गीत : समय की रामायण गीता .....................

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  • डॉ० डंडा लखनवी
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  •                                   -रवीन्द्र कुमार राजेश

    कविता की अविव्यक्ति समय की रामायण गीता।

    सबकी अपनी व्यथा कथा है, अपनी राम कहानी,
    भाग्य भरोसे चले ज़िदगी, क्या राजा, क्या रानी,
    द्वापर  की   द्वौपदी   विवश   है, त्रेता   की सीता।
                                   समय की रामायण गीता॥

    सब   अपने   ही संगी-साथी, किसको  खास कहूँ,
    सब ऋतुएं मनभावन किसको फिर मधुमास कहूँ,
    सुख-दुख,  धूप-छाँव  से जीवन  इसी तरह बीता।
                                  समय की रामायण गीता॥

    काल - चक्र   के  वशीभूत कल क्या हो पता नहीं,
    लाख आप  कहते  रहिए,  कुछ   मेरी  ख़ता नहीं,
    हार-जीत की बिछी गोट, कब  हारा, कब जीता।
                                  समय की रामायण गीता॥

    पाने की चाहत में  भटका  कुछ  भी नही मिला,
    औघड़ दानी बन   बैठा मन, रहता खिला-खिला,
    मेरे जीवन   का  अमरित  घट कभी नहीं रीता।
                                 समय की रामायण गीता॥


    ’पद्मा कुटीर’
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    4 टिप्‍पणियां:

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