जंतर – मंतर से ‘अन्ना LIVE’ या ‘पीपली LIVE’: "पिछले साल एक फिल्म आयी थी – “पीपली लाईव”. न्यूज़ चैनलों की पृष्ठभूमि पर बनी उस फिल्म का एक दृश्य बार – बार इन दिनों याद आ रहा है. पीपली गाँव की खबर को कवर करने के लिए पहले कोई बड़ा पत्रकार नही जाता. लेकिन जैसे ही यह एहसास होता है कि इसमें बड़ा न्यूज़ एलिमेंट है और खबर से खूब खेला जा सकता है वैसे ही वहाँ बड़े-बड़े पत्रकारों का पूरे ताम – झाम से तांता लग जाता है. और फिर शुरू हो जाता है ड्रामेबाजियों का दौर.
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जंतर – मंतर से ‘अन्ना LIVE’ या ‘पीपली LIVE’
Posted on by पुष्कर पुष्प in
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क्या आप कहना चाहते हैं की अन्ना के सत्याग्रह को इतना ज्यादा कवरेज नहीं मिलना चाहिए था ? लेकिन क्यों ? क्या उनके सत्याग्रह का विषय आम जनता के जीवन से ताल्लुक नहीं रखता ? अगर ऐसे ज्वलंत मुद्दे न्यूज चैनलों में न आएं , तो उनमे क्या सिर्फ फूहड़ नाच-गाने चलते रहना चाहिए ? या फिर दिन-रात क्रिकेट की कमेंट्री ,ताकि गरीब जनता अपनी समस्याओं को भूल कर नाच-रंग और क्रिकेट देख-देख कर ताली बजाती रहे ? क्या जनता के लिए केवल एक यही काम बच गया है ?
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