क्या यह अंतिम LTTE है ?

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  • शुरू शुरू में, भारत में LTTE की इमेज एक ऐसी जुझारू मुहीम की थी जिसे भारत में बुरा नहीं माना गया क्यूंकि LTTE उन तमिलों के लिए लड़ रही थी जिनकी जड़ें भारत में रही थीं. धीरे धीरे इसका रूप उग्र होने लगा तो लंका सरकार का दमन भी और बढा.

    यहीं से ये मुहीम अंतर्मुखी होने लगी. श्रीलंका में ही नहीं, दुनिया भर के तमिलों को दो भागों में बांटने की मुहीम LTTE ने शुरू की. एक, जो LLTE का समर्थन करते थे और बाकी शेष जिन्हें LTTE से कुछ लेना देना नहीं था. श्री लंका के तमिल भी दो भागों में बंट गए, एक जो इसके साथ थे और जो साथ नहीं थे. जो साथ नहीं थे, उन्हें सिंहाला बहुल शासन और LTTE दोनों ही की चक्की के बीच से गुजरना पड़ा. एक परिवार को इस त्रासदी से गुजरते देखने का गवाह में भी रहा. (यही वो समय था जब मुझे पहली बार ये एहसास हुआ कि भारत जैसे अपने देश में स्वतंत्र रहने का क्या अर्थ होता है)


    बहरहाल...LTTE ने सत्ता की लडाई में अपने प्रतिद्वंदी तमिल नेताओं और उनकी मुहिमों को कुचल दिया. उन्हीं में से एक EPRLF थी. कुछ समय के साथ क्षीण हो गयीं तो कुछ मुख्यधारा में मिल गयीं. किन्तु LTTE स्वतंत्रता से कम कुछ नहीं चाहती थी. कितने लोग ये जानते हैं कि उन्हीं दिनों, एक दूसरी तमिल मुहीम के सरगना को भारत ने लम्बे समय तक मध्य प्रदेश के एक पुराने किले में LTTE से सुरक्षित रखा.

    आज के दौर में, दुनिया का कोई भी देश दूसरे देश में, स्वतन्त्रता के नाम पर सिर उठाने वालों का खुला समर्थन नहीं कर सकता क्योंकि इससे हर ओर अराजकता / अस्थिरता का संदेह उत्पन्न होता है, यहां हमें पकिस्तान जैसे कुछ गैर जिम्मेदार राष्ट्रों को छोड़ देना होगा.

    आज प्रभाकरण के न रहने से हो सकता है, LTTE समाप्त हो जाये, किन्तु सवाल समाप्त नहीं होता. आज श्री लंका ही नहीं, मलेशिया, इंडोनेशिया जैसे कई दूसरे देशों में भी तमिल इसी यंत्रणा से गुज़र रहे हैं. ऐसे में, दमनकारी शासन के विरुद्ध, सशस्त्र विद्रोह आगे भी होंगे भले ही कोई इस से सहमत हो या न हो.

    (यह पोस्ट वास्तव में संजय बेंगाणी जी के ब्लॉग-टिपण्णी के रूप में लिखी थी,
    पर लगा की इसे सभी पाठकों के साथ क्यों न बांटा जाए।)

    -काजल कुमार

    4 टिप्‍पणियां:

    1. हम आपसे पूर्णतः सहमत हैं. चंदेरी के किले में हम वरदराज पेरुमाल से मिले थे.

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    2. अभी यही पर अभियान ख़तम नही होता,
      समस्या का जड़ से दूर होना ज़रूरी है,
      अपने भाइयों के चेहरे पर मुस्कान अगर चाहते है,
      तो अभी बहुत से प्रभाकरण को ख़तम करना हमारी मजबूरी है.

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    3. लिट्टे प्रसंग के कई पहलू है. संकट काल में लिट्टे की मदद करने के बदले लिट्टे ने भारत के पूर्व प्रधान मंत्री की हत्या कर कृतघ्नता की हद पार कर दी थी. श्री लंका सरकारने जिस दृढ़ता के साथ लिट्टे का अंत किया उससे पाक और ह्बरत को सबक लेकर क्रमशः तालिबानियों और नक्सलियों से निबटना चाहिए. किसी दबाब के परवाह न कर शांतिप्रिय नागरिकों के अमन-चैन के दुश्मनों को समाप्त किया ही जाना चाहिए. किसी समाज की विसंगतियाँ या अन्य समस्याएँ उसके द्वारा सुनियोजित हिंसा को न्यायोचित नहीं ठहरा सकतीं.

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    4. sach hai...kabhi ltte,to kabhi talibaani,kabhi koi aur roop....lekin hain to sabhi ek.....desh ke dushman...

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