भारत में वैचारिक आपताकाल का नया दौर शुरू: "जन-समाज, सभ्यता और संस्कृति के ख़िलाफ की गई समस्त साजिशें इतिहास में कैद हैं। बाबा रामदेव की रामलीला मैदान में देर रात हुई गिरफ्तारी इन्हीं अंतहीन साजिशों की परिणती है। यह सरकार के भीतर व्याप्त वैचारिक आपातकाल का नया झरोखा है जो समस्या की संवेदनशीलता को समझने की बजाय तत्कालीन उपाय निकालना महत्त्वपूर्ण समझती है। बीती रात को जिस मुर्खतापूर्ण तरीके से दिल्ली पुलिस ने बाबा रामदेव के समर्थकों को तितर-बितर किया; शांतिपूर्ण ढंग से सत्याग्रह पर जुटे आन्दोलनकारियों को दर-बदर किया; वह देखने-सुनने में रोमांचक और दिलचस्प ख़बर का नमूना हो सकता है, किन्तु वस्तुपरक रिपोर्टिंग करने के आग्रही ख़बरनवीसों के लिए यह हरकत यूपीए सरकार की चूलें हिलाने से कम नहीं है।
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भारत में वैचारिक आपताकाल का नया दौर शुरू
Posted on by पुष्कर पुष्प in
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लगता तो है।
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मेरे ख़ुदा मुझे जीने का वो सलीक़ा दे...
मेरे द्वारे बहुत पुराना, पेड़ खड़ा है पीपल का।
लोकतंत्र के लिए ऐसे हालात वाकई चिन्ताजनक हैं.
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