अब तो चवन्नी बराबर भी नहीं हमारी हैसियत !
देश में गली-मुहल्लों के दुःख-दर्द को लेकर आवाज़ उठाने वाला कोई 'चवन्नी छाप ' अब कहीं नजर नहीं आएगा . किसी भी पार्टी में कोई 'चवन्नी सदस्य' नहीं होगा . अब किसी चुनावी मौसम में लोग 'एक चवन्नी तेल में - अमुक जी गए जेल में ' जैसा दिलचस्प नारा सुनने को भी तरस जाएंगे . किसी भिखारी को दया भावना से चवन्नी देने पर वह लेने से साफ़ इनकार कर देगा ,हालांकि भिखारी अब तो अठन्नी भी नहीं लेना चाहते .फिर चवन्नी भला क्यों लेने लगे ? और चाहें तो यहां चटकाएं, पूरी बगीची में घूम फिर जाएं