सिर्फ 360 दिन ही तो शेष हैं, वे भी विशेष हैं। होली के कारनामे की याद में वे भी बीतेंगे, इन दिनों को सब जीतेंगे। होली आपके सामने नये रंग रूप में, नई खुशियों में, नई महक और नई लहक में फिर सामने होगी, वो गई नहीं है, मन में बस गई है। होली है, तो घपले हैं, घोटाले हैं – इनके सबसे अधिक नेता मतवाले हैं। उन्होंने नोट बटोर- सटोर कर स्विस बैंक में डाले हैं। सोचते हैं, किसी दिन भूकंप आएगा या सुनामी सताएगा तो उस दिन निकाल लेंगे। नोटों को बिछायेंगे, नोटों से नहायेंगे और नोटों को ही खायेंगे। नोटों से जितने लुत्फ उठा सकते हैं, सारे उठायेंगे। पर जो खुशियों की कहानी है, नोट कर लें, चाहे डॉलर अमेरिकी हों, सब बेमानी हैं। पूरा पढ़ने और टिप्पणी रूपी चांटे लगाने के लिए यहां क्लिक कीजिए
दुख को लगाओ जोरदार चांटे
Posted on by हिन्दी ब्लॉगर in
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अविनाशा वाचस्पति,
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व्यंग्य