इस पोस्ट के शुरू
में हीं, पहले तो मैं ये विनम्र निवेदन कर लूं कि मैं 'नवभारत टाइम्स ब्लॉग' के विरूद्ध्
नहीं हूं और न ही मेरी कोई इच्छा है कि इसका
भी हाल ब्लागवाणी जैसा हो. बल्कि सिमटते हिन्दी प्रिंट मीडिया के समय में नवभारत टाइम्स
जैसे अख़बारों का अभी भी छपते रहना मेरे लिए निश्चय ही सुखदायी बात है. लेकिन मैंने
पाया कि 'नवभारत टाइम्स ब्लॉग' पर बड़े ग़ज़ब का वर्णाश्रम सिस्टम है, इसके बारे में
मुझे तो पहले पता ही नहीं था. इसकी जानकारी मुझे तब हुई जब मैंने भी इसपर अपना ब्लॉग
बनाया.
मैंने पाया कि यहां पहली श्रेणी में ‘Celebrity Blogs’ आते हैं,
जो मैंने तो बस अंग्रेज़ी में ही देखे …हो सकता है कि हिन्दी में सेलेब्रिटी-लोग होते
ही न हों, या हिन्दी लिखने वाले सेलिब्रिटी न माने जा सकते हों, या हिन्दी में लिखने
से सेलेब्रिटी स्टेटस छिन जाने का रिवाज़ हो, या फिर शायद सेलेब्रिटी-लोगों को हिन्दी
ही न आती हो… बहरहाल इसी उहापोह के चलते मैं ठीक से कुछ भी तय नहीं कर पा रहा हूं.
सलवार-कमीज़ पहनने वाली महिलाओं को बहिन-जी टाइप डिक्लेयर कर देने जैसी मानसिकता, हो
सकता है, हिन्दी को लेकर भी हो… मुझे ठीक से नहीं पता.
उसके बाद, 'सारे
ब्लॉग' के शुरू में तथाकथित बड़े लोग आते हैं. इस फ़ेहरिस्त में शायद वे लोग रखे गए
हैं जो आए दिन मीडिया में, चाहे वह प्रिंट मीडिया हो या अप्रिंट मीडिया, यूं दिखाई-सुनाई
देते हैं मानो विज्ञापकों ने इन लोगों को विज्ञापनों के बदले स्पांसर कर रखा हो, कि
ये यहां-वहां दिखाई-सुनाई देने बंद हुए कि समझो नोटों की स्पलाई रूकने से मीडिया हाउस
ही टें बोल जाएगा, मुन्ने.
सबसे पहले ‘सारे ब्लॉग' शीर्षक दिखाई देता है. इसमें दो हिस्से हैं…
पहले हिस्से में बड़े लोगों के ब्लॉग सजाए जाते हैं और ये यहां तब तक दिखाई देते हैं
जब तक कि लोग उन पर ढेर सारी टिप्पणियां न कर दें भले ही इसमें कितने ही दिन क्यों
न ख़र्च हो जाएं.
और अंत में, जनता-
ब्लॉग की तर्ज़ पर 'अपना ब्लॉग' के अंतर्गत बाक़ी की ब्लॉगर जनता आती है. अगर आप 'नवभारत
टाइम्स ब्लॉग' बैनर भी देखें तो ही आपको अंदाज़ा हो जाएगा कि 'अपना ब्लॉग' बहुत सारे
दूसरे विषयों की सूचि में सबसे अंत में दिखाई देता है और ये भी कि इसे दबाने पर एक
अलग इंडेक्स पेज आता है. ख़ैर जी, सर्वर है उनका सो मर्ज़ी भी है उनकी.
00000
-काजल कुमार
अच्छा कमेंट। अखबारों को बिजनेस चलाना है इसलिये सेलेब्रिटी ब्लॉग्स को प्राथमिकता देना उनकी मजबूरी है। दूसरी बात यह है कि आज कल पेड न्यूज का जमाना है। ऐसे में अगर ब्लाग के जरिये बढि़या खबरें प्रिन्ट करने के लिए मुफ्त में मिल जायें (जैसा कि जागरण जंकशन में किया जा रहा है, शायद दूसरी जगहों पर भी ऐसा होता होगा) तो सोने पे सुहागा हो जायेगा। बेचारा ब्लॉगर तो केवल लिखता रहेगा, उसकी खबरें अखबारों में छापकर प्रकाशन समूह पैसा बनाते रहेंगे।
जवाब देंहटाएंब्लागर भी तो पोस्ट रेहडी पर आवाज लगा कर बेच रहें हैं
जवाब देंहटाएंbanaa to hamne bhi liya hai,par doosri post daalne ke baad 'error...'show kar rahaa hai. bhai,ham chhutbhiyon ke liye kahin jagah nahin hai !
जवाब देंहटाएंदरअसल, ये प्रिंट मीडिया के लोग इंटरनेट की सही नस पहचानते ही नहीं हैं!
