सोच रहा हूं
छोड़ दूं
हिन्दी ब्लॉगिंग
एक झटके से
और
कर दूं ब्लॉग सारे डिलीट।
लिखूं सीधे व्यंग्य अखबारों के लिए,
छपे वहीं और वहीं पर ही पढ़े जाएं।
फिर अधिक लिख पाऊंगा और
भगवान से चाहा
तो अधिक पारिश्रमिक पाऊंगा
पर इतना तो तय है कि
भगवान पद्मनाभ के
खजाने के पासंग
पहुंचने की
सोच भी नहीं पाऊंगा।
वैसे भी ब्लॉग पर यातायात नहीं है,
सारा चेहरे की किताब पर चल रहा है।
एक अगस्त को डिलीट करूं सारे ब्लॉग
या दे दूं आजादी 15 अगस्त यानी स्वतंत्रता दिवस पर।
कर देता हूं सारे ब्लॉग डिलीट और आजाद हो जाऊं 15 अगस्त को
Posted on by अविनाश वाचस्पति in
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अविनाश वाचस्पति,
ब्लॉग डिलीट कर दें सारे
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ब्लॉग डिलीट कर दें सारे
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ऐसा न करें अविनाश जी, वरना उनका क्या होगा जो आपसे प्रेरणा लेते हैं।
जवाब देंहटाएंनहीं भाई!
जवाब देंहटाएंकृपया ऐसा न करें, पीठ न दिखलायें क्योकि -
ब्लोगर,
आज बाजारू हो चुके चौथे स्तम्भ का,
एक सार्थक विकल्प और युग की मांग है.
ब्लोगर लोकतंत्र क़ी ज्वलंत आवाज... है,
राष्ट्र क़ी संकृति, संस्कार का तेजस्वी ताज है.
जी, ऐसा न करियेगा क्योँकि नुक्कड़ ऐसी जगह है जहाँ पाठक को बहुत कुछ मिलता है।
जवाब देंहटाएंआप ही जब ऐसा सोचेंगे तो बाकि के ब्लागर फिर कैसा सोचेंगे ?
जवाब देंहटाएंऐसा सोच भी कैसे सकते हैं आप?
जवाब देंहटाएंक्यों भई, इतनी भी क्या नाराजगी है,
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
aap guru ho sir ji , aisa na kare
जवाब देंहटाएंसृजन के वाहक बनें अविनाश जी संहार के नहीं।
जवाब देंहटाएंआप तो कंबल को छोड़ दें लेकिन कंबल आपको छोड़े तब न...
जवाब देंहटाएंदो दोस्त तालाब में नहा रहे थे...एक दोस्त बाहर आ गया...लेकिन दूसरा दोस्त बाहर आने के लिए हाथ-पैर मार रहा था...बाहर खड़े दोस्त ने देखा कि साथी से कंबल लिपटा हुआ है जिससे उससे बाहर आने में दिक्कत हो रही है...उसने कहा कि कंबल को छोड़ कर बाहर आ जा...तालाब वाला दोस्त बोला....मैं तो कंबल छोड़ दूं पर वो मुझे छोड़े तब न...
....
वो कंबल नहीं रीछ था...
जय हिंद...