लो ! लाठियों से फोड़ डाला "बम": "भ्रष्टाचार मिटाने और विदेशी बैंकों में जमा काले धन को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करवाने की जिद पर अड़े 'बाबा से बम' बने रामदेव को आम आदमी के बीच देखकर दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की सांसे रुक गयीं। ठीक वैसे ही, जैसे किसी आदमी के पैरों के नीचे से अचानक 'काला-नाग' आर-पार निकल जाये। बिना डसे हुए । हुकूमत को बाबा भी 'बम' और 'काले-सांप' से कम नज़र नहीं आ रहे । वो बम जो जनता के बीच फट जाये, तो भी सरकार की फजीहत । वो काला-नाग जिसे मारने में पाप लगेगा और देखकर रोंगटे खड़े हो रहे हैं । नहीं मारा तो इस बात का डर, कि न मालूम कब, कहां, किसको डस बैठे ? परेशान-हाल सरकार को एक बाबा दो रुपों में एक साथ नज़र आ रहा- बम और सांप। दोनो ही एक से बढ़कर एक खतरनाक। एक के फटने से तबाही । तो दूसरे के डसने से ।
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लो ! लाठियों से फोड़ डाला "बम"
Posted on by पुष्कर पुष्प in
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पहले हाथोंहाथ लिया फिर हाथ साफ़ कर लिया !
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