बचपन में बच्चा, सिर्फ रेल के पहिये ही नहीं, कितनी चींटियां जमीन पर चल रही हैं, कितने मच्छर उड़ रहे हैं, कितने कुत्ते भौंक रहे हैं, कितनी मक्खियां हैं, उन्हें मारने की कोशिश करता बचपन, बचपन में क्रूरता का समावेश करता चलता है। वो गिनता तो है उन रोटियों को भी जिनसे वो अपने पेट की भूख मिटाता है, भाई बहनों को भी जिनके साथ रहता है, दोस्तों पड़ोसियों को, इन पर प्यार लुटाता है, माता पिता को, हितैषियों को जिनसे असीम प्यार दुलार पाता है। देखता है उस इंसान के बारे में जो मुंह से धुंआ उगलता दिखलाई देता है। धुंआ सिर्फ धूम्रपान का ही नहीं, अपशब्दों की बारिश भी, जिनसे रोजाना रूबरू होता है। वहीं से सही-गलत सब सीखता बढ़ता रहता है। जबकि वो घट रहा होता है। दिन, शरीर के स्तर पर और वैचारिक स्तर पर बढ़ रहा होता है। अनुभवों के मायने में समृद्धत्व को प्राप्त हो रहा होता है। पर इस गिनती में कोई स्वार्थ नहीं होता। स्वार्थ से बचा रहे ऐसा नहीं होता।
यह अच्छा है तो मेरा है, मेरे भाई का है, मेरी बहन का है, मेरे मित्र का है, मेरे पिता का है, माता का है और जो बुरा है वो तेरा है, किसी अनजाने का पूरा पढ़ने की जिज्ञासा पूर्ति के लिए यहां क्लिक कीजिए और जहां पहुंचें वहीं लिख आइयेगा