अनमोल रत्‍नों और इसके पारखियों की लाजवाब दुनिया : अन्‍ना हजारे नहीं कह रहे हैं परंतु टिप्‍पणियां खोल दी गई हैं अब

आप दें या मत दें। क्रिकेट प्रशंसकों की मानें मत मानें। पर इतना ज़रूर जान लें कि महात्‍मा गांधी ही वास्‍तविक तौर पर भारत रत्‍न के हकदार हैं। हक मिलते नहीं हैं। नाहक शोर क्‍यों करें। जिनको मिलना चाहिए। वे नहीं मांगते हैं। सचिन तेंदुलकर भी नहीं मांग रहे हैं। उनके करोड़ों प्रशंसकों की मांग है। इसी प्रकार महात्‍मा गांधी को मिलना चाहिए। यह वक्‍त की आवाज़ है। महात्‍मा गांधी के मार्ग पर चलकर अन्‍ना हजारे ने सवा अरब बेचारे भारतीयों को स्‍वर दिया है।
होते तो सभी रत्‍न ही हैं। सबसे पहले तो बच्‍चा अपनी मां का रत्‍न होता है। पुत्र हो या पुत्री। उसके बाद बनते बनते रत्‍न के गुण दोषों की परख होनी शुरू हो जाती है। वैसे कोयले से रत्‍न का निर्माण होता है। मेरी जानकारी तो यही है। कोयला किस खान का होना चाहिए। इसकी मुझे जानकारी नहीं है। कोयला हीरा बनता है। सभी कोयले हीरे नहीं बनते हैं। कोयले में से एक भी कोयल नहीं बनती है। कोयल न बनकर सीधे रत्‍न ही बनता है।
या फिर कोयला ही रहता है। कोयला जलाओ तो राख बन जाती है। अगर राख न बनकर साख बन जाए तो समझ लीजिए कि रत्‍न बनने की प्रक्रिया चालू हो चुकी है। कोई माने या न माने। कोई फ़र्क नहीं पड़ता। मानने को स्‍वीकारना भी मत समझिए। रत्‍न बन गया । फिर देखिए कि रत्‍न लाल बना है। रत्‍न सिंह बना है। रत्‍न प्रसाद खड़ा है। रत्‍नेश्‍वर है। मतलब रत्‍नों में ईश्‍वर भी समाते हैं।
महात्‍मा गांधी रत्‍न हैं। ओमपुरी का कहना है कि बापू हैं असली भारत रत्‍न। पर मेरा मानना है कि बापू भारत रत्‍न के अतिरिक्‍त विश्‍व रत्‍न हैं। मानवता रत्‍न हैं। अब उन्‍हें भारत रत्‍न भी न मिले। विश्‍व रत्‍न कोई देगा नहीं। इसके लिए अगर अन्‍ना हजारे उस तरह का अनशन आरंभ कर दें। जिस तरह का अनशन उन्‍होंने भ्रष्‍टाचार के विरोध में किया है। तब भी नहीं। विश्‍व रत्‍न की छोडि़ए। भारत रत्‍न को भी भूल जाइये। गुजरात रत्‍न देने के लिए है कोई तैयार।
मनुष्‍य अपने गुणों से रत्‍न बनता है। यहां पर उसके गुण देखकर उन्‍हें रत्‍न बनाने के क्रम में खुद को रत्‍न का पारखी साबित करना लगता है। सचिन तेंदुलकर को भारत रत्‍न का दावेदार बतलाने वाले उनके लिए जोरों से जुटे हैं। उनमें से कई तो यह भी चाहते होंगे कि अगर अन्‍ना हजारे सचिन तेंदुलकर के नाम पर सहमति दे दें। तो अब सचिन क्‍या, धोनी क्‍या, ओमपुरी को भी मिल सकता है भारत रत्‍न। पर आप यह तो जानिये कि पारखी कौन है।
असली पारखी जनता है। जिसे रत्‍न को पहचानना है। इसके लिए कोई कंप्‍यूटर नहीं है। कोई नवीनतम गैजेट भी नहीं है। जिसमें डाटा भर दिया जाए और तुरंत परिणाम हासिल कर, उन्‍हें लागू कर दिया जाए। वैसे रत्‍नों के प्रति लालसा और होड़ को देखते हुए अगर वैज्ञानिक इस दिशा में जुट जाएं। अवश्‍य ही वे गैजेट बना लेंगे। फिर इस प्रकार की बयानबाजी, आपा धापी की जरूरत नहीं रह जाएगी।
इस प्रकार का गैजेट भी बनाया जाना चाहिए, जिससे पुरस्‍कार और सम्‍मान संबंधी निर्णय भी हासिल किए जाएं। पुरस्‍कार और सम्‍मान में भी तो रत्‍न होने का जलवा रहता है। रत्‍न पाना सब होना चाहते हैं। इसके लिए प्रयत्‍न भी करते रहते हैं। जब यत्‍न करते हैं तो प्रयत्‍न पूरा होता है और वे रत्‍न बना पायें अथवा नहीं। पर निश्‍चय ही वे रत्‍नों के पारखी होने में अपना नाम शुमार करा ही लेते हैं।
इसलिए आज रत्‍न के लिए सुझाव देने से ज़रूरी है कि इस प्रकार के गैजेट बनाने की मांग को स्‍वर दिया जाए। इससे अन्‍ना हजारे को भी जोड़ा जाए। उनके सुझाव भी लिए जाएं। आखिर उन्‍होंने अपनी रचनात्‍मकता के जरिए अपनी रत्‍नात्‍मकता भी तो ज़ाहिर कर दी है। उन्‍होंने कोई कोशिश नहीं की है। पर वे भ्रष्‍टाचार के विरूद्ध इस प्रकार से तैयार थे। जिस प्रकार से आज तक कोई तैयार नहीं हुआ। अगर हुआ होगा तो उसे नोटिस नहीं लिया गया।
जब तक समय अनुकूल न हो और भाग्‍य में न हो तो कुछ भी नहीं होता। सब अनहुआ हो जाता है। अनहुआ तो रत्‍न होना भी है। रत्‍नों का पारखी होना भी है। अब देखिए आप रत्‍न होना चाहते हैं। आप रत्‍नों का पारखी होना चाहते हैं। या सिर्फ अपनी पसंद दूसरों की पसंद में मिला देना चाहते हैं। दूसरों की पसंद में समाहित होना बुरा नहीं है। कई बार हमें खुद को बोध नहीं होता है। अगर हमें बोधदाता के जरिए बोध हो जाता है। फिर हमें शोध नहीं करना पड़ता। इससे हमारा समय बच जाता है। फिर सब ही शोध करेंगे तो शोध बेचारा तो परेशान हो जाएगा न। इसलिए आप तो बस पसंद दर्ज करते रहिए। चुपचाप रहिए। जैसे ही आपका पसंदीदा नाम आए। अपनी पसंद दर्ज करने से मत चूकिएगा।
और चूकना तो आपको यहां पर भी नहीं चाहिए

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