जवाब देंहटाएंमैंने भी वहाँ एक खाता खोला, अपने मुख्य ब्लॉग की संक्षिप्त जानकारी कड़ी समेत लगाई तो उसे लाइव ब्लॉग से ही हटा लिया कि आपने कड़ी समेत अधूरी पोस्ट लगाई है! हाऊ मीन!!
ब्लॉग की कोई पोस्ट अधूरी भी होती है भला? कोई बताएगा मुझे?
हद है!!
फिर भी, ये आधी जनता को तो मूर्ख बना ही लेंगे!
यह बात मुझे भी खली थी । वस्तुत: ब्लाग की लोकप्रियता के कारण ये अखबार वाले उसे भी अपने फ़ायदे के लिये उपयोग करना चाहते हैं । अभीतक हम ब्लागरों कि मानसिकता ये नहीं भांप पाये हैं। रह गई सिलेब्रेटी की बात तो वे ब्लागर हो हीं नही सकते पहले बिना मेकअप रहना तो शुरु करें । ब्लागर खुला चिठ्ठा होता है ।
जवाब देंहटाएंthese celebrity are hackers of real blog or material from internet and most of them are having gr8 tool i.e ctrl+c & ctrl.+V
हटाएं@ घनश्याम मौर्य
जवाब देंहटाएं...चलो कोई किसी समाचार समूह के ब्लाग पर जाकर लिखे और वही समाचार-समूह उस सामग्री का प्रयोग कर ले तब तक तो बात समझ आती है पर आज तो ज़माना चोरी और उस पर सीनाजोरी का ही हो गया है... पहले तो यहां-वहां से लेखक का माल उड़ा लेंगे फिर अनाथों का माल समझ बेशर्मी से अपने नाम देकर छाप लेंगे... जब तक दो-चार ब्लागर इन उठाईगिरों को ढंग से कोर्ट-कचेहरी नहीं फिराएंगे, ये यूं नहीं मानने वाले.
@ दर्शन लाल बवेजा
आपने सही लिखा है, छपास-रोग नया नहीं है. इसका इतिहास मानव के इतिहास के ही साथ जुड़ा हुआ है. लेकिन सभी भी तो यूं रेहड़ियां लिए नहीं घूमते. जिन्हें इनके यहां यूं मुफ़्त में छपने का रोग नहीं, कम से कम उन्हें तो माफ़ करें ये परोपकारी !
@ संतोष त्रिवेदी
मित्र हिम्मत न हारें, शुरू-शुरू में ये यूं ही घुमाई-फिराई करवाता है, फिर मान जाता है :) मैं भी उम्मीद छोड़ चुका था, ये तो अविनाश जी ने बताया कि मेरा ब्लाग बन चुका है, तो मुझे पता चला :)
@ Raviratlami
मुझे नहीं लगता कि कोई सचमुच का इन्सान कुछ देखता-पढ़ता है यहां. बस एक टाइम-गैप का फ़ंडा लगा रखा है इन्होंने अपने साफ़्टवेयर में कि कुछ भी तभी न छप जाए, ताकि लोगों को लगे कि कोई पढ़ कर ही स्वीकृत करता है कुछ भी लिखा हुआ. दूसरे, कुछ-कुछ logical commands सैट कर रखी हैं इन्होंने साफ़्टवेयर में वर्ना यदि सचमुच ही कोई आपकी submission को पढ़ता तो ज़रूर समझ जाता कि लेखक क्या कर रहा है. यदि ऐसा न होता तो इनकी साइट पर इतना अनर्गल शायद नहीं छपता, जैसा कि मैंने कहीं-कहीं देखा...
Mujhe to lagta hai ki santosh ji ki tippani is roop me honi chahiye thi
जवाब देंहटाएं(chama yaachana sahit)
am chhutiyon ke liye kahin jagah nahin hai !
हम तो अभी तक गये नहीं वहाँ। अपने मुख्य ब्लॉग पर ही लिखने का समय नहीं लगता, नई दुकान क्या खोलें।
जवाब देंहटाएंअब यदा-कदा ही जाता हूँ.इतने दिनों बाद भी पोस्ट को तुरत प्रकाशित करने का अधिकार नहीं है.अपना घर ही ठीक है भाई:-)
जवाब देंहटाएंसेलेब्रिटी वही होता है जो सेलेबल हो। अब बेचारे हिन्दी वाले कहाँ सेलेबल हैं? अच्छी जानकारी दी है आपने।
जवाब देंहटाएंकाजल जी -बिलकुल सही कहा है .सेलेब्रिटी तो अंग्रेजी में ही लिखते हैं .कहाँ हम खालिस हिंदी भाषी लोग और कहाँ ये अंग्रेजों के मानसिक गुलाम लोग ?कोई तुलना नहीं
जवाब देंहटाएंआपका कहना सही है।
जवाब देंहटाएंprnam kajal ji,
जवाब देंहटाएंmera naam keshav hai...mai bhi NBT par blog likhta hun "akroshit mann" ke naam se shayad aapne bhi dekha hoga.....ye baat bilkul sach hai ki vaha vaisa hi mahol hai jaisa aap kah rahe hain|