब ११०० करोड़ रुपये, जिसकी सरकार को बार बार जांच करनी है|
श्री श्री रविशंकर जी महाराज के आर्ट ऑफ लिविंग की संपत्ति है करीब २५०० करोड़ रुपये| बाबा रामदेव का समर्थन करने के कारण इनका भी नंबर लगने वाला है|
माता अमृतान्दमयी की संपत्ति है करीब ६००० करोड़ रुपये| इनकी भी बारी लग रही है|
पुट्टपर्थी के सत्य साईं बाबा की संपत्ति को लेकर अभी कुछ दिन पहले बवाला मच चूका है|
वही दूसरी ओर
Brother Dinakaran जो कि एक Self Styled Christian Evangelist हैं (कभी नाम सुना है?) की संपत्ति ५००० करोड़ से ज्यादा है|
Bishop K.P.Yohannan जिन्होंने २० वर्षों में एक Christian Sector बना दिया, की संपत्ति १७००० करोड़ है|
Brother Thanku (Kottayam, Kerela) एक और Christian Evangelist, की संपत्ति ६००० हज़ार करोड़ से अधिक है|
जाकर पूछिये मायनों से या उसकी चमचागिरी करते हुए उसके तलवे चाटने वाले दिग्विजय से कि इन तीन पादरियों (जिनका नाम शायद कुछ सौ लोग ही जानते होंगे) के पास इतनी संपत्ति कहाँ से आई? क्या कभी इनकी भी जांच होगी?
मैं मानता हूँ कि इस प्रकार संपत्ति को इकठ्ठा कर के रखना गला टी है वह भी उस देश में जहाँ करोड़ों लोग भूख से मर रहे हैं| किन्तु ये सभी मर्यादाएं हिन्दू मंदिरों व मठों पर ही क्यों लागू होती हैं? आपको शायद नहीं पता, इस समय सबसे अधिक संपत्ति चर्च के पास है| केरल में मौजूद कांग्रेसियों व वामपंथियों की नज़र केवल हिन्दू मंदिरों पर रहती है, पहले पूत्पर्थी के सत्य साईं बाबा, फिर बाबा रामदेव, और अब ये एक और मंदिर| चर्चों को हाथ लगाने का भी साहस नहीं है|
और रही बात कि पद्मनाभ मन्दिर में ये धन कहाँ से आया? इसके लिए आप ये लिंक देख सकती हैं|
http://blog.sureshchiplunkar.com/2011/07/padmanabha-swami-temple-kerala-wealth_04.html
समस्या मैं भी जानता हूँ, किन्तु इसके लिए बार बार हिन्दू समाज को दोषी ठहराया जाना गलत है| बार बार साधू, संतों व सन्यासियों तथा मंदिरों की संपत्तियों पर नज़र डाली जाती है| विदेशी बैंकों में जमा काला धन नहीं दिखाई देता, चर्चों में पड़ा सड़ रहा धन नहीं दिखाई देता?
ये काले धन से ध्यान हटाने की एक चाल है|
मंदिर से प्राप्त धन गरीबों के काम आए अच्छी बात है ...लेकिन गौढ़ साहब की बात पर भी गौर किया जाना चाहिए ...हर प्रमुख ओहदे पर ईसाईयों को बैठाना कौन सी नीति को इंगित कर रहा है .. देश की सच्चाई जानने के लिए यहाँ पढ़ें --
जवाब देंहटाएंhttp://www.janataparty.org/sonia.html
@Er. Diwas Dinesh Gaur ji
जवाब देंहटाएंमै तो खुद यही चाहती हूँ जहाँ भी ऐसी सम्पत्ति हो उसका सदुपयोग हो।
अच्छा एक बात बताइये पहले राजा के खज़ाने मे जनता से ही तो धन लेकर एकत्र किया जाता था टैक्स आदि के रूप मे या राजाओ को जीतकर्…………तो किसके लिये उपयोग मे लाया जाता था वो धन? देश और उसकी जनता के लिये ही ना…………तो आज भी हम उसी की बात कह रहे हैं। हमने ऐसा क्या गलत कहा है ।
दूसरी बात भ्रष्टाचार से सभी त्रस्त है और उसका हश्र आप भी देख रहे है और मै भी…………मै ये नही कहती कि भ्रष्ट लोगो के हाथ मे धन जाये और उसका दुरुपयोग हो मेरा या इस देश के हर समझदार नागरिक का यही कहना होगा कि जनता की अमानत जनता के काम आये………कम से कम हमारे देश से बेरोजगारी, भ्रष्टाचार की बीमारी तो कुछ कम हो…………और ये किसी एक मन्दिर के लिये नही सभी धर्मो पर समान रूप से लागू हो और जो ना माने उसे देशद्रोही करार दिया जाये …………जो भी सम्पत्ति है जिस भी मन्दिर ,चर्च आदि मे जितनी उसके रखरखाव के लिये जरूरी है उतनी वो ही प्रयोग करे मगर उसके बाद तो जो बचती है वो समाज कल्याण के कार्यो पर खर्च की जाये तो इसमे बताइये क्या बुराई है?
