रोज दिखावे करते हैं, बस झूठी शोहरत के खातिर

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  • विनोद कुमार पांडेय
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  • रोज दिखावे करते हैं, बस झूठी शोहरत के खातिर,

    ज़ख़्मों पे मरहम धरते हैं,बस झूठी शोहरत के खातिर.


    घर तक है नीलाम पड़ा,दारू की ठेकेदारी में,

    देखो फिर भी दम भरते हैं, बस झूठी शोहरत के खातिर.


    इंसानों से कब का रिश्ता, तोड़ चुके हैं ये साहिब,

    इंसानियत कहरते है,बस झूठी शोहरत के खातिर.


    लिए गुरूर-अहम सत्ता का,हैवानो से हाथ मिलाते,

    हैवानियत से डरते हैं, बस झूठी शोहरत के खातिर.


    हरकत गिरी हुई है,जिनकी आदत से लाचार हैं जो,

    बड़ी बड़ी बातें करते हैं, बस झूठी शोहरत के खातिर.


    रोज ग़रीबों की आहों पर, नाम लिखा होता है जिनका,

    मानवता पर वो मरते हैं,बस झूठी शोहरत के खातिर.


    गंगाजल को तरस गये, बाबू जी अंतिम वक्त में अपने,

    मरघट पर आँसू गिरते हैं,बस झूठी शोहरत के खातिर.

    7 टिप्‍पणियां:

    1. गंगाजल को तरस गये, बाबू जी अंतिम वक्त में अपने,

      मरघट पर आँसू गिरते हैं,बस झूठी शोहरत के खातिर.
      आप ने तो इस कविता मै बिलकुल सच लिख दिया आज का,

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    2. क्या मिलिए ऐसे लोगों से,
      जिनकी सूरत छुपी रहे,
      नकली चेहरा सामने आए,
      असली फितरत छुपी रहे...

      बढ़िया है विनोद भाई...

      जय हिंद...

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    3. ज़ख़्मों पे मरहम धरते हैं,बस झूठी शोहरत के खातिर.
      यथार्थ को शब्द दे दिया.
      बेहतरीन

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    4. क्या क्या नहीं करते लोग
      झूठी शोहरत की खातिर ...!!

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    5. गंगाजल को तरस गये, बाबू जी अंतिम वक्त में अपने,

      मरघट पर आँसू गिरते हैं,बस झूठी शोहरत के खातिर.


      -जबरदस्त!!

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    आपके आने के लिए धन्यवाद
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