(उपदेश सक्सेना)
भारत की जंगे आजादी की तर्ज पर कल होने वाला विश्वकप क्रिकेट का मुकाबला कई सवालों के दायरे में है. कई करोड़ के इस तमाशे में हमने अतिथि देवो भवः को जिलाने के उद्देश्य से जिलानी के लिए पलक-पांवड़े बिछा रखे हैं. हम भूल गए उस 26/11 को जिसने शीत के मौसम में खून की फाग खेली थी. अब असल फाल्गुन का मौसम है और उसी 26/11 के षड्यंत्रकारियों को पनाह देने और पोषित करने वालों के आका यहाँ आ रहे हैं. दूसरी बात, प्रधानमन्त्री-राष्ट्रपति इस महामुकाबले को देखने जायेंगे. सवाल यह है कि क्रिकेट हमारा राष्ट्रीय खेल नहीं है और न ही इस खेल का संचालन करने वाली बीसीसीआई पर सरकार का ही कोई नियंत्रण है, ऐसे में इन वीवीआईपी के दौरे को सरकारी कैसे कहा जा सकता है, इनकी सुरक्षा पर होने वाली भारी-भरकम राशि क्यों देश की टेक्स के बोझ से दबी जनता भरे?
प्यार और मोहब्बत दो समानार्थी शब्द हैं, मगर मेरा नजरिया दीगर है. माँ-बच्चे, पिता-पुत्री, भाई-बहन के बीच प्यार का रिश्ता होता है, यह रिश्ता रूहानियत से लबरेज होता है, मगर माशूक-माशूका, पति-पत्नी का रिश्ता मोहब्बत भरा होता है, जिसमें से जिस्मानी संबंधों की बदबू आती है.प्यार सब को दिया जा सकता है, मगर मोहब्बत किसी एक से ही की जाती है. हमारा पाकिस्तान के प्रति भले ही रिश्ता प्यार से भरपूर हो मगर पाकिस्तान के नजरिये से यह मोहब्बत भरा ज्यादा नजर आता है. उस पाकिस्तान पर ज्यादा भरोसा कैसे किया जा सकता है, जिसे अपने घरेलु मामलों से ज्यादा हमारे मामलों में रुचि रहती है.
मामला क्रिकेट का है, सो सटोरिये भी सक्रिय हैं. आंकड़े बताते हैं कि इस इकलौते मैच पर ही दस हजार करोड़ का सट्टा लग चुका है. इसमें भी कोई शक नहीं कि..पूरा पढ़ने के लिए क्लिक करें http://www.aidichoti.co.in/
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