ान्धी आस्था ने ही तो देश का बेडा गर्क किया है आज के साधु सन्त करोडों के हो गये धार्मिक स्थानो मे पडा खजाना लूटा जा रहा है और दान के नाम पर काला धन स्फेद किया जा रहा है लेकिन हम फिर भी इस धार्मिक भ्रष्टाचार और धार्मिक स्थानो की सम्पति के बारे मे नही सोचते। बाहर से काला धन जब आये गा तो आयेगा पहले इन बाबाओं से काला धन भी निकलवाना चाहिये वो शायद बाहर के काले धन से कई गुणा अधिक होगा। धर्म के नाम पर ऐसे लोग धर्म को बर्बाद करने मे तुले हैं । पन्डे पुजारी जिसे देखो लूटने की फिराक मे है। लगत्रा है जरूर ये देश सोने की चिडिया बन सकता है अगर राजनेताओं और सभी साधो9ओ सन्तों पर नकेल कसी जाये। अच्छा आलेख है। आभार।
जवाब देंहटाएंसहमत हूँ आपसे,
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
आदरणीय बहन वन्दना जी, आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ...मैंने ये कहीं भी नहीं कहा कि मंदिरों की सपत्ति किसी की निजी संपत्ति है, या मंदिर के अलावा इस पर किसी और का अधिकार नहीं है| ऐसा भला कैसे हो सकता है? मंदिर तो बने ही सेवा के लिए हैं|
जवाब देंहटाएंदरअसल पहले मुगलों व बाद में अंग्रेजों से बचाने के लिए कई राजवंशों ने अपनी संपत्ति को मंदिरों में छिपाया| यह किस्सा भी वैसा ही है|
किन्तु अब जब काले धन का मुद्दा इतना गरमाया हुआ है तो भ्रष्ट सरकारों को केवल हिन्दू मंदिर मठ ही भ्रष्ट नज़र आ रहे हैं| अभी आप ही सोचिये कि कुछ तो कारण है कि अभी पुत्तापर्थी के सत्य साईं बाबा के ट्रस्ट की भी जांच कल रही है और अब ये एक नाती कहानी...दरअसल ये एक तीर से दो निशाने हैं| एक तो कालेधन के मुद्दे से जनता का ध्यान भटकाना, जिससे हिन्दू मठ, मंदिर ही बदनाम हो ताकि बाबा रामदेव जैसों को समर्थन न मिले|
दूसरा वामपंथी व कांग्रेसियों को बैठे बिठाए मलाई मिल रही है| किसी प्रकार वे इन ट्रस्टों पर अपना कब्ज़ा चाहते हैं| अभी पुत्त्पर्थी में भी यही चल रहा है| इससे पहले तिरुपति बालाजी में भी हो चूका है| जबसे यह सता रेड्डी के पास गयी है तब से वह मंदिर भारत के सबसे भ्रष्टतम मंदिरों में शामिल हो गया है| मंदिर के नाम पर केवल व्यापार हो रहा है| मैं नहीं चाहता कि ये संपत्ति अभी इस समय राष्ट्र्रीय संपत्ति घोषित हो| अभही हुई तो इन भ्रष्टों के हाथ लग जाएगी|
देश को उसका पैसा दिलाना ही है तो ये कुछ हज़ार करोड़ अभी छोडिये पहले वे चार सौ लाख करोड़ के लिए लड़ना चाहिए जो केवल साथ वर्षों में इन भ्रष्टों ने लूट लिए| मंदिरों में पड़ा पैसा तो सैंकड़ों वर्ष पुराना है| मैं भी चाहता हूँ कि इतना पैसा मंदिरों में पड़ा न सड़ जाए, किन्तु अभी नहीं| क्यों कि अभी इन पर सवाल उठाना केवल बाबा रामदेव के आन्दोलन को कमज़ोर करना ही है|
हमारा मकसद केवल देश के सबसे गरीब व्यक्ति तक सुविधा पहुंचाना है न कि किसी मंदिर की सपत्ति को राष्ट्रीय सपत्ति घोषित करना| संपत्ति घोषित होने से अभी ये केवल भ्रष्टों के हाथ ही जाएगी|
विचार कर लीजिये, आपका विरोध नहीं कर रहा, किन्तु हमारी एक गलती बहुत बड़ा नुकसान करवा सकती है| जिस संपत्ति को अंग्रेज़ व मुग़ल न लूट सके उन्हें ये भ्रष्ट सेक्युलर लूट लेंगे|
किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ|