(उपदेश सक्सेना)
शनिवार रात तकरीबन दस-सवा दस बजे अविनाश जी का फोन आया कि रविवार को मेरठ चलना है, वहाँ ब्लॉगर्स की एक बैठक रखी गई है, मैं नए शहरों की यात्रा ज़्यादा पसंद करता हूँ, सो मना करने का सवाल ही नहीं था.रविवार को मैं, अविनाश जी, पवन चन्दन जी, सुमित प्रताप सिंह, मिथिलेश दुबे दोपहर की उमस के बीच अविनाश जी की इंडिका से निकल पड़े मेरठ की ओर. गाडी का एसी शायद मौसम से कुश्ती करने के मूड में नहीं था, सो, उसने हमसे कह दिया कि आप अपनी व्यवस्था खुद ही कर लो, रास्ते में कई जगह ठंडी हवाओं के झोंकों ने हमें अहसास करवाया कि कोई तीसरी शक्ति हमारी मददगार बनी हुई है. मेरठ में टाटा के सर्विस सेंटर पर अविनाश जी ने गाड़ी दिखाई, मेरे पास चौपहिया वाहन नहीं है, और नई तकनीक को जानने-समझने की उत्सुकता हमेशा से मुझमें रही है, वहाँ पाया कि कम्प्यूटर की एक केबल को गाड़ी से जोड़ दिया गया और चंद मिनटों में हम आगे के सफर के लिए तैयार हो गए. सुभारती विश्वविद्यालय मैनरोड पर ही है, इसका विशाल कैम्पस पार कर हम पहुंचे उस छात्रावास जहां नीशू तिवारी से मुलाक़ात हुई. लगभग दो घंटे की सार्थक बैठक के बाद मेरठ की सैर का कार्यक्रम बना. पवन जी मेरठ के ही हैं सो, वे अर्जुन (अविनाश जी) के सारथि (कृष्ण) बने. मेरठ वह ऐतिहासिक शहर है जहां से 1857 की क्रान्ति का आगाज़ हुआ था, इतना महत्वपूर्ण शहर होने के बावज़ूद शहर काफी अस्त-व्यस्त और बेतरतीब बसाहट का है, साफ़ सफाई का भी माकूल इंतजाम नहीं है, खैर वहाँ की मशहूर राधे मटर-चाट का सेवन किया गया, शरीर का तापमान नियंत्रित करने के लिए लस्सी का सेवन सामयिक था. अब बारी थी शहर से विदा होने की, लगभग साढ़े आठ बजे मेरठ को अलविदा कह कर रवाना हुए, रास्ते में एक बार फिर वाहन ने हमें सचेत किया और गाजियाबाद-मोहन नगर पहुंचकर उसने मानो कह दिया कि मुझे आराम की ज़रूरत है, उसे पानी पिलाकर ठंडा किया गया, फिर खरामा-खरामा हम दिल्ली पहुँच गए. 10.45 पर मैं अपने निवास पर पहुँच चुका था, अविनाश जी और पवन जी काफी देर बाद घर पहुंचे होंगे, मिथिलेश को तो नीशू ने मेरठ में ही “बंधक” (स्नेह में) बना लिया था, सुमित की चिंता इसलिए नहीं की क्योंकि उनकी कद-काठी काफी विस्तारित है, वे भी मेरे समय पर ही घर पहुंचे होंगे, अभी उनसे बात नहीं हो पाई है. ब्लागर्स मीटिंग पर विस्तृत रिपोर्ट जल्द ही पढ़ने को और फोटो देखने को मिलेंगे, अभी तो थकान मिटा रहा हूँ.
मेरठ ब्लागर्स मीटिंग, मज़ा आ गया...
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मेरठ हिन्दी ब्लॉगर मिलन
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उपदेश भाई, बढ़िया लगी आप सब की मेरठ यात्रा और ब्लॉगर'स मीट |
जवाब देंहटाएंएक -दो जगह पर कुछ शब्द गलत हो गए है कृपया ठीक कर लें !
>लगभग दो घंटे की सार्थक बैठक के बाद मेरठ की सिर (सैर)
>लस्सी का सेवन सामयिक ठा (था)
आपका नियमित पाठक हूँ सो यह गुस्ताखी कर रहा हूँ |
पोस्ट की प्रतीक्षा रहेगी..
जवाब देंहटाएंbhai updesh ye to raha safarnama ab asli batkahi ka intjaar rahega.
जवाब देंहटाएंविस्तृत रिपोर्ट का इंतजार
जवाब देंहटाएंप्रणाम
मेल मिलाप !
जवाब देंहटाएंभई वाह ! मेरठ की यात्रा और मित्रों का साथ ...लेकिन ये इंडिका जी की नाराजगी समझ नहीं आई ,... इनका मूड गर्मी में वैसे भी थोड़ा उखड़ा उखड़ा रहता है ... ऊपर से फुलटू सवारी हो तो गुस्सा जायज़ है ... वैसे सलाह है कि इंडिका अगर छह सात साल पुरानी हो तो रेडियेटर साफ करवा लें, कूलेंट का इस्तेमाल करें, चेक करें कि हैंड ब्रेक तो नहीं लगी रह जाती, और यदि आपके पास पुरानी इंडिका हो तो आपका हनुमान चालीसा पूरा याद होना चाहिए .... (जेब की गर्मी भी मौसम के समानुपाती होनी चाहिए)...
जवाब देंहटाएंरही बात मेरठ की ... तो कार सही सलामत बिना खरोंच वापस आने का मतलब आप बहुत सहनशील और धैर्यवान हैं ...
मुरादनगर की गंग नहर का स्नान लाभ, पकौड़े तथा कुल्फी आप लोग मिस कर गए हैं ...
यात्रा की बधाइयाँ....
अच्छी बात निकल कर आयी, दिल मिले और हमेशा मिलते रहना चाहिये।
जवाब देंहटाएंरोचक पोस्ट। रिपोर्ट की प्रतीक्षा रहेगी।
जवाब देंहटाएंबढ़िया रहा यह विवरण..तस्वीरों और बातचीत के ब्यौरे का इन्तजार है.
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