कई वर्ष पहले ‘नवनीत’ पत्रिका में यह रचना पढी थी , पसंद आने पर इसे डायरी में नोट कर लिया था , आज आप सबों के लिए इसे ब्लाग पर डाल रही हूं , यह भी जानने की इच्छा है कि इसके रचयिता कौन हैं , यदि आपमें से किसी को मालूम हो तो अवश्य बताएं ....
नहीं लिखा है , अगर कहीं भी गीता और कुरआन में ,
मजहब के चलते अंतर क्यूं धरती के संतान में ।
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई , ईश्वर की संतान हैं ,
धर्म भले हों अलग अलग पर , पहले सब इंसान हैं।
उपरवाले से हम सबको , सबकुछ सदा समान मिला ,
कुछ को गीता , गुरूग्रंथ , तो कुछ को कुरआन मिला।
ग्रंथ भले ही अलग अलग हों, न अंतर, मनुज बने इंसान में ,
मजहब के चलते अंतर क्यूं , धरती की संतान में।
धूप , पवन और जल सबको हैं , संग साथ ही मिलते ,
सबके उपवन में मौसम पर फूल संग ही खिलते।
नहीं धूप ने कहा कभी , मैं केवल मंदिर जाउं ,
नहीं पवन ने कहा कभी , क्यों मस्जिद में इठलाउं।
निर्माता ने किया नहीं , जब फर्क कहीं निर्माण में ,
मजहब के चलते अंतर क्यूं धरती की संतान में।
अमर हो गयी मीरा जग में , कृष्ण भजन गा गाकर,
मानुष हो तो कहैं रसखान , बसौं ब्रजगोकुल जाकर।
नहीं कोई रसखान सरीखा , गोकुल बसनेवाला ,
नहीं पिया कोई मीरा जैसा कृष्ण भक्ति का प्याला।
कहां कृष्ण ने अंतर समझा , मीरा और रसखान में ,
मजहब के चलते अंतर क्यों धरती की संतान में ।
यह तो राजनीति का चक्कर , जो लोगों को बांट रही ,
राम रहीम ईसा का खेमा , बना बनाकर बांट रही ।
सावधान होकर सोंचे , पर मत आए बहकावे में ,
मानवता ही मात्र धर्म है , भूले नहीं छलावे में।
स्नेह प्यार की खुश्बू बांटे , देवतुल्य इंसान में ,
मजहब के चलते अंतर क्यूं , धरती की संतान में।
मजहब के चलते अंतर क्यूं धरती के संतान में
Posted on by संगीता पुरी in
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सुन्दर रचना संगीता जी भावप्रधान
जवाब देंहटाएंअच्छी भावपूर्ण कविता पढ़वाने का आभार।
जवाब देंहटाएंbahut bhavpurn rachana.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत मनभावनी रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएं... काश ये बात यहाँ फैले 'दो-चार लोग' और समझ जाएँ...
अच्छी रचना है...
जवाब देंहटाएंPlease always write currect spelling of कुरआन. Its not कुरान, its कुरआन.
जवाब देंहटाएंमैने सुधार कर दिया है !!
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