हिंदी पत्रकार या न्यूज़ रूम में राजनीति करने वाले पत्रकार: "आज यानी 30 मई को हिंदी पत्रकारिता दिवस है। कम से कम आज के दिन ये बहस ज़रूर होनी चाहिए थी कि आज हिंदी पत्रकारिता किस मोड़ पर है। ज़रूरी नहीं कि इस विषय पर चर्चा के लिए सुनामधन्य पत्रकार अपने न्यूज़ चैनलों पर आदर्श पैकेजिंग ड्यूरेशन के तहत 90 सेकेंड की स्टोरी ही दिखाते या अधपके बालों वालों धुरंधरों को बुलाकर बौद्धिक जुगाली करते या फिर हिंदी पत्रकारिता की आड़ में अंग्रेज़ी पत्रकारिता को कम और पत्रकारों को ज़्यादो कोसते। टीवी वालों को क्या दोष दें।
बौद्धिक संपदा पर जन्मजात स्वयंसिद्ध अधिकार रखनेवाले प्रिंट के पत्रकारों ने भी डीसी, टीसी तो छोड़िए, सिंगल कॉलम भी इस दिवस की नहीं समझा। कहीं कोई चर्चा नहीं कि क्या सोचकर पत्रकारिता की शुरुआत हुई थी और आज हम कर क्या रहे हैं। ग्लोबलाइज़ेशन के इस दौर में गणेश शंकर विद्यार्थी, तकवी शकंर पिल्ले, राजेंद्र माथुर, सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन अज्ञेय की ज़माने की पत्रकारिता की कल्पना करना मूर्खता होगी।
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हिंदी पत्रकार या न्यूज़ रूम में राजनीति करने वाले पत्रकार
Posted on by पुष्कर पुष्प in
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