नासमझों की दिल्‍ली में ये समझदार

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  • अविनाश वाचस्पति
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  • हम अपनी समझदारी की धाक नासमझ दिल्लीवालों पर तो जमा ही सकते हैं। कॉमनवेल्थ गेम्स जैसा इंटरनेशनल मौका है। चाहें तो विदेशियों और खिलाड़ियों पर भी अपना रौब गालिब कर सकते हैं। किसने कहा है कि रौब गालिब करने के लिए शायरी की जरूरत है। बिना शायरी  रौब गालिब करना कोई दिल्ली पुलिस से सीखे। इसे ही धाक जमाना कहते हैं और हम दिल्ली की अवाम को धक्के दे देकर धाक जमाने में मशगूल रहते हैं। इसमें तनिक भी कोताही नहीं। इस शुभ कार्य के लिए डंडों और गालियों का भी बेहिचक सहारा लेते हैं।पूरा पढ़ने के लिए क्लिक कीजिए
     
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